शुक्रवार, अप्रैल 23

हिम्मत से काम लेंगे...घबराना कैसा...!



असंभव यानी impossible .....एक ऐसा शब्द जो खुद में संभावना को दर्शाता है...कहने का मतलब impossible शब्द का संधि विच्छेद किया जाए तो ये बन जाता हैं I....AM...POSSIBLE.....यानी मैं संभव हूं
असंभव कुछ भी नहीं...
तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि....ये काम संभव नहीं...दुनिया में हर चीज संभव है...बस मन में दृढ़ इच्छा शक्ति.. कुछ कर गुजरने की चाह होनी चाहिए....फिर आपके कदमों को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता...असंभव शब्द तभी संभव में परिवर्तित होता है जब इसमें निरंतरता आती है...यानी लगातार प्रयास से ही हम किसी चीज को संभव बना सकते हैं...
कई बार जब हम असफल होते हैं तो लगता है हमारी किस्मत हमारा साथ नहीं दे रही...हम खुद को कोसते हैं...खुद से जुड़ी हर चीज को हीन समझते हैं.....लेकिन असफलता कब तक किस्मत पर हावी होगी.... खुशी कब तक हमसे दूर भागेगी...एक न एक दिन तो उसे हमारे पास लौटना ही होगा...बस जरूरत है प्रयास जारी रखने की...कभी नकभी असफलता जरूर कमजोर साबित होगी और सफलता हमारे कदम चूमेंगी....लेकिन ये सारी चीजें जब अपने ऊपर गुजरती है तो लगता है


दिल को बहलाने के लिए
ग़ालिबे ख़्याल अच्छा है...

हालांकि हमें खुद पर भरोसा करना सीखना होगा....मनुष्य कुछ ठान ले तो उसे पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन हां ये तभी संभव है जब इरादे बुलंद हों....किसी के सामने आंसू न बहाए...आंसू इंसान को कमजोर बनाता है...और बुलंद हौसले न जाने कहां से आगे बढ़ने की शक्ति जुटाता है...








जब मैं स्कूल में थी मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था...वैसे पढ़ने में तो वो सामान्य था...लेकिन अपनी activity की वजह से पूरे स्कूल में चर्चित था...जहां जाता लोगों को खूब हंसाता....सभी शिक्षकों का चहेता था.... एक बार अंग्रेजी के शिक्षक ने पूरे क्लास के सामने उसका मजाक उड़ा था..उसकी इंग्लिस अच्छी नहीं थी....और उस वक्त हम शायद 9 या 10 th में थे....उस टीचर ने कहा ‘’कच्चे घड़े को जिस आकार में चाहो ढाल सकते है…लेकिन पक्के घड़े पर कोई रंग नहीं चढ़ता’’ कहने का मतलब था कि अब तुम इंग्लिश कभी नहीं सीख सकते..हालांकि उस वक्त ये बात आई और गई हो गई.....


कुछ भी कहिए...ये orkut है बड़े काम की चीज़...हमें अपने बिछड़े दोस्तों से बड़ी ही आसानी से मिला देती है...और orkut के जरिए ही...मैं उससे जुड़ी...सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ...कि वो Royal bank of Scotland में अच्छे पद पर कार्यरत है....किसी टीचर ने उम्मीद भी नहीं की होगी कि इतना सामान्य सा लड़का एक दिन इतना आगे निकल जाएगा....मेरे पिता भी मेरे स्कूल में शिक्षक रहे हैं...और वो भी उस लड़के से अच्छी तरह वाकिफ़ थे...जब मैं घर गई और उस लड़के के बारे में बताया...उन्हें काफी आश्चर्य हुआ...किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था....ये लड़का एक दिन इतनी तरक्की कर जाएगा.......पिछले साल उससे मिलने का मौका मिला तब उसने मुझे अपनी परिस्थितियों से अवगत कराया...उसकी मां का देहांत बचपन में ही हो चुका था...पिता भी उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे....बेचारा किसी तरह किराए के मकान में रहता था...स्कूल की फीस बड़ी मुश्किल से दे पाता था...उसका कहना था....’’तुम लोग जब अपने घरों में आराम से रहते थे…मैं उस वक्त एक छोटे से कमरे में गुजारा करता था...तुम घर का खाना बड़े चाव से खाते थे...लेकिन मैं दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसता था..’’ .उसके पास एक खटारा साइकिल थी...जब वो उससे स्कूल आता तो स्कूल के बच्चे उससे दूधवाला बुलाते थे....क्योंकि उसकी साइकिल से काफी आवाज आती थी...आज भी लोग उसे उसके नाम से कम....दूधवाले के नाम से ज्यादा पहचानते हैं....आज वो हमारी क्लास के टॉपर स्टूडेंट्स से काफी आगे निकल चुका है....मैं उससे इसलिए प्रभावित हुई क्योंकि उसने विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को साबित किया है...और आज एक अच्छा मुकाम हासिल कर पाया है....हमेशा टॉप करने वाला परिक्षार्थी ही मंजिल तक नहीं पहुंचता...सामान्य बच्चे भी बुलंदियों को हासिल कर सकते हैं.....शिक्षकों को बच्चों का मनोबल बढ़ाना चाहिए न कि उसका मनोबल तोड़ना चाहिए....आज उस लड़के कि इंग्लिश इतनी टंच हो गई है... कि वो शिक्षक अगर उससे मिले तो उनका मुंह खुला का खुला रह जाएगा...






हर क्षेत्र में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे...जिन्हें बड़ी मशक्कत से कामयाबी मिली होगी...कामयाबी का कोई सॉट-कट नहीं..इसके लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है....कोई भी आसानी से मंजिल तक नहीं पहुंच जाता...उसके पीछे उसके खट्टे-मीठे अनुभव जुड़े होते हैं...कहते हैं ना ‘’हीरे में भी चमक तभी आती है जब उसे तराशा जाता है...औऱ सोने को जितना गलाया जाता है उसकी चमक उतनी ही बढ़ती है....’’ इसलिए बस आप अपना काम ईमानदारी से करें..आगे खुद-ब-खुद होता चला जाएगा....हम्मत नही हारना ही जीत की पहली निशानी है....सूरज की रौशनी की कब तक कोई ढक कर रख सकता है...उसकी चमक नहीं छिप सकती....अगर आपमें प्रतिभा है तो उसे कोई बाधा रोक नहीं सकती....



कामयाब इंसान...अपने संघर्षों को भले ही भूल जाएं...किसी के एहसानों को भी भूल जाएं....लेकिन अपने साथ हुए अपमान को कभी नहीं भूलता...इसलिए किसी को कमजोर समझकर उसका मजाक उड़ाना उचित नहीं....अगर आज आप कामयाब हैं तो कल वो इंसान भी कामयाब बन सकता है जिसे आप तुच्छ समझ रहे हैं....




ख़ुद ही को कर बुलंद इतना की हर तक़दीर से पहले


ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे...बता तेरी रज़ा क्या है?

शनिवार, अप्रैल 10

हमारे सेलिब्रिटी

संगीत भला किसे पसंद नहीं.....मेरा तो संगीत से न जाने क्या रिश्ता है....संगीत सुने बिना मैं एक दिन भी नहीं रह सकती...मेरी तो रग-रग में जैसे संगीत बसा हो....दिनभर की व्यस्तता के बावजूद कुछ पल संगीत के लिए निकाल ही लेती हूं....मुझे संगीत से बड़ा लगाव रहा है....जैसे ही खाली वक्त मिलता है मैं संगीत सुनने बैठ जाती हूं...यूं कहें मैं संगीत की धुन में खो सी जाती हूं...फिर उसके एक-एक शब्द मेरी अंतर आत्मा दोहराती हैं....मैं घंटों बिना कुछ बोले चुपचाप संगीत की धुन में खोई रहना चाहती हूं...बस वो मेरी पसंद के गीत होने चाहिए...मैं फिल्मी गाने, गजल, इंडीपॉप, वेस्टर्ण संगीत, रिमिक्स, ओल्ड गाने पसंद करती हूं....संगीतकारों में जाने माने संगातकार पसंद है...चुनिंदा संगीतकार हैं जिन्हें मैं बचपन से सुनती आई हूं....जिनसे मेरी आत्मियता जुड़ी है...




