मंगलवार, अक्तूबर 27

नशे की गिरफ्त में दुनिया

कौन कहता है शराब पीना या सिगरेट पीना ही सिर्फ बुरी लत्त या यू कहें की नशा है...? लत्त अब कई तरह के हो गए हैं... जैसे इंटरनेट की लत्त....फोन पर बाते करने की लत्त...टीवी देखने का नशा... कुछ ख़रीदने यानी शॉपिंग का नशा...आधुनिक उपकरण बाज़ार में आए नहीं की उसे झट से ख़रीद लेने का नशा...ज्यादा बोलने की लत्त...कुछ लिखने या पढ़ने का नशा......घूमने की लत्त......खेलने का नशा...और भी कई तरह का नशा हैं
नेट का नशा
इनमें इंटरनेट का नशा आज सिर चढ़कर बोल रहा है...युवा ही नहीं बच्चे भी इंटरनेट से चिपके नज़र आते हैं...नेट पर घंटों बीत जाता हैं और पता ही नहीं चलता...सारे कामकाज छोड़कर लोग नेट पर बैठे रहते हैं...लोग हर रोज़ सुबह-शाम अपना मेल चैक करना नहीं भूलते...नेट ऐसा माध्यम बनता जा रहा है जिसके बिना लगता है सारा काम अधूरा है...नेट पर चैट करना हो या विडियो कॉन्फ्रेंसिंग...लोग इनमें खूब समय बर्बाद करते हैं....और रम जाते हैं...बच्चों के लिए तो गेम्स की भरमार नेट पर मौजूद है...पिक्चर्स देखनी हो गाने सुनने हो या फिर खेल की ताज़ा जनाकारी लेनी हो…पलक झपकते ही आपके सामने सबकुछ हाज़िर है...ऐसा लगता है अलादीन का चिराग हो नेट...समाचार जानना हो या किसी गहन मुद्दे की अपटुडेट जानकारी हासिल करनी हो सबकुछ आपको मिल जाएगा इसपर...आप नेट के माध्य से दुनियाभर से जुड़ सकते हैं...आज तो फोन पर भी नेट मुहैया करा दी गई है...लोग दिनरात नेट से जुड़े रहते हैं...वैसे बड़े काम की चीज़ है ये नेट...और इसका नशा ऐसा कि एक बार लग जाए तो जीवनभर आप इससे छुटकारा नहीं पा सकते...

फोन की लत्त
मोबाइल ही नहीं लैंडलाइन पर भी लोग घंटों बतियाते रहते हैं...ऐसा नहीं है कि लोग हर समय काम की ही बातें करते हैं...लोगों के पास ढेर सारा समय है फोन पर बर्बाद करने के लिए...दिनभार की जानकारी हासिल करनी हो या किसी की चुगली करनी हो लोग फोन का सही इस्तेमाल करना जानते हैं…प्रेमी प्रेमिका के लिए तो बड़े काम की चीज़ है ये फोन औऱ ऊपर से फोन पर कुछ चार्ज लेकर 24 घंटे फ्री सेवा ने तो इनका काम और भी आसान कर दिया है...एक दिन आपका फोन खराब हो जाए या आपका फोन गुम हो जाए ऐसा लगता है जैसे दुनिया से आप बिल्कुल कट से गए हों...

टीवी देखने या
न्यूज पेपर पढ़ने का नशा
ये भी अजीब बीमारी है इसके मरीज़ बिना टीवी देखे या बिना अखबार पढ़े एक दिन भी नहीं रह सकते...वैसे टीवी यानी बुद्धू बॉक्स ने सबके मनोरंजन का ठेका उठा रखा है...हर वर्ग को ध्यान में रखकर इसमें मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं...घर की गृहणियों के लिए सास बहू के सीरियल और फिल्मी जगत की चटर-पटर हैं तो वहीं युवाओं के लिए अनेक संगीत और खेल चैनल...बुजुर्गों के लिए समाचार और अर्थव्यवस्था से जुड़ी खबरें हैं योगा और हास्य मनोरंजन से भरपूर सीरियल हैं तो बच्चों के लिए कार्टून और ढेर साले रियलीटि शो हैं
वहीं अखबार एक दिन देर से ही सही लेकिन लोगों को लिखित जानकारी मुहैया कराता है...इतनी सारी चीज़ें आपको एक साथ मिल जाए तो आप भला इनके चंगुल से खुद को कैसे बचा सकते हैं?
शॉपिंग का नशा
कुछ लोगों को शापिंग का नशा इस कदर होता है कि बाज़ार में चीज़ आई नहीं की बस इसे ख़रीदना हैं...महिलाओं और लड़कियों को जहां कपड़े और गहने ख़रीदने का नशा होता है नए डिजाइन के कपड़े बाजार में आए और उनके पास वो परिधान होने चाहिए...उस डिजाइन के गहने पहनने हैं तो पहनने हैं...वहीं युवाओं को नई बाइक्स औऱ नया हैंडसेट (मोबइल) खरीदने का नशा छाया रहता है...कुछ लोगों को नई गाड़ी ख़रीदने का नशा होता है तो कुछ को नया घर खरीदने का...

