सोमवार, सितंबर 5

पेरिस की एक शाम

दुनिया के सबसे रोमांटिक शहर में शुमार है फ्रांस की राजधानी पेरिस। आधुनिक फ़ैशन और रोमांच से भरे इस शहर  ने सदियों से प्रेमी-प्रेमिकाओं, कवियों, चित्रकारों, दार्शनिकों, उपन्यासकारों, आर्किटेक्टों, फिल्मकारों और पर्यटकों को लुभाया है। दुनिया भर के लव बर्ड्स का फेवरेट डेस्टिनेशन है पेरिस। यहां की फिज़ाओं में प्यार का इज़हार बेहद रोचक होता है। सर्दी हो या गर्मी पर्यटकों की संख्या में कोई कमी नहीं होती। नए शादीशुदा जोड़े हों या शादी के बंधन में बंधने वाले , बुजुर्ग हों या युवा पेरिस आते ही सब पर रोमांस का नशा छा जाता है।
 
सीन नदी के किनारे बसा पेरिसअपनी कला और संस्कृति के लिये मशहूर है। सीन  नदी  ने शहर की खुबसूरती में हमेशा से चार चांद लगाया है। पेरिस में तकरीबन 37 पुल बनाए गए हैं जो शहर को एक इलाके से दूसरे इलाके तक बख़ूबी जोड़ते हैं। सीन नदी पर बने  लिव-लॉक पुल प्यार के इज़हार के लिए ख़ास मायने रखता है। यहां कई युवा जोड़े अपने प्यार का इज़हार करते नज़र आते हैं और अपने रिश्ते की कड़ी में ताउम्र बंधने को बेकरार दिख जाते हैं। यहां बाजारों में हार्ट शेप के तालों की डिमांड सबसे ज्यादा है...हालांकि इस पुल पर अब लॉक की थोड़ी सी जगह मिल पाना भी मुश्किल है... क्योंकि ये परंपरा अब पुल के लिये घातक साबित हो रही है। पुल का भार तालों की वजह से काफ़ी बढ़ गया है इसलिये अब इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। साल 2014 में पोंट डि आर्टस के एक पुल को बैरियर के जरिये बचाया गया। वहीं दूसरे पुल पोंट न्यूफ़ पुल प्रेमी जोड़ों के लव-लॉक की वजह से ढह गया। पेरिस के अधिकारियों ने करीब 70 टन वज़न के तालों को हटवाया... वही  नदी के पानी में भी हज़ारो टन ताले निकाले गए।  प्रेमी जोड़ों की इस परंपरा को रोकने के लिए कांच की दीवार बनाई गई है... और पोंट न्यूफ़ पर लगातार चौकसी बरती जा रही है....लेकिन अब प्रेमी-प्रेमिका यहां के आस-पास के पुलों पर ताले लटका कर इस परंपरा का निर्वाह करते दिख जाते हैं। हालांकि अब प्यार के इज़हार के लिए लव-लॉक की जगह लिप-लॉक को तरज़ीह दी जा रही है।
         इस प्रथा की शुरूआत कब हुई ये तो समझ से परे है लेकिन लोगों का मानना है कि इसका प्रचलन साल 2008 के उपन्यास आई वॉन्ट यू से हुआ। इसमें वर्णित है कि फ्रेडिको मोक्सिया ने अपने प्यार के इज़हार में रोम के पुल पर पहली बार ताला लगाया था। तब से परंपरा शुरू हुई और अब ये फ्रांस के कई पुलों पर दिख जातीं हैं।
 