अब जिसे संगीत से इतना जुड़ाव हो...वो भला अपने शहर में होने वाले संगीत कार्यक्रमों को कैसे छोड़ सकता है....मेरे शहर में संगीत संध्या का आयोजन किया गया...जिसमें जाने-माने गज़ल गायक जगजीत सिंह शिरकत करने आ रहे थे....मैं उनसे मिलने का मौक चूकना नहीं चाहती थी....मैं बचपन से उनकी गजलें सुनती आई हूं...इसलिए मैंने जाने की पूरी तैयारी कर ली....अपनी सुबह की शुफ्ट खत्म होने के बाद शाम को मैं उनसे मिलने पहुंची....इससे पहले उनसे बात हुई थी तो पता चला की वो दोपहर 1 बजे वो आए हैं..इसलिए 6 बजे तक तो होटल में सोएंगे...शाम को 7 बजे उनसे मिलने का समय तय हुआ...दरअसल ये आयोजन रिसॉर्ट वालों ने आयोजित करवाया था...हमारी रिसॉर्ट प्रमुख से पहले ही बात हो गई मिलने के लिए उन्होंने दो मिनट का समय दिया....मेरे साथ एक और रिपोर्टर थी....हमें वहां पहुंचने में थोड़ी देर हो गई....दरअसल हम थोड़ी देर ट्रैफिक जाम में फंस गए...

लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो हमने देखा वो पहले से ही पहुंचे हुए थे...बड़ा आश्चर्य हुआ...क्योंकि जगजीत जी मुझे समय के बड़े पक्के लगे...वहां और कई मीडियावाले पहुंचे हुए थे...सभी उनका इंटरव्यू ले रहे थे...हमने अलग से मिलने का समय मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया....हमने थोड़ा निवेदन किया..उन्होंने कहा ठीक है देखते हैं...फिर हमने रिसॉर्ट प्रमुख से बात की उन्होंने कहा रुकिए हम मैनेज करते हैं...सभी मीडिया वालों से निपटने के बाद उन्होंने हमे थोड़ा वक्त दिया...हमारे साथ उनकी EXCLUSIVE बातचीत हुई….जिसमें उन्होंने अपनी जिंदगी की कुछ अनोखी बातें share की....कुछ गीत भी सुनाए.... EXCLUSIVE बातचीत मीडिया वालों के लिए काफी मायने रखती हैं...औऱ हर मीडिया पर्सन चाहता है कि उन्हें EXCLUSIVE मिले...लेकिन ऐसा हो नहीं पाता और मीडिया वाले झल्लाते हैं...ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि कोई सेलिब्रिटी सबसे EXCLUSIVE बातचीत नहीं कर पाता...वो मीडिया का LOGO देखकर ही बातचीत करने को तैयार होता है...हालांकि ज्यादातर सेलिब्रिटी मीडिया फ्रेंडली होते हैं और आसानी से बातचीत के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन कुछ बड़ी मशक्कत के बाद बातचीत को तैयार होते हैं...इसके पीछे कारण ये होता है कि उनके पास समय की कमी होती है और वो सबसे बातचीत करना उचित नहीं समझते...ऐसे में कई बार तो मीडिया वाले ही जानबूझकर हंगामा मचाते हैं और उनके कंसर्ट में बाधा पहुंचाने की कोशिश करते हैं....हालांकि इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ...

उनसे मिलने के बाद उनके आयोजन स्थल पर हम पहुंचे....जहां 8 बजे से उनका संगीत कार्यक्रम था....बिल्कुल निर्धारित समय पर वो आए...कुछ देर स्टेड के पीछे जाकर उन्होंने गला साफ किया...साढ़े आठ बजे वो मंच पर पहुंचे...तब तक FM रेडियो जॉकी स्टेज संभाल रहा था...जैसा कि अक्सर होता है....कार्यक्रम की शुरूआत में खूब तामझाम परोसा जाता है जिससे दर्शक बोर होकर देखने को मजबूर होते हैं....कंसर्ट के आयोजकों ने जगजीत का स्वागत किया....हालांकि ये स्वागत कार्यक्रम लंबा खिंच रहा था और फूलों के बुक्के ले-लेकर जगजीत जी परेशान हो रहे थे...उन्होंने स्वागत कार्यक्रम जल्द निपटाने का संकेत दिया...आयोजकों ने जल्दी बीच में ही इसे बंद करना उचित समझा...सबसे पहले उन्होंने स्टेज पर आ रही कड़ी रौशनी कम करने का अनुरोध किया...अब आयोजकों ने रौशनी स्टेज की रौशनी कम की....उसके बाद स्टेज संभालते हुए उन्होंने अपनी आवाज का जादू बिखेरा...उनकी गजलों का सिलसिला शुरू हुआ...दर्शक मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे...शुरू में तो उन्होंने कुछ पुरानी गजलें सुनाई ताकि मीडिया पर्सन जल्द कार्यक्रम की शूटिंग पूरी कर अपने अपने ऑफिस लौट जाए...ऐसा अक्स इसलिए किया जाता है कि उन्हें डर रहता है कि कहीं उनके गजलों की पायरेटेड सीडी न बन जाए मीडियावालों को खबरें जल्द दिखाने को होड़ रहती है इसलिए शुरू के एक दो गाने शूट कर वो लौट जाते हैं...हमने भी ऐसा ही किया एक दो गजलें सुनने के बाद हम लौट आए.....



ये कंसर्ट तो सफल रहा...लेकिन इससे कुछ महीने पहले हमारे शहर में कैलाश खेर का कंसर्ट रखा गया...हालांकि कंसर्ट में तो कुछ नहीं हुआ लेकिन कंसर्ट के बाद कैलाश ने सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए और कहा कि उनके साथ बदसलूकी हुई है....हालांकि मैं उनके कंसर्ट में नहीं गई थी...क्योंकि मुझे कैलाश के गाने ज्यादा पसंद नहीं है....मुझे ऑफिस में पता चला...मेरे साथ क्राइम रिपोर्टर उस वक्त बैठे थे मैंने पूछा क्या हुआ कैलाश ने ऐसे आरोप क्यों लगाए? क्राइम रिपोर्टर ने मेरे सामने एस पी को फोन लगाया और मामले की जानकारी ली...पता चला कि कैलाश ने काफी पी रखी थी और उलटे सुरक्षा गार्ड को खूब खरी-खोटी सुनाई थी....तंग आकर सुरक्षा गार्ड ने एसपी से बात की औऱ कैलाश की शिकायत की...कैलाश उसके साथ काफी बदसलूकी कर रहे थे...एसपी ने उसे वहीं छोड़कर वापस आ जाने को कहा..कैलाश को आधी रात रास्ते में छोड़कर सुरक्षा गार्ड वापस पुलिस मुख्यालय लौट आया...