बोलने की लत्त
कुछ लोग इतने बातूनी होते हैं कि उन्हें ख़ुद ही नहीं पता होता है कि वे क्या बोल रहे हैं...कब क्या बोलना है...इससे अनजान वे कभी भी कुछ भी बोल जाते हैं...कई बार अपनी इस हरकत के कारण तो वे लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं लेकिन कई बार अपनी इस आदत के कारण बुरी तरह फंस भी जाते हैं...लेकिन उनके मुंह पर ताला नहीं लगाया जा सकता...वैसे बोलना भी एक कला है…जो सबके बस की चीज़ नहीं…कुछ लोग तो अपने बोलने की आदत से ही लोगों के बीच मशहूर हो जाते हैं...और लोगों को उनकी कमी खलती है

लिखने या पढ़ने का नशा
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कुछ लोग लेखन कार्य पर भरोसा करते हैं...वैसे भी अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है लेखन कला...इसके माध्य से आप अपने दिल की बात बेहद आसानी से दुनिया के सामने रखते हैं...कुछ लोगों को लेखन का बड़ा शौक होता है...बिना लिखे उनका वक्त ही नहीं गुज़रता...वैसे ये ऐसा माध्यम है जो आपको मर कर भी अमर बना सकता है...कई लेखक...शायर...कवि...पत्रकार अपनी लेखन कला से मरकर भी अमर हो गए...दुनिया आज भी उन्हें याद करती है...और लोग उसे पढ़ते हैं उनका सम्मान करते हैं...
देखा जाए तो कुछ लोगों की पढ़ने का ऐसा चस्का होता है कि वो अपनी किताबों में इस कदर खो जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता की उनके आस-पास हो क्या रहा है...दीन-दुनिया से बेख़बर वो अपनी किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं...
एक बार मैं अपने पापा के साथ एक एक्जाम देने बनारस जा रही थी...ट्रेन में मैंने एक लड़की को देखा...देखने में तो वो टॉम ब्वॉय जैसी लगी...वो भी मेडिकल का एक्जाम देने दिल्ली जा रही थी...मोटी सी किताब उसके हाथ में....हालांकि मैं भी अपनी किताबों में खोई थी...लेकिन उस लड़की ने तो सुबह १० बजे से शाम ६ बजे तक लगातार आंखें गड़ाए रखा...मैंने तो बीच में थोड़ी देर के लिए आराम भी किया लेकिन उसने अपनी पलकें एक पल के लिए भी नहीं झपकी...मैं उसे देखकर दंग रह गई


घूमने का नशा
कुछ लोगों का देश दुनिया घूमने का नशा होता है...वैसे देखा जाए तो हर इंसान के दिल में दुनिया देखने की इच्छा होती है...कुछ लोग अपनी छुट्टियों का भरपूर फायदा घूमकर ही तो निकालते हैं...देश विदेश के पर्टयन स्थलों के साथ साथ लोगों को एडवेचर्स प्लेस जाने का भी नशा होता है...इसके लिए लोग नदी...तालाब..पहाड़ की कंदराओं गुफाओं में खोज पर निकलते हैं..बर्फीले पहाड़ों पर घूमते हैं...समुद्र की गहराइयों को नापते हैं...वैसे ये नशा है बड़ा ही शानदार...और दिलचस्प खेलने की लत्त
खेल के नशे की गिरफ्त में दुनियाभर के आधे से ज्यादा लोग घिरे हैं...क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी तो सबसे ज्यादा है...देखना ही नहीं लोग स्वयं खेलना भी बेहद पसंद करते हैं...लड़कों के लिए तो क्रिकेट सबसे रोचक खेल है...हर वर्ग के लोग इसको इंज्वॉय करते हैं...खासतौर पर जब इंडिया और पाकिस्तान के बीच मैच हो तो...मैच ऐतिहासिक बन जाता है...कई घरों में तो टीवी तक लोग फोड़ डालते हैं...भले ही हर महीने कोई न कोई मैच आयोजित हो रहे हैं...लेकिन लोगों की दीवानगी देखते ही बनती है...इसके अलावा भी कुछ लोग हॉकी, टेनिस और अन्य खेलों के प्रति रुझान दिखातें हैं...खासतौर पर जब मैराथन का आयोजन होता है तो प्रतिभागियों के साथ-साथ नेता और अभिनेता भी इसमें अपनी भागिदारी निभाते हैं

कुल मिलाकर देखा जाए तो आज पूरी दुनिया किसी न किसी नशे की गिरफ्त में हैं

सोमवार, अक्तूबर 26

क्योंकि हम गरीब हैं....!


हम गरीब हैं....
हमारे पास सब कुछ है, लेकिन फिर भी हम गरीब हैं...
हमारे पास प्रतिभा है, लेकिन हम गरीब हैं...
क्योंकि देश में प्रतिभा की पहचान नहीं...
प्रतिभाशाली छात्र देश छोड़ विदेशों का रुख कर रहे हैं...
क्योंकि हम गरीब हैं...
हमारे पास सभी संसाधन हैं
लेकिन उसका सही इस्तेमाल हम नहीं करते
हमारे पास आधुनिक यंत्र बनाने की क्षमता है
लेकिन हम गरीब हैं...उसे बनाने के लिए हमारे पास पूंजी नहीं
क्योंकि हम गरीब हैं...
हम एसी ऑफिस में काम करते हैं
हम एसी गाड़ियों में घूमते हैं...
जरुरत पड़ने पर हम हवाई यात्रा भी करते हैं
लेकिन फिर भी हम कहते हैं हम तो गरीब हैं
हम अपनी कमाई का सारा धन बैंकों में जमा करते हैं
और कहते हैं हम मध्यमवर्गी हैं
क्योंकि हम गरीब हैं...
हमारे घर में सभी आधुनिक उपकरण मौजूद हैं
लेकिन हमारे पास दिखावे के लिए कुछ भी नहीं...
क्योंकि हम गरीब हैं...
देश का सारा काला धन विदेशों में जमा होता है
क्योंकि हम आधुनिक गरीब हैं...

रविवार, अक्तूबर 25

देश की धड़कन...

