बे-रंग नहीं ये ज़िंदगी...
मैंने रंग बदलना सीख लिया है
कंटीले रास्तों पर चलते-चलते
गिरकर संभलना सीख लिया है
ज़ख़्म नासूर न बन जाए हमेशा के लिए
तभी तो मरहम को मलना सीख लिया है
ग़म से भरी हैं पलकें तो क्या
नमी ने पिघलना सीख लिया है
तुम मुझे ठुकराओ इससे पहले
मैंने नीयत को पढ़ना सीख लिया है
टूटती नहीं अब कांच के टुकड़ों की तरह
क्योंकि मैंने हिम्मत कर...चलना सीख लिया है
देख ली है मैंने भी दुनिया बहुत
अब इंसान परखना सीख लिया है