        वहीं सीन नदी पर क्रूज का अनुभव बेहद रोमांचक होता है। ख़ास तौर पर शाम के समय सूर्यास्त के बाद रौशनी से नहाया अद्भुत शहर बेहद मनमोहक नज़र आता है। शहर की परछाई जब नदी में पड़ती है तो नज़ारा और भी रोमांचक लगता है। शहर की रंगबिरंगी रौशनी दर्पण का आभास कराती है। ये सवारी काफ़ी विलासितापूर्ण होती है। रात का डिनर मंत्रमुग्ध संगीत के साथ पर्यटकों को लुभाते हैं। साथ ही शैंपेन और शराब का लुत्फ थी उठाया जा सकता है। क्रूज पर्यटकों को तो लुभाते ही हैं साथ ही स्थानीय लोगों की आवाजाही का भी ये सस्ता और सुलभ साधन हैं। बिना ट्रैफिक जाम में फंसे जल मार्ग से काफी दूर तक का सफ़र चंद पलों में किया जा सकता है।
                   इस साल जून में मूसलाधार बारिश की वजह से सीन नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया था जिसकी वज़ह से नदी के आसपास के म्यूजियम को चार दिनों के लिये बंद करना पड़ा। नदी के किनारे छोटी-छोटी दुकानें सजी होती हैं जिनमें शहर की ख़ास चीजें मिलती हैं साथ ही यहां कई पेंटिग शॉप्स भी होती हैं जिनमें खूबसूरत पेंटिंग की खरीदारी की जा सकती हैं।
 
नदी के किनारे फ्रांस के इतिहास का गवाह है नोटे डैम यानी ऑवर लेडी चर्च... 13 वीं शताब्दी का ये चर्च नए साल में ...850 साल पूरे कर रहा है।
 
 
      ऐफ़िल टॉवर यहां का सबसे आकर्षक पर्यटक स्थाल माना जाता है। हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक यहां आते हैं....ये फ़्रांस की संस्कृति का प्रतीक है। एफ़िल टॉवर की रचना गुस्ताव एफ़िल के द्वारा की गई थी। 
यह तीन मंज़िला टॉवर पर्यटकों के लिए साल के ३६५ दिन खुला रहता है। इस टॉवर पर जाने के लिए टिकट के लिए भी लंबा इंतज़ार करना पड़ता है। हालांकि एक फ्लोर तक आप सीढ़ीयों से भी जा सकते हैं लेकिन सबसे ऊपर तक जाने के लिए लिफ्ट का सहारा लेना पड़ता है...आधुनिक लिफ़्ट के ज़रिये आप इसकी सबसे ऊंची इमारत तक जा सकते हैं। ऐफ़िल टॉवर से सीन नदी का नज़ारा और पूरा शहर चारो तरफ़ से देखना रोमांचक होता है। टॉवर के ऊपरी हिस्से में शैंपेन और शराब की दुकानें हैं साथ ही यहां डिनर के लिए भी पहले से टेबल बुक करना पड़ता है। रात को जगमगाता टॉवर आकर्षक प्रतीत होता है
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लौवर म्यूजियम यहां का सबसे रोचक म्यूजियम है।   त्रिकोण आकार में बने इस पारदर्शी म्यूजियम में असली मोनालिसा की पेंटिंग रखी गई है जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है हालांकि ये काफी छोटी पेंटिंग है लेकिन दुनिया भर में चर्चित इस पेंटिंग को देखनें के लिए पर्यटक दूर दूर से यहां आते हैं।
 
    भारत के पर्यटकों को फ्रांस का प्रसिद्ध आर्क डि ट्राओम्फ् काफी लुभाता है क्योंकि ये गेट उन्हें दिल्ली के इंडिया गेट की यादें ताज़ा कराती हैं। शहीदों की याद में बने इस गेट के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं और साथ ही लिफ्ट की सुविधा भी है। यहां भी ऊपर से शहर का नज़ारा काफ़ी सुन्दर दिखता है। गेट के चारो तरफ से निकलते रास्ते और आस पास बसीं इमारतें सफेदी की चादर ओढ़े प्रतीत होती हैं...यहां इमारतों का रंग सफेद होता है जो शहर को एक शाही लुक देता है।
                यहां के खाने की बात की जाए तो बेकिंग ब्रेड, चीज़, पास्ता, चॉकलेट, सूप, आइसक्रीम काफी टेस्टी होते हैं। हालांकिआम तौर पर होटल के रूम काफी छोटे होते हैं और पिक सीजन में होटल मिलना मुश्किल
 
           पर्यटक यहां से एफिल टॉवर की लोहे से निर्मित आकृति ले जाना नहीं भूलते...चहे छोटी हों या बड़ी... और अंत में फैशन के इस शहर से फैशनेबल शॉपिंग नहीं किया तो आपकी यात्रा अधूरी है....हालांकि चीजें काफ़ी मंहगी होती हैं लेकिन शॉपिंग तो बनती है....है ना।
 
 

गुरुवार, जून 2

ख़ुश भला है कौन!