सोनिया गांधी...एक ऐसा नाम जिस पर आज पूरा देश भरोसा करता है...चुनावी अभियान हो या किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा...देश के आला नेता भी सोनिया से सलाह लेना नहीं भूलते...कांग्रेस की जान सोनिया गांधी में बसती है तभी तो तीन राज्यों में चुनाव परिणाम में देश की जनता ने कांग्रेस पर अपनी मुहर लगाई महाराष्ट्र, हरियाणा और अरूणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सत्ता पर कब्जा जमाया...महाराष्ट्र और अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला है, वहीं हरियाणा में उसे सरकार बनाने के लिए सात निर्दलीय विधायकों की मदद की दरकार रही... हालांकि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कठघरे में खड़ा किया गया। लेकिन पार्टी ने अंतत: उन्हीं पर भरोसा किया। चुनाव में कांग्रेस की 'हार' के बावजूद कुर्सी की लड़ाई हुड्डा इसलिए भी जीत गए, क्योंकि कोई और दिग्गज पर्याप्त ताकत के साथ विधानसभा पहुंचा ही नहीं। कुछ पहुंचे भी तो उनके गढ़ में कांग्रेस साफ हो गई। इसलिए किसी प्रकार की जोखिम लेने से बचते हुए कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने हुड्डा को दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया। वहीं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी और सबसे ब़डी हार के बाद बाल ठाकरे जैसे अपना आपा खो बैठे। 44 साल तक मराठी मानुष की राजनीति करने वाले ठाकरे ने मराठी मानुष को गद्दार और धोखेबाज करार दिया... अरूणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस दो तिहाई बहुमत के साथ विजयी रही।आज हर राज्य में कांग्रेस का दबदबा देखने को मिल रहा है...लोगों का भरोसा कांग्रेस की और बढ़ता जा रहा है...राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद तबज्जों देते हैं...उनसे सभी मुद्दों पर सलाह लेते हैं...देखा जाए तो सीधे तौर पर न सही लेकिन देश की सही बागडोर कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के हाथों ही है...
इटली में जन्मी सोनिया से जब राजीव गांधी ने शादी की थी तब किसे पता था कि एक दिन सोनिया देश की जनता के दिलों पर राज करेगी...एक विदेशी बहू ने देश की संस्कृति और सभ्यता को बेहद अनोखे अंदाज में अपनाया है...पाश्चात्य परिधान छोड़ भारतीय परिधान को पूरी तरह तवज्जो दी है...देश की जनता के दिलों में राज करने के लिए हिन्दी को अपनाया... सोनिया दिखावे की भावना से परे हैं...हालांकि पति राजीव गांधी की हत्या के बाद कोंग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी लेकिन सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि “मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी।“ काफ़ी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। लेकिन पी वी नरसिंहाराव के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण 1996 का आम चुनाव हार गई और उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता चला गया...जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया । उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कोंग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे। एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए ... सुषमा स्वाराज और उमा भारती जैसी नेताओं ने घोषणा कर दी कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुँडवा लेंगीं और जमीन पर ही सोयेंगीं। राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा की सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एकबार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गई.

आज सोनिया के हाथों सफल नेतृत्व का जिम्मा है...ऐसा लगता है मानो देश की जनता ने बहू सोनिया को अब पूरी तरह से कुबूल लिया हो...सोनिया चाहती तो पति राजीव की मौत के बाद वो अपने दोनों बच्चों के साथ अपने देश वापस लौट सकती थीं...लेकिन सोनिया ने हिम्मत से काम लिया...भारत को ही अपना देश माना और यहां रहकर राहुल और प्रियंका का परवरिश की...परिवार के कई सदस्यों को राजनीति में खोने के बाद भी सोनिया ने हिम्मत नहीं हारी...हालांकि सोनिया को नेताओं ने भी खूब डराया...सोनिया से डराया गया की अगर उनकी आनेवाली पीढ़ी सत्ता में आई तो उनका भी वही हश्र होगा जो राजीव और इंदिरा गांधी का हुआ था...सोनिया ने अपरोक्ष रूप में सत्ता संभाली है...सोनिया ने देश की जनता के दिलों पर राज करना सीख लिया है...

सोमवार, अक्तूबर 12

प्यार की परिभाषा

प्यार एक अनोखी अनुभूति...

अजब सा एहसास






जिसे सच्चा प्यार मिल गया समझो उसका जीना सफल हो गया...





फिल्म कुछ कुछ होता है' में शाहरुख खान का एक डायलॉग है - इंसान एक बार जीता है, एक बार मरता है और एक बार ही प्यार करता है...


जिंदगी में इंसान को कई बार प्यार हो सकता है। यह बात दूसरी है कि पहला प्यार कोई भुला नहीं पाता। लेकिन सच्चा प्यार बड़ी ही मुश्किल से किसी को नसीब होता है...आज की हाईटेक लाइफस्टाइल में प्यार की परिभाषा बदल गई है...प्यार भी हाईटेक हो गया है...लोग प्यार कई चीजें देखकर करने लगे हैं...मसलन जेब...सैलरी...लाइफस्टाइल...और इन सबसे बढ़कर ये मायने रखता है कि आप सामनेवाले से ज्यादा हाईप्रोफाइल हैं या नहीं...साथ ही उनके जैसी समतुल्यता (equilibrium) रखते हैं या नहीं...आज प्यार ने अपनी परिपक्वता (puberty) को हासिल कर लिया है...