हमारे ऑफिस की ओर से भी पिछले साल कार्यक्रम का आयोजन किया गया...जिसमें कई जानी मानी हस्तियों ने शिरकत की लेकिन यहां से लौटने के बाद किसी ने भी सुरक्षा व्यवस्था की शिकायत नहीं की...इस आयोजन में मशहूर संगीतकार सुखविंदर भी आए थे जो गीत गाते-गाते दर्शकों के बीच पहुंच जाते थे...दर्शक उनकी संगीत के दीवाने हैं लेकिन किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई....हालांकि दर्शकों ने उनके जाने के बाद ये शिकायतें की कि वो खुद गाने ना गाकर पर्फोर्मेंस पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे...शुरू में एक दो गाने उन्होंने अपनी अपनी आवाज में गाए लेकिन बाद में वो अपने गानों पर डांस करने लगे जिसे दर्शकों ने नकारा...उनकी आवाज के सभी कायल हैं कई मशहूर फिल्मी गानों में उन्होंने अपनी अवाज दी है.....फिल्म अभिनेत्री करिश्मा तन्ना और ‘’रॉकेट सिंह....सेल्समैन ऑफ द इयर’’ में काम करनेवाली अभिनेत्री गोहर खान भी आई थी....वहीं मशहूर अभिनेत्री प्राची देशाई....जिसे लोग वाणी के नाम से जानते हैं...से मिलने का मौका मिला....लोग कहते हैं अभिनेत्रियां खुले विचारों की होती है और उनके लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती उनके लिए जिस्म का सौदा कोई बड़ी बात नहीं...मैंने भी ये बाते सुन रखी थीं...लेकिन मैंने देखा दो अभिनेत्रियां अपने-अपने परिजनों के साथ आई थीं...उनके साथ उनकी मां आई थी... हालांकि गौहर अकेली आई थीं लेकिन प्राची के साथ तो उनकी मां और मौसी दोनों आई थी...सबसे बातचीत का मौकी मिला...उनकी जिन्दगी की कुछ अहम और चटपटी बातें जानने को मिली...उन सभी कलाकारों का मेकअप हमारे ऑफिस के मेकअप आर्टिस्ट ने किया था....उन्होंने प्राची से उसका फोन नंबर मांगा उसने बड़ी आसानी से नंबर दे दिया...और अब भी जब वो मेकअप आर्टिस्ट उन्हें मैसेज करती हैं तो वो उसका जवाब देने से नहीं कतराती....

शुक्रवार, अप्रैल 9

दिनभर की BP




BP का मतलब वैसे तो ब्लड प्रेशर होता है….लेकिन मैं ब्लड प्रेशर की बात नहीं कर रही...दरअसल मैं मीडिया सेक्टर के BP की बात कर रही हूं....यहां BP का मतलब होता है बुलेटिन प्रोड्यूसर....ये शब्द किसी एक इंसान के लिए प्रयोग नहीं किया जाता...दरअसल शिफ्ट के अनुसार BP बदलते हैं...MORNING में अलग BP होता है EVENING में अलग और NIGHT के लिए अलग..वैसे तो एक शिफ्ट में दो से तीन BP भी हो सकते हैं...लेकिन EVENING शिफ्ट में ज्यादा BP होते हैं....सबका काम बंटा होता है...सबके जिम्मे अलग-अलग बुलेटिन होता है...और उसे कम से कम आधे घंटे का गैप मिलता है अपना बुलेटिन तैयार करने के लिए....लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बेचारा BP अपनी शिफ्ट में अकेला पड़ जाता है...पहले तो मैं ये बता दूं कि मीडिया में बुलेटिन प्रोड्यूसर की सबसे अहम भूमिका होती है....उसके मत्थे खबरों को चलाने की पूरी जिम्मेदारी होती है....एंकर को क्या पढ़ाना है, किस सिक्वेंस में पढ़ाना है, किस खबर को क्या ट्रिटमेंट देना है...कहने का मतलब किसी मीडिया हाउस के लिए BP की भूमिका बेहद खास है....एक छोटी सी गलती हुई की सारी जिम्मेदारी BP के सिर मढ़ दी जाती है....न्यूज रूम में किसी की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है तो वो है BP. ये एक ऐसा प्राणी है जिसे ना चाहते हुए भी दिनभर चिल्लाना ही पड़ता है...मेरे कहने का गलत अर्थ ना लगाए....मेरे कहने का मतलब है उसे सबको कमांड देना उसकी जिम्मेदारी है...एंकर, PCR, न्यूजरूम, ऑउटपुट डेस्क, इनपुट डेस्क सब को एक साथ उसे मैनेज कर चलना पड़ता है...ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसकी भूमिका कितनी अहमियत रखती है...बॉस को भी बुलेटिन में कुछ नया बदलाव करना है या कुछ नया ऑन एयर करवाना है तो उसे BP के माध्यम से ही कहना पड़ता है...मतलब आप घर पर बैठकर जो कुछ भी देख रहे होते हैं...उसे एक BP के दिमाग की उपज कहा जा सकता है...एंकर तो बस उसके कमांड को फॉलो करता है...

चलिए अब मुद्दे की बात की जाए...एक दिन मैं सुबह जब ऑफिस आई तो पता चला दो BP ने छुट्टी ले रखी है...और दिनभर मुझे सारे बुलेटिन संभालने है...हालांकि मैंने कई बार बुलेटिन निकाले हैं...लेकिन दिनभर...वो भी अकेले मेरे लिए काफी मुश्किलों भरा काम था...मैं थोड़ी देर सोच में पड़ गई...क्योंकि पहली बार मैं दिनभर अकेली फंस गई थी....खैर मैंने हिम्मत की.... सुबह 10 बजे से शाम के 4:30 बजे तक के सारे सेगमेंट मुझे संभालने थे औऱ इस बीच कोई ब्रेक नहीं....सच बताऊ तो हिलने की फुरसत नहीं थी...अब जब आफत सामने आ ही गई है तो मैं भी पीछे हटने वाली कहां थी....मैंने भी अपना काम शुरू कर दिया....एक बुलेटिन खत्म नहीं हुआ की दूसरे बुलेटिन में लगना पड़ रहा था...ब्रेकिंग खबरें भी लगातार आ रही थी...सबको एक साथ हैंडिल करना था ऊपर से बॉस का फोन आ जाए...कि इस खबर पर स्टिंग बनवाना है..इस खबर पर फोनो प्लेट बनवाना है..इस खबर पर फोनो लेना है...इस खबर को दर्शकों के फोन कॉल के लिए खोलना है...इसी बीच गृहमंत्री ने इस्तीफे की पेशकश की...नक्सली मुद्दे पर....इस खबर को खींचना था.....सानिया के निकाह की खबरें आ रही थी....उसपर स्टिंग के साथ 10 मिनट खींचना है....ऐसा लग रहा था जैसे दिमाग की दही बन गई हो...काम करने वाला कोई नहीं और सारी जिम्मेदारी मेरे मत्थे...
बुलेटिन प्रोड्यूसर को सबसे पहले ये देखना पड़ता है किस खबर पर दिनभर खेला जा सकता है...मेरा मतलब है किस खबर को दिनभर खींचा जा सकता है...एक मासूम लड़की की खबर आई थी जिसके पेट में लकड़ी का बड़ा सा हिस्सा घुस गया था....इस खबर पर दिनभर खेला जा सकता था...रायपुर के हॉस्पीटल में उसका इलाज लच रहा था...हम दिनभर इसी खबर को तानते रहे....हर बुलेटिन में पहला सेगमेंट इसी पर टिका रहा....दर्शकों के भी खूब फोन आए मैसेज आए...आखिरकार लड़की का ऑपरेशन सफल रहा...हालांकि एक BP जो नाइट शिफ्ट में थे कुछ देर रुक गए मेरी मदद के लिए...

किसी तरह शाम 4 बजे...मैं भगवान से मना रही थी हे भगवान ये लास्ट बुलेटिन बस सही सलामत निपट जाए...और भगवान का लाख-लाख शुक्रिया कि मेरे सारे सेगमेंट सही से RUN हुए...मैंने राहत की सांस ली...दिनभर चिल्ला चिल्ला कर मेरा गला सूख गया था....जिन लोगों ने मेरी आवाज ठीक से नहीं सी थी...उन्होंने आज मुझे चिल्लाते सुना....मतलब मैं अपने पावर का सही इस्तेमाल कर रही थी....एक बुलेटिन के दौरान हुआ यूं की मैंने तो बुलेटिन के सेगमेंट में कमिंग अप लगा रखा था...टेली प्रोंपटर(TP) पर एंकर के लिए लिख भी रखा था....पीसीआर से पैनल प्रोड्यूसर ने उसे प्ले कर दिया और एंकर... लिंक पढ़ना भूल गया....अब आउटपुट इंचार्ज ने मुझे फोन लगाया और पूछने लगे कि ब्रेक से पहले कमिंग अप में क्या दिक्कत आई...मैंने तो अपना काम परफेक्ट किया था मुझे समझ नहीं आया...मैंने पीसीआर फोन लगाया और पैनल प्रोड्यूसर से पूछा भई क्या माजरा है...उन्होंने बताया कि एंकर लिंक पढ़ना भूल गया....जब बुलेटिन खत्म हुआ एंकर ऊपर आए...तो मैंने पूछा आपने एंकर लिंक क्यों नहीं पढ़ा...उन्होंने उस वक्त तो अपनी गलती स्वीकार कर ली...लेकिन बाद में कहने लगे मैडम ने आज मुझे डांट लगाई है....ओह लगा सचमुच आज मैं हॉट सीट पर बैठ गई हूं...