या ख़ुदा उस घर का पता बता
जहां कभी कोई भी ग़म न हो।
मैं जा कर पूछ लूं ज़रा
ये सारा माज़रा है क्या?


जहां भी नज़र जाती
हैं बेबस सब नज़र आते
कोई उल्फ़त का है मारा
तो कुछ तक़दीर का हारा
कोई इश्क में घायल
तो कोई किस्मत का है क़ायल
किसी के मन में उलझन है
तो कोई तन से बेबस है

बताओ ख़ुश भला है कौन
जग में सब हैं अब भी मौन।।

बुधवार, जून 1

मौसम का असर





ऐ मौसम ...इतना बदला न कर
हम बीमार...बहुत बीमार हो जाते हैं।।
परदेस में माँ तो हैं नहीं..
जो पल-पल हमसे हमारा हाल पूछ बैठे।।
बिस्तर पर पड़े-पड़े
बस लाचार नज़र आते हैं।।


ठहराव की आदत सी हो गई है अब तो
यू तेरे संग बदलना नहीं सीख पाई अब तक ।।
और क्यों बदल लूं मैं ख़ुद को बोल ज़रा
एक सा रहना तेरी फ़ितरत ही नहीं जब।।


सोमवार, मई 9

सोशल मीडिया का ट्रेंड



Facebook, WhatsApp,Twitter
पर सब अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
अपनी अपनी ब्रैंडिंग में सब जान लगाए बैठे हैं
बड़ी ख़तरनाक बीमारी है ये.. यारों
और सब दिलोजान लगाए बैठे हैं।।।
जो न जाने चलाना इसको तो
उसे अनपढ़ कह दे ये ज़माना।।
समय की होती यहां जाने कितनी ही बर्बादी।।
पर आज भी हमको इसकी ख़बर कहां कोई।।।

हर रोज लगती है यहां
like, comment और followers की बोली
पल पल चेक होता स्टेटस यू
लगे खजाना गड़ा हो कोई।।
दुनिया की भेड़ चाल में हम भी कहां कम हैं
अपने लिये भी तो हम  मौत का सामान सजाए बैठे हैं।।।


मगर सच कहूं तो है बड़ा रोचक तमाशा ये
बचपन में जो खोया था हमें फिर से मिलाया ये
गूगल के ज़माने में भी तितर-बितर थे सारे
एक-एक को खोजकर हमें फिर से संजोया ये।।

जब भी होता दिल उदास
ये अच्छा दिल को बहलाए
किसी से चाहूं करनी बात
झट से घंटी बजा दे।

अब सुख-दुख का ये साथी (सोशल मीडिया)
देखें कब तक दिल को बहलाए
सूरज का तो काम है डूब जाना
रौशनी कब तक वो फैलाए।।



रविवार, मई 8

दिल की सुनी जाए या सिर्फ दिमाग की!




आज  दिल और दिमाग की
एक बार फिर जमकर लड़ाई हुई
अजीब  सा तूफ़ान उठा था दिल में
सोचा सब कह दूं ज़माने से
जो भी दिल में दबा रक्खा है
बस अब वो निकल जाए।
मिल जाए थोड़ा यू दिल को मेरे सुकूं।

लेकिन दिमाग ने  दिल को रोका
कहा तू पागल हो गया है क्या
ज़माने की ज़रा सी भी
समझ है बता तुझमें
पोछ अपने ये आंसू
क्योंकि इसकी कदर कहां किसे?
रोया अगर खुल के
तो ज़माना कायर समझेगा
दुख को सुनाया तो वो तुझको
पागल समझेगा
गम को पीना सीख ले बच्चे
और लड़ हर पल ज़माने से
क्योंकि यही दवा है तेरी और दुआ भी।।