आज तक किसी ने प्यार की सटीक परिभाषा नहीं दी है...प्यार को किसी एक परिभाषा में बांध कर भी नहीं रखा जा सकता...प्यार की परिभाषा में समय-समय पर बदलाव आते रहे हैं...प्यार में कभी राधा कृष्ण का उदाहरण दिया जाता है...कभी हीर रांझे का...तो कभी लैला मजनू का...लेकिन आज के ज़माने में कहां हीर रांझे का प्यार...कहां जीने मरने की कसमें खानेवाले...प्यार में काभी बदलाव आ गया है...प्यार करने के तरीके में बदलाव आ गया है...पहले प्यार करने वाले एक दूसरे को मिलने को...उसकी एक झलक पाने को बेताब रहते थे...एक दूसरे की शक्ल देखने को तरस जाया करते थे...जिससे प्यार होता था उसके घर के चक्कर लगाया करते थे...लेकिन आज किसके पास इतना वक्त है...आज सभी अपने अपने काम में व्यस्त हैं...और 'तू नहीं तो कोई और सही' की तर्ज पर कोई तीसरे की तुरंत तलाश कर लेते हैं...अब फोन पर नेट कनेक्शन उपलब्ध हैं...वहीं नेट के विडियो कॉन्फ्रेंसिग ने दूरियां भी मिटा दी है...फोन ने लोगों को काफी राहत दी है...और दूरसंचार कंपनियों ने लोगों को घंटो बात करने की सुविधा उपलब्ध करा दी है...जिससे लोग हर समय फोन से चिपके नज़र आते हैं...आज के समय में जिसके पास फोन नहीं आता वो खुद को व्यस्त करने के नए नए हथकंडे अपना लेते हैं...देखा जाए तो आजकल की लड़कियां बिना एक भी ब्यॉफ्रेंड के नहीं रह सकतीं...खासकर कॉलेज गोइंग गर्ल्स में तो ब्यॉफ्रेंड बनाने का क्रेज काफी फेमस है...वैसे सही भी है...लड़कियां ब्यॉफ्रेंड बनाकर ख़ुद को सुरक्षित महसूस करतीं हैं...एक लड़का हर वक्त उसकी ख़ैरियत पूछता है...उसका ख़्याल रखता है...इसमें बुरा भी क्या है...आजकल लड़के-लड़कियां बिना एक ख़ास फ्रेंड के जिना बेकार का जीना समझते हैं...

जब पहला-पहला प्यार होता है तो लड़कियां अपनी खूबसूरती को लेकर काफी सतर्क हो जाती हैं...वो ब्यूटी पार्लरों के चक्कर लगाने लगती हैं...तो वहीं लड़के अपने आप को जिम में व्यस्त कर लेते हैं...उनको अपनी पर्सनेलिटी की फिक्र होने लगती है...उसके बाद बारी आती है बाइक्स के क्रेज़ की...वैसे भी लड़कियों को इम्प्रैस करने में गाड़ियां काफी महत्वपूर्ण स्थान रखतीं है...धीरे-धीरे प्यार गहराने लगता है...लेकिन ये प्यार परवान कम ही चढ़ पाता है...

आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल गई है...लोग प्यार को ज्यादा तरज़ीह नहीं देते...आज आपका जॉब ज्यादा मायने रखता है...ऐसा नहीं है कि प्यार करने वाले ख़त्म हो गए हैं...बल्कि प्यार में बचकानी हरकतों को छोड़ लोग अब गहन चिंतन के बाद ही कदम बढ़ाते हैं...हर तरह से नाप-तौल कर पूरी तरह खरा उतरने के बाद ही प्यार करते हैं...लड़कियां भले ही इनमें जल्दबाजी कर बैठे...लेकिन लड़के काफी सोच समझकर कोई फैसला लेते हैं...लड़कियां आज भी प्यार करने में दिल का इस्तेमाल करती हैं जबकि लड़के दिल का नहीं दिमाग का इस्तेमाल करते हैं...लड़कियां बहुत जल्दी जज्बाती हो जाती हैं...लेकिन लड़कों का दिल इस मामले में थोड़ा मज़बूत होता है...हम ये भी नहीं कह सकते कि लड़के सच्चा प्यार नहीं करते...लड़कों को भी कभी-कभी ही सही लेकिन किसी न किसी से सच्चा प्यार ज़रूर होता है...कहते हैं वो जवानी ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो...सच ही तो है...एक लड़का अगर किसी से सच्चा प्यार कर बैठे तो उसे भी अपने प्यार को ख़ोने का उतना ही ग़म सताता है जितना एक लड़की अपने प्यार को खोने पर मातम मनाती है...लेकिन ऐसी परिस्थिति लड़कों के साथ कम ही आती है...



हां एक बात और प्यार उसी से करे जो आपसे प्यार करे...प्यार उससे कभी नहीं करनी चाहिए जो आपको पसंद ही नहीं करता हो...उसके पीछे भागने से कोई फायदा नहीं...उसे भूल जाना ही बेहतर होता है लेकिन अगर आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं तो अपने प्यार को पाने की खातिर थोड़ा झुकना बेहत होगा...आपको इससे पीछे नहीं हटना चाहिए...किसी के सामने झुकने में कोई बुराई नहीं है...लेकिन उतना ही झुके जितना कि आप झुक सकते हैं...कहीं ये झुकाव इतना न हो जाए की आप टूट जाए...

रविवार, अक्तूबर 11

गलतियों से सीख


ग़लतियां किसी से भी हो सकती हैं...कभी भी हो सकती हैं...इंसान अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करता है कि उससे कोई ग़लती न हो...लेकिन जाने-अंजाने वो ग़लतियां कर बैठता है...ऐसा नहीं है कि आपके पास जानकारियों का अभाव होता है तभी आपसे गलतियां होती हैं...जानकारी होने के बाद भी कई बार जल्दबाज़ी में आप गलती कर बैठते हैं...लेकिन ग़लतियों पर मातम मनाने की ज़रूरत नहीं...जरूरत है तो उससे सीख लेने की ताकि भविष्य में वो गलती हम न दोहराए...
मैंने भी अब तक की अपनी पत्रकारिता की जिंदगी में कुछ गलतियां की हैं...जिन्हें मैं स्वीकार भी करती हूं...और मैंने इन गलतियों से सबक भी ली....मीडिया में छोटी-छोटी गलतियां भी काफी मायने रखती हैं...और आप एक शब्द की गलती से भी मुसीबत में फंस सकते हैं...इसलिए बेहद सतर्कता से काम करना पड़ता है...मेरी कुछ गलतियों ने मुझे काफी कुछ सिखा दिया....
मेरी पहली ग़लती...
एक बार मैं एक ख़बर बना रही थी...इसी बीच कोई दूसरी बड़ी ख़बर आ गई और अपनी पहली ख़बर को अधूरी छोड़ में दूसरी ख़बर लिखने में जुट गई...पहली खबर को मैंने पूरा नहीं किया था...मैंने क्लिप अटैच कर दिया था...तब तक उस खबर को बिना री-चैक किए उसे On Air कर दिया गया...उसमें एक गलती रह गई थी...खबर थी की उड़ीसा में हमला हुआ था और कुछ लोगों की मौत हो गई थी...इसपर उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया था और प्रधानमंत्री ने पीड़ित परिवारों को राहत पैकेज की घोषणा की थी...Reuters में खबर आई थी और उसे ट्रांसलेट कर हिन्दी में ख़बर बनानी थी...मैंने खबर अधूरी लिखी...और मुख्यमंत्री की जगह मैंने प्रधानमंत्री लिख दिया...मैं ख़बर को रीचैक नहीं कर पाई थी और तब तक बुलेटिन प्रोड्यूसर ने अपने बुलेटिन में ख़बर को मुझसे बिना पूछे On Air कर दिया...तुरंत PCR से फोन आ गया की ख़बर ग़लत बनी हैं...मैं परेशान क्योंकि मुझे इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं थी कि अधूरी ख़बर को On Air कर दिया गया है...अब बारी थी हमारी क्लास लगने की...बॉस ने मुझे और BP को बुलाया मुझसे पूछा गया तो मैंने साफ बता दिया कि मैंने खबर अधूरी लिखी थी...उसे मेरी जानकारी के बगैर On Air किया गया...अब बारी थी BP और कॉपी चैक करने वाले की...मैं तो उस दिन बाल-बाल बच गई...इस गलती के बाद मैंने सीखा की कोई भी खबर अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए औऱ अपना लिखा हमेशा चैक होने के बाद ही On Air होने देना चाहिए...
मेरी दूसरी ग़लती...
महाशिवरात्री के अवसर पर मुझे कुछ ब्रेकिंग ख़बर चलानी थी...मैंने ख़बर लिखी...On Air किया...मेरी शिफ्ट पूरी हो चुकी थी....मैंने ब्रेकिंग खबर आउट नहीं किया और मैं घर चली गई...मुझे लगा कि जो अगली शिफ्ट में आएगा वो इसे हटा ही देगा...पर ऐसा हुआ नहीं...उस ब्रेकिंग ख़बर पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया...मैं रात के 12 बजे उस ख़बर को लगा कर गई थी और वो ख़बर पूरी रात ब्रेकिंग के तौर पर चलती रही...अगले दिन सुबह 10 बजे तक ख़बर ज्यों की त्यों चली...सुबह बॉस आए...वो ब्रेकिंग को बड़े ध्यान से देखते थे...सुबह जब उस ख़बर में कोई अपडेट नहीं पाया तो उन्होंने शिफ्ट के सभी कर्मचारियों को बुलाकर सबकी क्लास लगा दी...रात में रहे सभी लोग बुरी तरह फंस गए थे...किसी ने भी इस ओऱ ध्यान नहीं दिया था...जब दूसरे दिन मैं ऑफिस आई तो मुझसे भी पूछा गया कि आपने ख़बर लगाकर क्यों छोड़ दिया...मैंने अपनी गलती स्वीकार कर ली...और मैंने ये भी कहा की अगली शिफ्ट वालों को इस ओर ध्यान देना चाहिए On screen क्या जा रहा है उनकी पूरी जिम्मेदारी उनकी बनती है...मेरी शिफ्ट में ये बडी़ ख़बर थी इसलिए मैंने इसे लगाए रखा...ख़ै़र मुझे अपनी ग़लती भी स्वीकारनी पड़ी...
मेरी तीसरी ग़लती...
बुलेटिन में स्टोरी स्लग बड़े अक्षरों में लिखा जाता है....जिस मीडिया हाउस में उस वक्त काम कर रही थी उसमें ऐसा सिस्टम था कि पहले उसे दूसरी जगह लिखकर उसे कॉपी करना पड़ता था उसके बाद स्टोरी स्लग की जगह उसे पेस्ट करना पड़ता था...वैसे भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम काफी तेज़ी से करना पड़ता है...क्योंकि जब तक आप सोचेंगे समझेंगे और लिखेंगे तब तक समय खत्म हो चुका होगा...आपको...सोचना...समझना और लिखना एक साथ पड़ता है...इसलिए आपके पास समय की कमी पड़ जाती है...और आपकी नज़र जब तक अपनी गलती की ओर जाती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है...
इस बार मैंने जो गलती की थी उसे अपनी पूरी जिंदगी नहीं भुला सकती....वाक्या ही कुछ ऐसा था...Business की ख़बर थी...एक स्टोरी स्लग आया था सेंसेक्स में भारी गिरावट...मैंने उसे लिखा...कॉपी किया...और स्टोरी स्लग की जगह पेस्ट कर दिया...मैंने उसे On Air किया और मैं दूसरा स्टोरी स्लग लिखने लगी...मेरा ध्यान उस ओर नहीं गया...
बुलेटिन ख़त्म हो गया और मुझे मेरी गलती का पता ही नहीं चला...इस बीच मैं अपने माता-पिता से मिलने 15 दिनों के लिए अपने घर मुज़फ्फरपुर चली आई...कुछ दिनों बाद मेरे एक सहकर्मी का फोन आया...उसका कहना था कि एक बुलेटिन में मैंने एक स्टोरी स्लग गलत लगाया था...मुझे याद नहीं था किस दिन मैंने गलती की...दरअसल उस पर तो किसी की नज़र नहीं गई लेकिन...जब भी कोई बुलेटिन On Air होता है तो उसकी गलतियों के लिए एक सेल बना होता है जो बुलेटिन की गलतियों को नोट करता है...बुलेटिन रिपोर्ट में वो गलतियां आ जाती हैं...मैंने सेंसेक्स को तो कॉपी किया था लेकिन इस शब्द में से पहला अक्षर मुझसे कॉपी नहीं हुआ था...अब तो अर्थ का अनर्थ बन गया था...मैं घर से लौटी...मैंने उस डेट का बुलेटिन रिपोर्ट चैक किया...मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ..मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई...मैं अबाक रह गई...ऐसा लग रहा था काटो तो खून नहीं...दिनभर मैं बेहद परेशान रही...बड़ी मुश्किल से मेरा वो दिन गुज़रा...मैं घर से लौटी थी सभी मुझसे मेरे घर के बारे में पूछ रहे थे...लेकिन मेरे दिमाग में मेरी गलती घूम रही थी...ऐसा लगा जैसे मुझे दिन में ही तारे नज़र आ रहे हों...हे भगवान ये मैंने क्या किया...
हालांकि ये बड़ा मुद्दा नहीं बना और इसपर मुझसे किसी ने कुछ पूछा भी नहीं...कम ही लोगों ने बुलेटिन रिपोर्ट चैक किया था...और उस वक्त बॉस भी छुट्टी पर थे...मामला रफ्फा दफ्फा हो गया...लेकिन मेरी इस गलती ने मुझे झकझोर कर रख दिया था...