दिनभर काम तो परफेक्ट रहा....लेकिन इस पूरे प्रक्रण में मैं खाना भी नहीं खा पाई...दिनभर भूखी प्यासी बस काम में लगी रही...इस बीच फोन पर कितने ही मैसेज आए...फोन आया...मैं किसी को रिस्पॉंस नहीं दे पाई....शाम को घर पहुंची...ऐसा लगा जैसे मजदूरी कर लौटी हूं...(दिमाग की मजदूरी) आधे घंटे तो आंखें बंद कर बिस्तर पर बे-सुध लेटी रही...उठने की हिम्मत नहीं हो रही थी...खैर मैं उठी...शाम 7 बजे...खाना बनाया...लेकिन खाने की हिम्मत नहीं थी...बिना खाना खाए ही बस सोने की इच्छा हो रही थी....थकान के मारे खाना खाने का मन ही नहीं हुआ...आखिरकार मैंने बिना खाए-पिए सोना ही उचित समझा...सच कहूं...इस वक्त मम्मी की याद आ गई..लगा काश इस वक्त मां मेरे पास होतीं...मुझे बिना खाए तो वो सोने न देती....

कभी-कभी सोचती हूं कैसी जिन्दगी हो गई है हमारी....अपने लिए भी सोचना का वक्त न रहा...खैर ये जिन्दगी भी मुझे पसंद है...क्योंकि कम से कम खुद को व्यस्त तो रख पाती हूं...और काम खत्म होने के बाद जब घर लौटती हूं तो कितना सुकून मिलता है इसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं

गुरुवार, अप्रैल 8

आखिर कब तक...?



दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमले ने प्रदेश को ही नहीं देश को भी हिला कर रख दिया....हमले की गूंज राजधानी दिल्ली तक सुनाई दी....कोलकाता में गृहमंत्री पी चिदंबरम के नक्सली समस्या पर दिए बयान के चंद घंटों बाद ही नक्सलियों ने इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया... इस हमले में हजारों की तादात में नक्सलियों ने 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया...
बंदूक की नोक पर या बारूद के ढेर में नक्सलियों की समस्याओं का समाधान कभी भी संभव नहीं है...इसके लिए नक्सलियों और सरकार को आमने-सामने तो आना ही होगा...साल 1967 से नक्सली आंदोलन शुरू हुआ जिसका गढ़ है पश्चिम बंगाल, बिहार झरखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ औऱ आंध्रप्रदेश... इन राज्यों के लोग आज भी नक्सली समस्या से जूझने को मजबूर है ...सरकार नक्सली समस्या से निपटने के लाख दावे करे...लेकिन आज भी देश के समक्ष ये समस्या मुंह बाए खड़ी है....आए दिन नक्सली कहीं न कहीं ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं जिसमें मासूमों को अपनी जान गवांनी पड़ती है...
इस समस्या का कोई ठोस समाधान नहीं निकाल तो क्या ये मुद्दा यूं ही खिंचता चला जाएगा और यूं ही हमेशा मासूम अपनी जान गवांते रहेंगे....सरकार का ग्रीन हंट ऑपरेशन क्या इस समस्या का समाधान निकाल पाएगा....ये एक गंभीर सवाल है....अक्सर नक्सल प्रभावित राज्य नक्ललियों की वारदात का और नक्सलियों के बंद का अंजाम भुगतते हैं...नक्सली बंद का देश पर कितना असर पड़ता है इसका जरा भी अंदाजा है उन्हें...रेल बंद, यातायात बंद, कारोबार बंद, शहर बंद....कभी सोचा है इससे लोगों को कितनी परेशानियां होती हैं...

एक दिन के प्रदेश बंद से करोड़ों का नुकसान होता है....ये केवल सरकार का नुकसान नहीं...कारोबारियों का भी नुकसान है....इसके लिए जिम्मेदार कौन है....क्या इस नुकसान से उन्हें कोई फायदा मिलता है...कदापि नहीं....तो फिर बंद का सबसे ज्यादा असर झेलने को कोई मजबूर है तो वो है आम जनता....जिसका नक्सलियों से कोई सरोकार नहीं है....और सरकार को इस बंद से कोई असर नहीं पड़ता....एक दिन अगर यातायात बंद हो तो यात्रियों को कितनी परेशानी होती है इसका अंदाजा वही लगा सकता है जो कभी बेमतलब बंद में फंसा हो...
एक बार मैं अपने घर जा रही थी...रायपुर से बिहार के लिए झारखंड उड़ीसा और पश्चिम बंगाल होते हुए ट्रेन रूट है...उस दिन मैं नाइट शिफ्ट में थी और सुबह साढ़े 8 बजे मेरी ट्रेन थी...रात साढ़े बारह बजे खबर आई की गया के पास नक्सलियों ने रेल पटरी उड़ा दी है...जिससे राजधानी की कुछ बागी पलट गई...मैं सोच में पड़ गई...कहीं इस रूट की ट्रेने भी बाधिन ना हो....जिस रूट पर पटरी उड़ाई गई थी वो था मुगलसराय रूट...मैंने सोचा इस रूट की ट्रेनें तो समय पर होनी चाहिए...रातभर सारे चैनल ने इस खबर को दिखाया सुबह भी ये खबर खिंचती रही...मैंने अपने डेस्क पर पूछा भी की यहां रूट तो प्रभावित नहीं हुआ हैं मुझे ऑफिस वालों ने बताया कि सारी ट्रेने समय पर हैं...मैं 7 बजे स्टेशन के लिए निकली...स्टेशन पहुंची...पूछताछ केन्द्र जाकर पता किया तो पता चला की मेरी ट्रेन भी अपने निर्धारित समय पर ही है...मेरी जान में जान आई....ट्रेन आई ...समय पर खुली भी लेकिन दोपहर 2 बजे जमशेदपुर स्टेशन के पास रुक गई और पता चला आगे नहीं जाएगी यहीं से फिर रायपुर के लिए वापस होगी....बड़ी अजीब लगा....रेलवे की कितनी बड़ी चूक थी...रात साढ़े से 12 ट्रेन रूट पर असर पड़ा और उन्हें दोपहर 2 बजे पता चला....मुझे रेलवे विभाग पर गुस्सा भी आया और खीझ भी....मन मसोज कर आगे का रास्ता सोचने लगी...पता चला ये ट्रेन यहां से वापस होगी लेकिन टाटा में दूसरी ट्रेन रूकी है जो पटना तक जाएगी....अब जमशेदपुर से टाटा तक का सफर किसी तरह तय करना था....बाकी लोग भी दूसरी ट्रेन से टाटा जाने का उपाय सोचने लगे...एनाउंस हुआ की टाटा के लिए एक ट्रेन आ रही है....तपती गर्मी में काफी देर इंतजार करना पड़ा...ट्रेन आई...हम टाटा ले लिए रवाना हुए....टाटा पहुंचे तो ट्रेन खड़ी थी....एक चीज अच्छी थी कि जिसमें पहली ट्रेन में हमारा रिजर्वेशन था उसी सीट पर हम यहां वापसी कर सकते थे...मेरी जान में जान आई क्योंकि टाटा से पटना का सफार काफी लंबा था और भीड़ काफी ज्यादा...खैंर मेरी सीट मुझे वापस मिल गई औऱ मैं आराम से बैठ गई...निर्धारित समय से काफी लेट थी ट्रेन घर वाले परेशान हो रहे थे...हालांकि मैंने घटना की जानकारी उन्हें दे दी थी....लेकिन समय समय पर वो जानना चाहते थे कि मैं कहां तक पहुंची हूं....कड़ी मशक्कत के बाद मैं घर पहुंची...लेकिन शरीर थककर चूर हो चुका था और मैं इतनी भागदौड़ में बीमार पड़ गई और मेरी छुट्टियां पूरी इसी में निकल गई...मुझे नक्सलियों पर गुस्सा आया...उन्हें किसी को इस कदर परेशान करने का कोई हक नहीं....


हालांकि सरकार चाहती है कि नक्सली एक मंच पर आएं औऱ अपनी मांगे सरकार के समक्ष रखें... लेकिन नक्सली इस पहल पर सामने आने को तैयार नहीं...आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गयी हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेती है। लेकिन बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद की सबसे बड़ी मार आँध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड, और बिहार को झेलनी पड़ रही है।

रविवार, अप्रैल 4

शादी का फंडा


"वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा "

शादी...एक पवित्र रिश्ता....एक ऐसा बंधन जिसका नाम सुनते ही दिल में एक अजीब सी हलचल होती है...इसे कोई जन्मों जन्मों का बंधन करार देता है...तो कोई इसे सामाजिक बंधन...लेकिन हर दिल शादी के सपने संजोता है...हर किसी की जिन्दगी में शादी का अपना महत्व है....इस रिश्ते में बंधने से पहले की अनुभूति भी बेहद अजीब होती है...चाहे वर हो या वधु दोनों सपनों की दुनिया में प्रवेश कर जाते है...अजब-अनोखे सपने बुनते है....और अपनी शादी को सबसे यादगार बनाने की ख्वाहिश
में डूब जाता है....जिंदगी में एक बार ही शादी होती है....तो भला लाइफ पार्टनर भी क्यों न हो बेहद खास...सबसे अच्छा....सबसे खूबसूरत...और सबसे अहम बात तो ये कि....वो हो आपकी पसंद के अनुसार...साथ ही घर वालों की भी पसंद में खरा उतरे....'तो सोने पे सुहागा'...ऐसे में भले ही तलाश में थोड़ा वक्त लगे लेकिन...युवा अपनी शादी में कोई Compromise नहीं करना चाहते...अरे भाई करे भी क्यों…पूरी Life का सवाल जो है.....

हमारे देश में हर जाति हर धर्म में इतने रीति रिवाज हैं कि लोग इसमें बंधने के एसहास मात्र से पुलकित हो उठते है...सबसे पहले तो शादी के लिए अच्छे वर-वधु की तलाश में लंबा वक्त निकल जाता है...परेशानियां अलग होती हैं....लड़की ही नहीं लड़के के पिता को भी अच्छे मैच के लिए जूते घिसने पड़ते हैं....बात जब पक्की हो जाती है तो...शादी की तैयारियों में महीनों बीत जाते हैं....शादी में दोनों पक्ष के खर्चों की बिल की फेहरिस्त भी काफी लंबी-चोड़ी होती है...शादी की पूरी विधि भले ही दो चार दिनों में निपट जाती हो...लेकिन वर-वधु के सामने नाते-रिश्तेदार होते हैं...उनके लिए ये दिन बेहद स्पेशल होता है...कहने का मतलब हमारे देश में शादियों के लंबे समय तक टिकने की सबसे बड़ी वजह यही होती है...यहां के रीति रिवाज इतने लंबे चौड़े होते हैं कि दुल्हन और दूल्हे को लगता है कि ये भला कैसे टूट सकता है....कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो जन्मों जन्मों के इस बंधन को चाहते हुए भी वो नहीं तोड़ पाते हैं....शादी टूटने से पहले उनके सामने होती हैं वो सारी यादें नाते रिश्तेदारों का साथ...सबके चेहरे की मुस्कान और सबसे अहम अग्नी के सामने जन्मों-जन्मों तक साथ निभाने की कस्में उन्हें याद आ जाती हैं जो उन्हें फिर से पिरो देतीं हैं एक सूत्र में.....

आज युवाओं के पास वाकई सब कुछ है। युवा कहने का मतलब केवल वर नहीं इस फेहरिस्त में अब वधुएं भी शामिल हो गई हैं...बेहतरीन करियर, बैंक बैलेंस, घर, गाडी, सुख-सुविधाएं, दोस्त..। इन सबके बीच शादी कहां है? ओह गॉड, ऐसी भी क्या जल्दी है! कुछ दिन तो चैन से जीने दो...अक्सर युवाओं का जवाब ऐसा ही होता है।


एक फ्रेंच कहावत है कि युवा उम्मीद में जीते हैं, बूढे यादों में, लेकिन युवा वर्ग की ये उम्मीदें इतनी होती हैं कि जिंदगी के अन्य पहलुओं के बारे में सोचने का मौका नहीं मिलता। शादी भी उनकी प्राथमिकता सूची में पीछे खिसकती जा रही है।


मेरा एक दोस्त था...जिसे शादी के बारे में पूछो तो बड़ा उखड़ा सा जवाब देता था....कहता ‘’बेवकूफ लोग ही शादी करते है’’....हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसकी शादी तय हो गई...शादी के बाद जब वो शख्स लौटा तो उसकी बातों में....उसके सोचने के तरीके में बदलाव साफ-साफ झलकता था...अब उसकी जिंदगी काफी संवर गई थी...उसकी राय भी बदल गई थी...उससे जब हमने शादी के बारे में पूछा तो उसने बड़े सरल अंदाज में जवाब दिया...’’यार कुछ भी कहो शादी के बाद जिंदगी और भी हसीन हो जाती है’’..











पिछले कुछ वर्षो में शादी की उम्र तेजी से आगे खिसकी है। महानगरीय युवाओं में सिंगल रहने के साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड बढ़ रहा है। शादियां भी हो रही हैं, लेकिन उस तरह नहीं, जैसी अपेक्षा पुरानी पीढ़ी को थी। रिश्ते जन्म-जन्मांतर के बंधन के बजाय सुविधा बनते जा रहे हैं। वैसे देखा जाए तो सभी लड़कों या लड़कियों पर इस तरह के आरोप नहीं लगाए जा सकते...हां दो चार ऐसे मामले सामने आए तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि जितने भी लड़के या लड़कियां घर से बाहर रहकर नौकरी कर रहे हैं सभी एक जैसे हो...कहने का मतलब सभी लिव इन रिलेशनशिप में यकीन करते हो ऐसा बिल्कुल नहीं है....उनमें से कई ऐसे होते हैं जो अपने संस्कारों को नहीं भूलते....महानगर हो या दुनिया का कोई भी कोना...इस-तरह के रिलेशनशिप में वो यकीन नहीं करते....हां इसके लिए एक बात बेहद अहम हैं घर से बाहर रहनेवालों को समझने की जरूरत हैं....आप बिना सोचे समझे उनपर ऐसे आरोप नहीं मढ़ सकते...ऐसा भी नहीं है कि उनके सामने ऐसे प्रस्तावों की कमी है...लेकिन उनके लिए उनका परिवार ज्यादा मायने रखता है...
माता-पिता लाडले बेटे को दूसरे शहर या देश भेजने से पहले केवल सर्वगुणसंपन्न व गृहकार्य में निपुण लड़की के पल्ले उन्हें नहीं बांध पाते।
लड़कों को चाहिए उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली लड़की....उनके दोस्तों के समक्ष बेहतर दिखने वाली लड़की...जिन्हें वो शान से introduce करा सके....इस पवित्र रिश्ते के चयन में बदलाव तो आया है, लेकिन बजाय इसकी आलोचना के उन स्थितियों-मूल्यों को समझने की कोशिश की जानी चाहिए जो युवाओं की सोच को निर्धारित कर रही हैं। अब नौकरी पेशा लड़कियां भी अपने जीवनसाथी में सर्वगुण संपन्नता चाहती हैं....उनकी डिक्शनरी से भी समझौता शब्द निकल गया है...लड़की के लिए शादी काफी मायने रखता है...देखा जाए तो शादी के बाद वर और वधु दोनों की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती हैं...ऐसे में लड़कियां भी चाहती हैं...उनका होने वाला पति उसे गहराई से समझे उसकी भावनाओं की कद्र करे....वाकई युवाओं के लिए विवाह का निर्णय लेना मुश्किल होता रहा है... क्योंकि करियर बनाना इतना आसान नहीं....आज भी छोटी से छोटी नौकरी पाना बेहद मुश्किल हैं....कैरियर बनाना और उसे एक अच्छे मुकाम तक पहुंचाना पापड़ बेलने से कम नहीं....हालांकि लड़कियां भले ही करियर को प्राथमिकता दोती हों....लेकिन उसे परिवार और पति से प्यारा करियर नहीं होता...शादी के बाद यदि पति उसे नौकरी छोड़ने की सलाह देता है तो भी वो खुशी-खुशी अपनी नौकरी को तिलांजली देने को तैयार हो जाती है....वैसे देखा जाए तो अब लड़के भी लड़कियों के करियर को प्राथमिकता देते हैं और चाहते हैं शादी के बाद उसकी पत्नी का करियर चौपट न हो...आज के युवा शादी या कमिटमेंट से बचते हैं। करियर के चलते शादी में देरी हो ही जाती है।
लेकिन युवा कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते...
शादी को लेकर लडकों में भी अलग तरह का भय रहता हैं। उन्हें लगता है..पता नहीं लड़की उनकी भावनाओं को समझ पाएगी या नहीं...परिवारवालों को अपना पाएगी या नहीं...कहीं उसके आने से परिवार में बिखराव न आ जाए...लड़की अगर खर्चीली मिली तो कहीं उसका बजट न बिगड़ जाए....लड़कों का सोचना है कि शादी का फैसला माता-पिता ही लें तो बेहतर है। उन्हें लगता है पैरेंट्स ही बहू चुनें तो बाद में मुश्किल नहीं होगी। माता-पिता भी अपने विचार बच्चों पर नहीं थोप पाते...उन्हें काफी सोच समझ कर फैसला लेना पड़ता है...उन्हें लगता हैं उनका एक निर्णय उसके बच्चे की जिंदगी पर बोझ न बन जाए...


इस पूरे प्रकरण में पिसती है तो बेचारी लड़की...एक लड़की शादी के न जाने कितने सपने संजोती है...लेकिन जैसे-जैसे शादी की असलियत उसके सामने आती है बेचारी खुद पर भरोसा करना भूल जाती है...उसे लड़के वाले उसकी एक-एक कमी का एहसास दिला जाते हैं...माता-पिता ने भले ही कितने ही नाजों से उसे पाला हो....दुनिया की कोई परेशानी उसके सामने न आने दी हो...लेकिन जब लड़के वालों को दिखाने की बारी आती है...बेचारे लड़की के पिता बेबस और लाचार नजर आते हैं...एक एक कदम उन्हें सोच समझ कर रखना पड़ता है...एक एक शब्द नाप-तौल कर बोलना पड़ता है...न जाने कौन सी बात उन्हें बुरी लग जाए...भले ही कितनी भी अच्छी लड़की हो लड़के वालों की नजर उसकी अच्छाइयों से पहले उसकी कमियों की ओर जाती हैं...उन्हें चाहिए सर्वगुणसंपन्न लड़की...लड़का अगर नौकरी पेशा है तो उनके नखरे भी उतने ही ज्यादा होते हैं...समाज में इतना भेदभाव क्यों है?...ऐसा लगता है जैसे लड़की के पिता ने लड़की पैदा कर कोई गुनाह किया हो...अरे भाई उन्हें ये क्यों समझ में नहीं आता कि अगर कोई कमी है तो उसे बाद में भी पूरा किया जा सकता है....क्या लड़के वालों को इसका जरा भी एहसास है कि एक लड़की पर क्या बीतती है...उसे कितना बड़ा झटका लगता है...क्यों एक लड़की लड़के में कमी होते हुए भी अपना मुंह नहीं खोल सकती....क्यों आज की युवा पीढ़ी आगे नहीं आती....आज भी हम ऐसा मान्यताओं में जीने को मजबूर हैं....क्यों कोई खुलकर आवाज़ नहीं उठाता...लड़की इसलिए चुप बैठती है क्योंकि उसे इसी समाज में जीना है....कई बार लड़कियां अपने साथ हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज नहीं उठा पातीं....क्योंकि लड़किया उन्हें सहने को मजबूर होती हैं...लेकिन एक लड़का सब कुछ जानते हुए सब कुछ समझते हुए भी क्यों चुप बैठा रह जाता है...क्यों हमेशा उसे अपना और अपने परिवार का पक्ष ही सही लगता है...एक लड़की की तरफ खुद को रखकर भला कोई क्यों नहीं सोचता....आपकी लड़की पढ़ी लिखी है...अच्छी नौकरी में हैं तो भी क्यों एक पिता को अपना सर झुका कर चलना पड़ता है...ये बाते मध्यमवर्ग तक ही सीमित नहीं है उच्च वर्ग में भी हमेशा लड़की वालों को ही झुकना पड़ता है...
मैं कुछ दिनों पहले टीवी पर एक सीरियल देख रही थी...सीरियल में एक बंगाली परिवार...यूपी अपनी बेटी का रिश्ता लेकर जाते हैं...लड़का भी लड़की को बेहद पसंद करता है...लेकिन लड़के की मां और एक रिश्तेदार लगातार लड़की के पिता को ज़लील करते हैं... ओफसोस की बात तो ये कि सब कुछ देखकर और समझकर भी लड़का चुपचाप बैठा देखता रह जाता है....कितनी अजीब बात है...इन कुरीतियों के ख़िलाफ़ आखिर आवाज कौन उठाएगा....हम कब तक इन्हें झेलने को मजबूर होंगे....क्या समाज में फैली इन कुरीतियों को दूर करने कभी कोई आगे नहीं आएगा...?
















हालांकि इसमें कुछ नकारात्मक भावनाएं भी आई हैं...पहले सात फेरे होते ही लड़का-लड़की एक-दूजे के हो जाते थे। अब वो एहसास गुम होने लगा है। रिश्तों में दखलअंदाजी भी पहले इसलिए होती थी कि पति-पत्‍‌नी एक-दूसरे का साथ निभा सकें। अब यह नकारात्मक ज्यादा हो रही है। रिश्ता अब प्राइस टैग से जुड गया है। वर कितना कमाता है, वधु क्या लाएगी.., इनके बीच जीवन की खूबियां पीछे छूट रही हैं। कितना पाया-कितना खोया जैसा हिसाब जब करीबी रिश्तों में होने लगता है तो छोटी-छोटी खुशियां दूर जाने लगती हैं।
माता-पिता भी अब बहुत रोक-टोक नहीं करते। सामाजिक मूल्य बदले हैं। युवा भी शादी का फैसला आंख खोलकर लेना चाहते हैं। लड़कियों की निर्णय-क्षमता बढ़ी है। लेकिन लड़के भी अपने परिवारवालों के सामने कुछ बोल नहीं पाता...समाज में कई बार देखने को मिला है कि...लड़कियों ने दहेज या लड़के वालों की किसी नाजायज बात पर बारात को बैरंग भी लौटा दिया। ये खबरें छोटे शहरों की रही हैं। लडकियों की इस निर्णय-क्षमता की सराहना की जानी चाहिए। ये तो शुरुआत है, समाज में होने वाला हर बदलाव बेहतरी के लिए हो। इस राह में थोड़ी हानि हो, तो उसे इसलिए स्वीकारा जाना चाहिए कि वो बेहतर भविष्य के लिए है... शादी क्योंकि जिंदगी भर का फैसला होता है। आपका जीवनसाथी आपसे ज्यादा दहेज को महत्व दे....ये किस हद तक सार्थक है...ऐसे में आपकी अच्छाईयां धरी की दरी रह जाती है...लेकिन कई बार सबकुछ देखकर भी लड़की कुछ न कहने...कुछ न करने पर मजबूर होती है...क्योंकि उसे अपने घर परिवार की इज्जत बेहद प्यारी होती है... मैं ऐसे लोगों से इतना ही अनुरोध करूंगी कि रिश्तों को सौदे की शक्ल ना दें...आप अपने बेटे के लिए जीवनसाथी चुनने जा रहें है ना कि आप अपने बेटे को सौदा कर रहे हैं...



शादी जिंदगी का बहुत बड़ा फैसला है, जिसे सोच-समझकर लिया जाना चाहिए। देर से शादी हो तो इसमें कोई बुराई नहीं है। जरूरी ये है कि पहले मानसिक तौर पर आप तैयार हों...सिंगल बट नॉट रेडी टू मिंगल, यही आज का मंत्र बन चुका है।




नई पीढी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। शादी अब कमिटमेंट से ज्यादा कंपेनियनशिप है। हम पारिवारिक मूल्यों से अलग नहीं हो सकते, हम कहीं भी जाएं, अपनी जड़ों की ओर लौटते हैं। जीवन में संतुलन जरूरी है। आज के दौर में करियर या परिवार..जैसा कोई मुद्दा है ही नहीं। दोनों को एक साथ संतुलित ढंग से चलाना ही सही अर्थ में आधुनिकीकरण है। हम कहते हैं शादी सात जन्मों का बंधन हैं...लेकिन क्यों एक जन्म में ही वो हमें बोझ लगती हैं...क्योंकि इसके लिए बेहद जरूरी है कि जीवनसाथी आपके अनुसार हो...और ये तभी संभव है जब आप सोच समझ कर शादी का फैसला लें..अपनी आंख-कान खुली रख कर सोच विचार कर फैसला लें....तभी आपका एक जीनव सहीं ढंग से खुशी-खुशी निकलेगा...और दूसरे....तीसरे...चौथे...पांचवें...छठे...और....सातवें जन्म भी वैसे ही गुजर जाएंगे....



''सर्वमंगल-मांगल्ये शिवे सर्वाथॆ-साधीके॥"

गुरुवार, अप्रैल 1

सानिया का सामना



सनसनी सानिया...

बेचारी ना चाहते हुए भी अक्सर विवादों में फंस जाती है...कुछ लोग विवादों से शोहरत बटोरते हैं और कुछ अनचाहे विवादों में खुद-ब-खुद उलझ जाते हैं...लेकिन सानिया अनचाहे विवादों से अक्सर घिर ही जाती हैं....सानिया की सगाई हुई तो विवाद...सगाई टूटी तो विवाद...दूसरी जगह दिल लगाया तो विवाद...किसी के साथ रिश्तों में बंधी तो विवाद....कोर्ट में खेलने से चूक गई तो विवाद...कपड़ों पर विवाद...खेलने पर विवाद....ऐसा लगता है जैसे सानिया का विवादों से चोली दामन का साथ हो...अब सानिया की जब से शोएब के साथ शादी की खबर आई है..देश में जैसे हड़कंप मच गया है...कहते हैं प्यार सीमाओं को भी लांघ जाता है...अब सानिया का दिल पाक खिलाड़ी शोएब पर आ गया तो इसमें भला उसका क्या कसूर लेकिन हमारे देश के कुछ वरिष्ठ जनों को सानिया की शादी की खबर मात्र से बड़ा गहरा सदमा लगा है...अब महाराष्ट्र में अबू आजमी को ही देख लीजिए...विधायक भी पीछे नहीं है...सपा के नेता भी हाथ धो कर पीछे पड़ गए है..तो भला बाल ठाकरे कुछ कहने से कैसे बाज आते
मराठीयों के मुखपत्र सामना ने तो देश को सुधारने का जैसे ठेका ले लिया है...कुछ भी करो हमारे आदरणीय बाला साहब ठाकरे से पूछ कर करो...नहीं तो वो नाराज हो जाएंगे भाई...सानिया की शादी की भनक लगते ही....बाल ठाकरे ने अपने मुखपत्र सामना में सानिया को सलाहें दे डालीं...मसलन सानिया खेल से ज्यादा अपने तंग कपड़ों को लेकर चर्चा में रही है... शिवसेना ने शादी पर ऐसराज जताते हुए कहा है कि सानिया को अगर भारत से इतना ही प्यार था तो वो पाकिस्तान में शादी क्यों कर रही हैं... वैसे मैं सानिया के सामना में हम बाल ठाकरे के सामना की बात नहीं कर रही...मैं तो सानिया की अग्नी परीक्षा के विषय में बात कर रही हूं...सानिया की शादी में कई अडंगे लग गए हैं... सानिया और शोएब की शादी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मामला गरमा गया है...सबसे बड़ा सलवाल है सानिया किस देश की और से खेलेगी? भारत या पाकिस्तान…! अब सानिया को लेकर सियासत तेज हो गई है...दोनों देश अपनी अपनी दावेदारी जता रहे हैं...चुनाव सानिया को करना है...






वैसे सानिया को चाहने वाले भी उनके तंग कपड़ों पर टिप्पणी करने से बाज नहीं आते...अगर सानिया तंग कपड़े पहनती है...टैनिस कोर्ट में मिनी स्कर्ट पहनती है और उन्हें देखकर उनके चाहनेवालों को परेशानी होती हैं तो मैं उनके चाहनेवालों से यही कहूंगी..देश में कितनी ही सानिया मिर्जा है जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं है...उनमें से कितने ऐसे लोग हैं जो आगे बढ़कर उनका तन ढकने के लिए कपड़े दान करते हैं...सानिया सेलिब्रिटि है तो उसके कपड़ों से परेशानी भला क्यों ? उसकी मर्जी है वो जैसा पहनना चाहे उसके लिवास पर हम छीटाकशी करने वाले कौन होते हैं ?
सानिया के तंग कपड़ों की फिक्र उनकी सासू मां को भी सताने लगी है...तभी तो उन्होंने कह दिया कि सानिया का विदेश जाना...पराए मर्दों से बातें करना और टेनिस कोर्ट में छोटे कपड़े पहनना उन्हें पसंद नहीं....अरे सासू मां सानिया से आपका बेटा इसलिए शादी करने को तैयार है क्योंकि उसने उसे उसी रूप में पसंद किया है....नहीं तो वो भी तो एक सामान्य लड़की ही होती ना...तब क्या आपका बेटा उसे पसंद करता? नहीं ना...! एक बार बहू को घर तो आ जाने दो फिर प्यार से जो समझाएंगी बहू वैसा ही तो करेगी...है ना...! अब शादी से पहले ही इतनी बंदिशे क्या उचित हैं?.
अभी गांव बसा नहीं कि लुटेरे पहले ही आ गए... जी हां अभी सानिय-शोएब की शादी भी नहीं हुई और पाक ने सानिया को पाकिस्तान की और से खेलना का दावा भी ठोक दिया....पाकिस्तान टेनिस संघ के अध्यक्ष दिलावर अब्बास ने सानिया ही नहीं उनके होनेवाले बच्चों को भी पाक टीम में शामिल करने के सपने संजो लिए... हालांकि सानिया और सानिया के पिता ने स्पष्ट किया है कि वो भारतीय टीम की ओर से ही ऑलंपिक खेलेंगी...
वहीं सानिया के लिए नई मुसीबत बन गई उनकी सौतनें....अहमद सिद्धकी के बाद अब आयशा सिद्धकी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए शोएब की पहली पत्नी होने का जावा किया...तो दूसरी तरफ फिल्म अभिनेत्री सयाली भगत ने शोएब से रिश्तों की बात कुबूल ली...क्या होगा सानिया का...बेचारी कैसे झेल पाएगी ये अग्नी परीक्षा....और अगर अग्नी परीक्षा में खरी उतर भी गई तो अटकलें लगाई जा रही है कि ये शादी ज्यादा दिन नहीं टिक पाएंगी...क्योंकि रीना राय ने भी पाकिस्तानी खिलाड़ी से शादी की और बाद में उनका तलाक हो गया...
खैर सानिया की शादी की खबर से देश को झटका तो लगा ही है...साथ ही सबसे ज्यादा धक्का लगा है हमारे देश के युवा वर्ग यानी नौजवानों को...सानिया के बैनर पोस्टर से प्यार करने वाले कितने ही मजनुओ का दिल टूट कर चकना चूर हो गया है....सानिया की सगाई टूटने के बाद जहां उन्हें थोड़ी आस बंधी थी.....सानिया की शादी की खबर रही सही कसर भी खत्म कर दी....

ब्लॉग वाणी


आजकल लोगों को ब्लॉग लिखने का चस्का चढ़ा है...ये नया-नया शौक शुरू में तो बेहद अच्छा लगता है...लेकिन जब आप किसी विषय पर लिखकर उसे पोस्ट करते हैं...तो जाहिर सी बात है...आपके जेहन में आता है कि लोग इसे पढ़ें...लेकिन सिर्फ पढ़ने तक बात सीमित हो फिर तो कोई बात नहीं.....परंतु लिखनेवाले की हार्दिक इच्छा होती है कि पढ़नेवाले इसपर टिप्पणी यानी comment भी करें....भई अब लोगों के पास इतना वक्त नहीं की वो नव-आगंतुकों यानी नवसीखियों के उल्टे-सीधे विषयों पर वक्त जाया करें...हां इसके लिए बेहद जरूरी है कि आपके ब्लॉग के कुछ लोग फॉलोवर्स हों...ताकि वो इन्हें पढ़ें या ना भी पढ़े तो एक-दो टिप्पणी तो बिना पढ़े जड़ ही दें...सच कहूं तो टिप्पणी देखकर मन खुश हो जाता हैं....लगता है चलों जो लिखा सार्थक हो गया...अब नए-नए लिखनेवाले इतने प्रसिद्ध तो हैं नहीं कि इनपर टिप्पणियों की बैछार हो जाए...जैसा अभिनेता अमिताभ बच्चन के लिखे एक पोस्ट पर हजारों लोग अक्सर कर देते हैं...








ब्लॉग लिखने के लिए जरूरी नहीं की आप कोई महान हस्ती हों....हो सकता है आपका लिखा एक पोस्ट लोगों को भा जाए और कई लोग आपके लिखे पर टिप्पणी कर दे...और ये भी हो सकता है कि आप ब्लॉग पर पोस्ट पर पोस्ट करते जाएं और आपको एक भी टिप्पणी ना मिले...लेकिन हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं...आप अपना काम जारी रखिए...कभी ना कभी तो लोगों की उसकी महत्ता का एहसास होगा...


ब्लॉग...वैसे देखा जाए तो कोई भी लिख सकता है...ये तो आपके भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है....इसके लिए जरूरी नहीं कि आप साहित्यिक हो या कोई महारथी हो...बस आपके लिखे विषय में लोगों को पढ़ने में दिलचस्पी हो...हां ये अलग बात है कि पत्रकार और साहित्यकार कुछ लिखना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं...बात भी सही है क्योंकि उनकी कलम ही उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया है...जितना अच्छा आप लिख सकते हैं उतनी ज्यादा आप प्रसिद्धि के करीब होते हैं...अक्सर मैंने देखा है कुछ लोग ब्लॉग लिखते हैं और अपने दोस्तों को लिंक भेजते हैं...कि भाई इसे पढ़ो....मगर इसके पीछे उनकी मंशा होती है कि भाई एक दो टिप्पणी भी लिख दो...कितनी अजीब बात है हम लोगों से टिप्पणी की आस लगाते हैं...ताकि हमारा लिखा पोस्ट और आकर्षक लगे...पढ़नेवाले खुद ही इस बात को क्यों नहीं समझते?


ब्लॉग लिखने वाले कुछ पुराने महारथी तो कई सालों में पाठकों की लंबी फेहरिस्त से जुड़ पाए होंगे...उन्हें भी पढ़ने वाले इतनी आसानी से थोड़े ही मिले होंगे...उन्हें भी काफी मशक्कत के बाद पाठकों ने सराहा होगा....हां नवसीखियों के लिखे पोस्ट पर एक दो टिप्पणी भी आ जाए तो लिखने का उत्साह चौगुना हो जाता है...अगर किसी पोस्ट पर टिप्पणी ना मिले तो लगता है शायद पाठकों ने इसे नकार दिया है...बड़ा अफसोस होता है....कुछ लोग तो आपके ब्लॉक को पढ़ भी लें या एक सरसरी निगाह देख भी ले... तो भी टिप्पणी करना उचित नहीं समझते....ऐसे लोगों से सादर निवेदन है कि कृप्या नए लोगों की लिखी चीजों की सराहना न सहीं कम से कम उसकी लिखी बातों पर सुधार के दो शब्द ही लिख दें...शायद आपके लिखे दो शब्द उसे और अच्छा लिखने को प्रोत्साहित करे....



हमारा एक साथी है....बेचारे ने ऑफिस में लोगों को ब्लॉग लिखते देखा तो उसका भी मन डोल गया...उसने सोचा मैं क्यों पीछे रहूं....उसने भी ब्लॉग लिखना शुरू किया... कई दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद उसने एक ब्लॉग पोस्ट किया....ऑफिस में सबको बुला बुला कर पढ़ाया औऱ सबसे निवेदन की कि ब्लॉग को पढ़ने के बाद टिप्पणी जरूर लिखे...यहां तक कि ऑफिस में जितने इंटर्न आए थे सबको रोक-रोक कर अपने ब्लॉग की जानकारी दी...लिंक भेजा....ऑफिस के सभी कर्मचारियों को अपना ब्लॉग पकड़ पकड़ कर दिखाता...मुझे भी उसने अपना ब्लॉग दिखाया....देखकर अच्छा लगा...उसने ब्लॉग का स्ट्रक्चर काफी अच्छा दिया था...मैंने उसकी सराहना की...हालांकि उसका लिखा नहीं पढ़ पाई थी..बस ऊपर का विषय देखकर मैंने बंद कर दिया...मेरे पास वक्त की कमी तो थी ही साथ ही उसने बाल ठाकरे पर लेख पोस्ट किया था...जिसे पढ़ना मुझे नागवार गुजरा....उस वक्त सभी इसी टॉपिक को घसीट रहे थे....मैं कुछ नया पढ़ना चाहती थी....हालांकि कुछ दिनों बाद पता चला कि हमारे इस साथी ने ब्लॉग में पोस्ट की चोरी की है...ये किसी और ने लिखा था और उसने पूरा का पूरा कॉपी+पेस्ट कर लिया था....इसका खुलासा तब हुआ जब उसी टॉपिक को गूगल पर सर्च किया गया...बेचारे की घिग्गी बंध गई...हर किसी ने उसकी जमकर आलोचना की....सबने उसे सलाह दी ’’कम से कम ब्लॉग पर तो आप अपने मन की अभिव्यक्ति उतारो किसी का चुराया हुआ कब तक काम आएगा...!’’





वैसे कई बार तो ऐसा भी होता है कि आप कुछ लिखते हैं और ऐसे लोगों की अपके पोस्ट पर टिप्पणी आती है जिन्हें आप दूर-दूर तक नहीं जानते..मैंने ब्लॉग पर कुछ दिनों पहले लिखा और दूसरे दिन जब मैंने देखा तो कई टिप्पणियां देखने को मिलीं...मुझे बेहद खुशी हुई...एक टिप्पणी कनाडा से एक ऐसे महाशय ने भेजी जिनके लिखे एक पोस्ट पर सौ से भी ज्यादा लोग टिप्पणी करते हैं...हजारो लोग तो उनके ब्लॉग के फॉलोवर्स है...मुझे बड़ा आश्चर्या हुआ...और सच कहूं तो बहुत अच्छा लगा...उनके लिखे सुझाव ने मुझे अपने लेख को और बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने को प्रेरित किया....

मैं ब्लॉगर बंधुओं से इतना ही कहूंगी कि आप अपना लिखना जारी रखें और ब्लॉग पढ़नेवालों से निवेदन करूंगी कि अगर आप किसी का ब्लॉग पढ़ें तो टिप्पणी लिखने में कंजूसी ना बरते...लिखने वालों को इस से काफी उत्साह मिलता है...और आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है....आपकी लिखी एक टिप्पणी उसके लिए बेहद कीमती है....जिसका शायद आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते...