या ख़ुदा उस घर का पता बता
जहां कभी कोई भी ग़म न हो।
मैं जा कर पूछ लूं ज़रा
ये सारा माज़रा है क्या?
जहां भी नज़र जाती
हैं बेबस सब नज़र आते
कोई उल्फ़त का है मारा
तो कुछ तक़दीर का हारा
कोई इश्क में घायल
तो कोई किस्मत का है क़ायल
किसी के मन में उलझन है
तो कोई तन से बेबस है
बताओ ख़ुश भला है कौन
जग में सब हैं अब भी मौन।।