शनिवार, अक्तूबर 10

बेज़ुबान बुढ़ापा



अपने

हुए

पराए






एक बार रिपोर्टिंग के सिलसिले में मैं एक वृद्धाश्रम पहुंची...जनवरी की पहली तारीख़...साल का पहला दिन और इस अवसर पर मैं उनके बीच मौजूद थी...मैं जानना चाहती थी कि ये बुजुर्ग साल का स्वागत किस तरह करते हैं...अपने घर परिवार से निष्कासित इन बुजुर्गों की जिंदगी में मैं थोड़ी सी रौशनी भरना चाहती थी...मुझे वहां जाकर बेहद अजीब लग रहा था...मैं अपनी भावुकता को दबाने की कोशिश में जुटी थी...मैं शाम के 5 बजे वहां पहुंची...ठंड का मौसम था...हालांकि उस दिन मौसम ख़ुशनुमा था...मैंने आश्रम के अधिकारियों से वृद्धों के बीच कुछ पल गुज़ारने की इजाज़त मांगी...वो तैयार हो गए...मैं वृद्धों के कमरे में पहुंची…कुछ लोग आराम कर रहे और कुछ अपने दिनभर का काम निपटा रहे थे...अधिकारियों ने उन्हें बाहर आने के लिए कहा...उन्होंने वृद्धों को बताया की हम उनके साथ पहली तारीख़ सेलिब्रेट करना चाहते हैं...सभी एक-एक कर बाहर आने लगे...बाहर एक छोटा सा मंदिर बना था...जहां वे लोग रोज सुबह शाम पूजा अर्चना किया करते थे...वैसे भी संध्या की बेली नज़दीक थी...मैंने सबको बैठने का इंतज़ाम करवाया....वृद्धजनों से मैंने निवेदन किया की आज वो मेरे साथ अपनी खुशियां बांटेंगे...गाएगे बजाएंगे...अधिकारियों ने ढोल का इंतज़ाम कराया...पूजा अर्चना शुरू हुई...औऱ धीरे-धीरे समां बंधने लगा...मैं संगीत की इस अनोखी शाम को खूब इंज्वॉय किया...बुजुर्गों ने भगवान के भजनों की तो झड़ी लगा दी...आसपास कुछ बच्चे रहते थे वे भी तैयार होकर वहां आ गए और झूम-झूमझूमकर नाचने लगे...मुझे बेहद खुशी हो रही थी कि मैंने इन बुजुर्गों के चेहरे पर थोड़ी मुस्कान बिखेरी है...

अब बारी थी उनकी बाइट लेने की मैंने एक बुजुर्ग महिला से आज के दिन हमारे साथ बिताए पलों के बारे में जानना चाहा...उस महिला ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा ‘तुम आए तो हमने इसे आज हंसी खुशी मनाया नहीं तो बस रोज की तरह ही हम अपना काम निपटा कर सो जाते....हमारे लिए क्या होली क्या दीवाली सब दिन एक समान ही तो है’…मैं थोड़ी भावुक हुई जा रही थी...लेकिन मेरे साथ गए कैमरा मैन ने मुझसे कहा मैडम आप इनके यहां आने का कारण पूछिए...ये वृद्धाश्रम क्यों आए हैं? इनमें से कुछ बुजुर्ग तो काफी अच्छे परिवार से लग रहे हैं...मुझे एक अच्छा प्वाइंट मिल गया था पूछने के लिए...मैंने एक दो बुजुर्गों से पूछा कि आप इस आश्रम में क्यों आए...इसपर ज्यादातर लोगों ने चुप्पी साध ली थी...किसी ने बताया मेरे घर में बहुओं से नहीं पटती तो किसी ने कहा नाती ने कुछ कह दिया इसलिए आन-बान और शान कि ख़तिर में मैं यहां आ गई...एक दो लोगों से मैंने उनके यहां आने की पूरी कहानी जाननी चाहती थी...लेकिन कोई वो बताने के लिए तैयार ही नहीं हो रहे थे.....मैंने धीरे-धीरे अपनी बातों में उन्हें उलझाने की कोशिश की और उनके अंदर का दर्द जानने का प्रयास किया.. काफी मशक्कत के बाद कुछ लोगों ने मुझे अपनी इंसाइड स्टोरी बयां की...दो-तीन लोगों की बाइट लेकर मैं वापस अपने ऑफिस आने के लिए रवाना हो गई...मैं जब गाड़ी में बैठी तो मुझसे कैमरामैन कहने लगा...अरे मैडम आपको पता नहीं है...इनमें से कई बुजुर्गों को तो उनके परिवारवाले बड़ी ही बेरहमी से निकाल देते हैं...और पलट कर कभी इन्हें देखने नहीं आते...

मुझे याद है जब एक बार एक रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश के किसी वृद्धाश्रम पर स्टोरी दिखाई थी...एक बुज़ुर्ग का दर्द बयां किया था...लेकिन कुछ दिन बाद ही उस बुजुर्ग के परिजनों का बयान आया...दरअसल उस बुजुर्ग का बेटा विदेश में रहता था...उसके परिवार के कुछ सदस्यों ने बुजुर्ग के बेटे को फोन किया को कहा कि आपके पिता की स्टोरी टीवी पर दिखाई जा रही है...और वो रो रो कर अपनी कहानी बता रहे हैं...उसके बाद तो बुजुर्ग के बेटे ने रिपोर्टर को फोन लगाना शुरू किया और सलाह दी कि ‘आपको मेरे पिता से इतनी हमदर्दी है तो आप ही मेरे पिता को अपने घर में क्यों नहीं रख लेते’...दरअसल ये बुजुर्ग आर्मी से रिटायर्डे थे और अपने घर में भी आर्मी जैसे ही माहौल चाहते थे...एक मिनट की भी देरी इन्हें बेहद खलती थी...उनके कड़े रूख के कारण बेटे और बहू उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते थे...

मैंने वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के साथ बिताए पलों पर स्टोरी लिखी...पैकेज बनाया और वो पैकेज बुलेटिन में कई बार चला...अपनी शिफ्ट पूरी कर मैं घर वापस आ गई...रात को सोते वक्त मेरी नज़रों के सामने वही तस्वीरें घूम रही थीं...मैं बैचैन थी...आख़िर बुढ़ापे में लोग अपने माता पिता को कैसे इस कदर छोड़ देते हैं...क्या इन बुजुर्गों का मन नहीं होता होगा अपने परिवार की खुशियों में शरीक होने का...उनके साथ त्योहार मनाने का...अपने खून के रिश्तों से मिलने का...मैं गहन चिंतन में डूब गई...
हमारी हमदर्दी बुजुर्गों के प्रति तो होती ही है लेकिन क्या इन बुजुर्गों को भी थोड़ा सामंजस्य स्थापित कर नहीं चलना चाहिए...ताकि सामने वाले को भी कोई परेशानी न हो और आप भी खुशी खुशी रह सकें...देखा जाए तो आज की पीढ़ी हरफनमौला की तरह जिंदगी जीती है...उनकी जिन्दगी में रोक-टोक लगाने वालों के लिए कोई जगह नहीं...खासकर युवा पीढ़ी किसी रोक-टोक को बर्दास्त नहीं करती...बुढ़ापे में लोगों को अगली पीढ़ी के साथ सामन्वय कर चलना होगा ताकि उन्हें ये दिन न देखना पड़े...

गुरुवार, अक्तूबर 8

बिग बी का जादू


‘अमिताभ बच्चन’ एक ऐसा नाम जिसमें अनोखा तेज़ झलकता है...इस तेज के समक्ष सभी पात्र फीके नज़र आते हैं...आज भी उनकी आवाज़ में वो दमखम है जिसके सामने सबकी आवाज़ दब सी जाती है...कैमरे के समक्ष संवाद प्ररस्तुत करने की कला में तो अमित जी माहिर हैं...हालांकि जितने भी संवाद वो बोलते हैं उनमें से ज्यादातर संवाद पहले से लिखे होते हैं...लेकिन कैमरे के सामने वो इस कदर उस संवाद को प्रस्तुत करते हैं मानो वो किसी जीवित व्यक्ति से सीधे मुंह बात कर रहे हों...उनकी इसी कला के तो दर्शक कायल हैं...उनकी हंसी पर जनता हंसती है और उनकी उदासी पर उदाह हो जाती है...जब अमित जी रोते हैं तो दर्शक का दिल भी बोझिल हुए बिना नहीं रह सकता...बात बड़े पर्दे की हो या छोटे पर्दे की...वो जिस ओर रुख करते हैं जनता उसी ओर खिंची चली आती है...आज बॉलीवुड का हर किरदार उनके सामने बौना पड़ जाता है...उनकी प्रतिभा के सामने कोई टिक ही नहीं पाता...उम्र के इस पड़ाव पर भी अमिताभ एक हिट नाम है...फिल्मों में तो कई पात्र अहम होते हैं लेकिन जिस चरित्र को बीग बी जीते हैं उसको भली भांती जीवंत बना देते हैं...फिल्म का हिट या फ्लॉप होना कई पहलुओं पर निर्भर करता है...मसलन फिल्म की...कहानी उसकी स्क्रीप्ट...संवाद...गाने...अभिनेता..अभिनेत्रियों की सहभागिता...लेकिन अगर अमित जी किसी विज्ञापन में हो या किसी टीवी शो में तो इस विज्ञापन और शो के हिट होने की 100 प्रतिशत गारंटी तो हो ही जाती है...




संघर्ष के दिनों में कई निर्माता- निर्देशकों ने अमिताभ बच्चन को उनकी खामियां गिनाकर फिल्मों में लेने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं जब वह आकाशवाणी में गए तो वहां उनकी आवाज को खारिज कर दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी इन सभी खामियों को गुणों में बदलकर यह साबित कर दिया कि उन्हें नकारने वाले ही गलत थे। फिल्म समीक्षकों की नजर में ही नहीं दर्शकों ने भी बिग बी की सफलता से उन्हें मिलेनियम स्टार से भी काफी आगे पहुंचा दिया है।






अमित जी की एक बात मेरे दिल को छू जाती है और वो है उनके ब्लॉग लिखने की कला...अपनी व्यस्त दिनचर्या में से वे इतना वक्त निकाल लेते हैं...और समय-समय पर अपने ब्लॉग को अपडेट कर लेते हैं...वाकई काबिले तारीफ़ है...मैं उनकी इस अदा की कायल हूं...

खूबसूरती का ताज








खूबसूरती का ताज जिसके सिर सजता है वहीं सुंदरी खूबसूरत लगने लगती है...खूबसूरती की प्रतियोगिता में एक से बढ़कर एक सुंदरियां अपने-अपने देशों से चयनित हो कर आती हैं...कई बाधाओं को पार कर वो उस मुकाम तक पहुंचती हैं...और वहां भी प्रतिभागियों के बीच मुकाबला काफी कड़ा होता है...उस स्टेज पर ब्यूटी विद ब्रेन का चयन किया जाता है...सभी देशों की एक से बढ़कर एक बालाएं अपनी खूबसूरती का परिचय देने आती हैं...इतनी सुंदरियों के बीच जिसका चयन किया जाता है वो भी ताज पहनने से पहले तक तो उन सबके बीच सामान्य सी दिखती हैं...लेकिन जैसे ही खूबसूरती का वो ताज...किसी एक सुंदरी के सिर सजता है...उस सुंदरी की खूबसूरती और बढ़ जाती है...क्या उस ताज में कोई खूबी है कि एक सामान्य सी दिखने वाली बाला को भी वो और सुंदर और न केवल फैशन जगत की...बल्कि दुनिया की राजकुमारी बना देता है...कम उम्र की बालाएं अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सुंदरता के साथ-साथ अपनी बु्द्धि और विवेक का भी परिचय देतीं हैं

साल 1994 भारत के लिए बेहद खास रहा...क्योंकि खूबसूरती की दुनिया में देश ने इतिहास रच दिया था...एक साथ ऐश्वर्या राय और सुष्मिता सेन ने पूरी दुनिया के फैशन जगत में भारत के नाम का परचम लहराया था...देश आज भी उस पल को नहीं भूल पाया है...उसके बाद घर-घर में लोग फैशन के बदलते ट्रेंड को अपनाने लगे थे...ऐसा नहीं है कि पहले लोग फैशन के प्रति जागरुक नहीं थे...फिल्मों के ज़रिये लोग अपने फैशन में समय-समय पर बदलाव करते रहे हैं...लेकिन ऐश और सुष ने फैशन को नया आयाम दिया...इसके बाद साल 1997 में डायना हेडेन ने ताज जीत कर देश को गौरवान्वित किया...फिर बारी आई युक्ता मुखी की साल 1999 में युक्ता ने परचम लहराया...वहीं साल 2000 में भारत के नाम तीन ताज आया...खूबसूरती की प्रतियोगिता में लारा दत्ता, प्रियंका चोपड़ा और दीया मिर्जा ने इतिहास रच दिया...भारत अब फिर से इस इतिहास को दोहराने की बाट जोह रहा है...सुंदरियां प्रतियोगिता में चयनित होकर जातीं हैं तो पूरे देश की नज़रें इस प्रतियोगिता पर टिक जाती हैं...लेकिन जैसे ही परिणाम घोषित होता है...और निराशा हाथ लगती है...पूरा देश शोक में डूब जाता है...ऐसा प्रतीत होता है मानो देश का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रतिभागी की नहीं पूरे देश की हार हुई हो...
कितनी अजीब कहानी है इस फैशन जगत की भी...प्रतिभागी जीत कर लौटती हैं...तो पूरा देश उन्हें सिर आंखों पर बिठा लेता है...और अगर हार कर लौटतीं...तो उनकी खोज ख़बर लेने वाला तक कोई नहीं होता...
जीत कर लौटने वाली प्रतिभागी को थोड़ी सहूलियत जरूर होती है...उन्हें फटाफट विज्ञापनों और फिल्मों के ऑफर मिलने लगते हैं...लेकिन उनके समक्ष चुनौतियां कम नहीं होतीं...सोच विचार कर उन्हें फिल्मों और विज्ञापनों का चयन करना पड़ता हैं...क्योंकि ये उनके करियर के लिए काफी अहम मोड़ होता है...पहली ही फिल्म फ्लॉप हुई तो समझो उन्हें खुद को बॉलीवुड में स्थापित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी...अब अभिनेत्री सुष्मिता सेन को ही ले लीजिए...उनकी पहली फिल्म कोई खास करामात नहीं दिखा पाई...हालांकि ऐश की फिल्मों ने भी शुरूआत में कुछ खास कमाल नहीं दिखाया लेकिन धीरे-धीरे ऐश ने इंडस्ट्री में खुद को स्थापित किया...और आज भी ऐश के पास सुष से ज्यादा बड़े बजट की फिल्में हैं...जबकि ऐश ने मिस वर्ल्ड का ताज जीता था...और सुष ने मिस यूनिवर्स का...हम सुंदरियों को जितनी जल्दी सिर आंखों पर चढ़ाते हैं उतनी ही जल्दी उन्हें नीचे भी झटक देते हैं...आज युक्ता मुखी को ही ले लीजिए..एक आध फिल्मों के बाद वो गुमनाम हो गई...वहीं लाला दत्ता और दीया मिर्जा आज भी खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में लगीं है...हां प्रियंका चोपड़ा ने ऐश की तर्ज पर फिल्म इंडस्ट्री में जरूर एक अच्छा मुकाम पाया है...बांकी सुंदरियां कब आई और कब चली गई पता ही नहीं चला...केवल दो चार विज्ञापनों में और फैशन शो उन्हे मिल पाते हैं..या फिर किसी जगह फीता काटने के लिए बुला लिया जाता है...
देश को अब एक बार फिर खूबसूरती के ताज का इंतज़ार है...और खुबसूरती की प्रतियोगिता में जानेवाली उस प्रतिभागी को देश उसी उम्मीद से प्रतियोगिता में भेजता है...अब देखना ये हैं कि दोबारा कब ये मौका मिलता है..जब देश की झोली में ये तीनों ताज एक साथ गिरते हैं...