फिर दिल ने कहा इमोशन का क्या
उसे मैं कैसे समझाऊं
नासमझ है अब भी वो
उसे मैं कैसे बहलाऊं
दिमाग को आ गया गुस्सा
वो बोला
रोए जब भी तू
दर्द मुझको भी होता है
बहाया अश्क जब तूने
तो संग तेरे मैं भी रोया
नहीं देख सकता मैं हर पल
तुझे मायूस बैठा यूं
इसलिये कहता हूं
इमोशन झोक चुल्हे में
और मेरे संग-संग चल ले।।

दिल अब भी बेझिल है
मिला हर बार उसको ग़म
शायद अब नहीं होगा
इमोशन को भी संग ले लूं?
मोहब्बत कम नहीं होगा?

मैं चुपचाप सुनती हूं
इन दोनों की दंगाई
पर अब भी सोच में हूं डूबी
सच में कौन सही
दिल की सुनी जाए ये सिर्फ दिमाग की???



शनिवार, मई 7

ऐ ज़िन्दगी


कुछ ग़लतियां मेरी
कुछ नादानियां मेरी
कुछ बदमाशियां मेरी
कुछ ख़ामोशियां मेरी

कुछ मजबूरियां मेरी
कुछ सच्चाईयां मेरी
कुछ उलझने मेरी
कुछ अनकही बातें
कुछ उल्फ़तें मेरी

मैं हूं इन सब की अपराधी
मुझको याद है सारी
कसम से ग़फ़लतें मेरी
जो काग़ज़ पर लिखा होता
तो सब कुछ  मिट गया होता
पर किस्मत में जो लिखा है
भला मैं कैसे झुठला दूं।।



 मगर ग़ौर से सुन ऐ ज़िन्दगी
ख़ता का लेखा-जोखा है
तू तो सज़ा गिनाती जा।।
जो भी है तेरे स्टॉक में
सारी इसी जनम में मुझे सुना।।


गुरुवार, मई 5

ये मेरी बेवफ़ाई!!









आज चलो एक गीत सुनाऊ
ख़ुद भी रोऊ... तुम्हें रूलाऊ
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें
चलो मिलकर मैं उन्हें बताऊ।।

खोला मैंने जब पिछला पन्ना
मिला मुझे कुछ औना-पौना
झांका मैंने दिल का कोना
जाना मैंने कुछ अनहोना।।

शिकायत थी अगर मुझसे
तो मुझको बोल देते तुम
छुपकर बहाया अश्क
वो राज़...खोल देते तुम
मिलकर बांट लेते ग़म
कभी तो...बयां होता
ज़माने को सुनाया जो
कभी मुझसे कहा होता।।

काश तजुर्बे ग़लत न होते
मैं भी ग़लती ना करती
कोई मुझसे बेझिझक कह पाता
मेरी ग़लती से पहले
नासमझी थी मेरी माना
एक बार तो रोक लिया होता।।

लेकिन दोनों ने ख़ुद को टोका
कुछ तेरी ख़ता कुछ मेरी ख़ता
कुछ उलझन थी तेरे मन में
कुछ उलझन थी मेरे मन में
इस उलझन ने दोनों को देखो
एक दूजे का होने न दिया।।


तुम भी रोए मैं भी नम थी
न तुम्हें पता न मुझे पता
तुमने सोचा मैं थी बेवफ़ा
मैंने सोचा तुम थे ख़फा
चाहत थी शायद जुदा जुदा।

जब तक मैंने सच को जाना
देर हुई है.. ये भी माना
लौटा नहीं सकती मैं सब कुछ
जिसपर हक़ था सिर्फ तुम्हारा
पर यकी करो अनजाने में हुई ये ख़ता
जान बूझ कर नहीं दी
जिन्दगी भर की ऐसी सज़ा।।

सज़ा तो मैंने पाई है
अब भी दिल में मेरे
एक अजीब सी तन्हाई है।।


"न तुमने साज़ छेड़ा वो
न मैं सुन सकी वो तन्हाई।
मगर मोहब्बत में मेरे मौला
मैं फिर भी बेवफ़ा कहलाई।।"






बुधवार, मई 4

पतझड़ का राग



यू कहने को तो
चहुँ ओर हरियाली है
पर फिर भी जाने क्यों
दिल का एक कोना
अब भी खाली-खाली है

झूठी है मुस्कान यहां
ख़ुद को मैंने उल्झा ली है
चहुँ ओर तो है शीतल बयार
पर दिल में तूफान छुपा ली है


बाहर धूप खिली है
लेकिन मन उल्झा है अंधेरों में
कहने को है हरियाली
लेकिन दिल का कोना अब भी खाली है


सुना है ...
पतझड़ का सूना राग कभी
कैसे उसने पल-पल गुजारी है।
अब नई कोपलें आई हैं
रंग उमंग नया वो लाई हैं
पर बिछड़न का दंश...
हाय...भला
वही जाने जो इसमें रीता है
गम के आंसू जो पीता
मौन खड़ा वह जीता है
लेकिन उन सूखे पत्तों का क्या
जिसने मिलन की आस न सही
बिछड़कर अस्तित्व मिटा ली है।।





सोमवार, अप्रैल 11

डे लाइट सेविंग


डे लाइट सेविंग (DST):- दुनिया में कई देश ऐसे भी हैं जहां सर्दियों में सूरज की किरणें 6 महीने  पहुंचती ही नहीं और गर्मियों में ६ महीने सूरज डूबता ही हीं, जी हां आपने सही सुना उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर ऐसा ही होता है़। उत्तरी ध्रुव को गर्मियों में अर्ध रात्री का सूर्य (मिडनाइट सन) और ध्रुविय रात(पोलर नाइट) भी कहा जाता है। कोई भी व्यक्ति दिन के किसी भी समय खड़े होकर सूरज को क्षितिज पर घड़ी की उल्टी दिशा में अपने चारो ओर घूमते देख सकता है। जो लोग देश दुनिया की सैर करते हैं उन्हें तो इसकी जानकारी है लेकिन आज भी एक बड़ा वर्ग इस जानकारी से अछूता है।


                 डे लाइट सेविंग की अप्रेल २०१६ में १००वीं वर्षगांठ है .. जर्मनी को पहला देश माना जाता है जिसने ३०अप्रैल 1916 इसे पूर्ण रूप से लागू किया था...लेकिन अमेरिका के बेंजामिन फ्रेंकलिन ने   1784 में इस कॉन्सेप्ट को प्रपोज किया था। वहीं 1895 में न्यूजीलैंड के जॉर्ज हडसन ने इसका प्रस्ताव रखा था। उसके बाद केनेडा में भी 1908 में इसे लागू किया गया था।                        किताबों में तो हम सब ने ऐसा ही पढ़ा है लेकिन जब आप हकीकत में इसे महसूस करते हैं तो ये काफी रोचक लगता है। समय का ये जंप  गर्मियों में मार्च से अप्रैल के बीच होता है़ और सर्दियों में सितंबर से नवंबर के बीच होता है  यानी अलग- अलग देश इसे अलग-अलग समय पर लागू करते हैं। जैसे ब्रिटेन में ब्रिटिश समर टाइम  (BST) घड़ी एक घंटा आगे मार्च के अखरी रविवार को होता है और वापस एक घंटा पीछे अक्टूबर के आखरी रविवार को किया जाता है। गर्मियों में  जून के वक्त यहां कम से कम १६ घंटे ५० मिनट तक सूर्य की रौशनी मिलती है जबकि दिसंबर में सिर्फ ७ घंटे ४०मिनट का दिन होता है। मतलब गर्मियों में दिन लंबे, रातें छोटी जबकि सर्दियों में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं।
            आज के युग में तो सब कुछ इलेक्टोनिक हो गया है इसलिये हमें घड़ी को आगे या पीछे नहीं करनी पड़ती। हालांकि कुछ दीवार घड़ियों को बदलनी पड़ती है लेकिन अंदाजा लगाइये जब सभी घड़ियां चाबियों वाली हुआ करती होंगी तब इन्हें बदलना कितना मुश्किल होता होगा। ब्रिटेन में आज भी बड़ी बड़ी दीवार घड़ियों का चलन है और उनका समय भी हाथ से बदला जाता है। बकिंघम पैलेस में ३०० से भी ज्यादा ऐंटीक घड़ियों का कलेक्शन है जिसे हमेशा मेन्टेन रखा जाता है।

              जब मैं पहली बार यूरोप आई तो मैंने देखा रात के १० बजे तक सू्रज चमक रहा था  देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ।  हालांकि लोग सड़कों पर कम ही दिख रहे थे। वहां के मूल निवासी समय पर उठते और समय पर सो भी जाते हैं उनकी दिनचर्या में सूरज की रौशनी उन्हें प्रभावित नहीं करती। जबकि हमारे लिये ये नया अनुभव था।
      उसके बाद मैं ब्रिटेन शिफ्ट हुई ...अक्टूबर में दीवार घड़ी खरीद कर लाई कुछ दिनों तक तो सही चली घड़ी लेकिन अक्टूबर के आखरी सप्ताह मेरी घड़ी एक घंटा आगे चलने लगी.. फोन की घड़ी तो सही थी ...मैंने सोचा शायद बैट्री ख़राब हो गई है..... मैं घड़ी को वापस सॉप में ले जाकर दिखाने की सोच रही थी ..फिर याद आया ...ओह नहीं घड़ी ख़राब नहीं हुई यहां तो समय बदल गया है। 



      जिन देशों में डे लाइट इफैक्ट होता है वहां काम के घंटे भी निर्घारित होते हैं। ऐसे देशों में सुबह के ८ बजे दुकानें खुलतीं हैं और शाम के ६ बजते ही बंद कर दी जाती हैं चाहे वो दोपहर क्यों न प्रतीत हो रहा हो। शुरू शुरू में आदत थी.. भारत में हम शाम के समय शॉपिंग के लिए निकलते थे पर जब ब्रिटेन आई तो यहां शाम के समय या तो दुकाने बंद मिलती थीं या बंद होने वाली होती थीं।  कुछ रेस्टोरेंट और फूड़ शॉप को ही लेट नाइट  ओपनिंग  की  अनुमति मिलती है।
पुराने जमाने में डे लाइट के फायदे और नुक्सान दोनों थे।  DST लागू करने का उद्देश्य काम के घंटे के बाद सूर्य के प्रकाश का फायदा उठाना था  और ऊर्जा को संरक्षित करना था लेकिन इसके साथ ही बाहर काम करने वालों के लिए दिन लंबा होना मतलब काम के घंटे का बढ़ जाना भी था। लंबा दिन होने से काम के घंटे में इजाफ़ा हो जाता था जबकि शरीर थक कर चूर हो चुका होता था। इसलिये ये कॉन्सेप्ट लोगों के हित के लिये लागू किया गया।
              इसका ज्यादा असर ध्रुव के आस पास के देशों में देखने को मिलता है।  यूरोपिय देशों में DST को ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली,बुलगारिया, नॉर्वे, स्विटजरलैंड आदि देश लागू करते हैं जबकि रूस, आइसलैंड, जॉर्जिया,अर्मेनिया और बेलारूस इसे नहीं अपनाते ... वहीं अमेरिका में अलग-अलग Time zone में अलग अलग दिन इसे अपनाया जाता है।   नॉर्थ अमेरिका के कई देश,  साउथ अमेरिका के कुछ देश, यूरोप के कई देश, मिडिल इस्ट के कुछ देश, न्यूजीलैंड और साउथ इस्ट ऑस्ट्रेलिया के कुछ देश इसे अपनाते हैं जबकि ज्यादातर एशियाई और अफ्रीकी देशों में डे लाइट का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलता।