शनिवार, अगस्त 13

हाईटेक रक्षाबंधन

देश में जब भी कोई त्यौहार आता है...लोगों में उसके  प्रति भरपूर उत्साह देखने को मिलता है.....समय के साथ इन त्यौहारों ने अपने अंदर और भी गाढ़े रंग समेट लिए हैं......लोग पूरी परंपरा और निष्ठा से इसे मनाते हैं.....जिसमें जितनी क्षमता होती है वो उस तरीके से इसे मनाने के लिए स्वतंत्र है......लेकिन ये जरूरी नहीं कि इस उत्साह में परिवार के सभी सदस्य एक साथ हों....ग्लोबलाइजेशन के इस युग में परिवार बिखर सा गया है.....काम-काजा या पढ़ाई के लिए लोग संयुक्त परिवार में चाह कर भी नहीं रह पाते.....ऐसे में त्यौहार के वक्त अपनों की कमी खलती है....

और देखिए ना ये कैसी विडंबना है कि...पिछले करीब 10 साल से मैं अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांध पाई हूं....कारण है....दूरी....

दरअसल भाई पहले अपनी पढ़ाई के सिलसिले में देश से बाहर था और अब काम के सिलसिले में....लेकिन इस साल वो रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर माता-पिता के पास घर पर ही था....परन्तु... कैसा संयोग है....इस बार मैं अपने देश से दूर हूं.....मैं जहां हूं वहां लोगों को राखी का मतलब भी नहीं पता.....ऐसे में यहां राखी मिलना तो संभव नहीं था... इसलिए घर पर ही मैंने रेशम के धागे से राखी बनाई....और जलेबी भी बनाने की कोशिश की थी... जो सफल भी रही....इस बार मैंने राखी थोड़े अनोखे तरीके से मनाई....

दरअसल इन्टरनेट ऐसा जरिया है जिसने मुझे अपनों से हमेशा जोड़े रखा है.....जब भी अपनों की याद आती है इन्टरनेट से ही फोन घुमा लेती हूं.... इस साल मैं रक्षाबंधन भी नेट महाराज की बदौलत ही मना पाई....SKYPE पर मैंने VIDEO कॉल किया और भाई को राखी दिखाई....इस अनोखे तरीके ने मुझे पूरी तरह से संतुष्ट तो नहीं किया लेकिन मन में थोड़ी तसल्ली जरूर हुई.....पहले तो मैं अपने मुहबोले भाईयों को राखी बांध  दिया करती थी... लेकिन इस साल देश से दूर रहने के कारण इन्टरनेट से राखी भेज कर ही मैंने काम चला लिया.....और पति देव से भी नेट के जरिए ही राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी....उन्होंने भी अपनी बहनों से बात कर राखी का त्यौहार मनाया......

और अब जब देश स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में है....मैं पहली बार दिल्ली को बहुत मिस कर रही हूं....क्योंकि दिल्ली में मनाए जानेवाले इस राष्ट्रीय पर्व को देखने का मौका मुझे अब तक नहीं मिल पाया है.....

वहीं इस महीने तीज का त्यौहार भी मैं शायद नहीं मना पाऊं....शादी के बाद पहली बार तीज पड़ रहा है और मुझे इसके विधि-विधान के बारे में कुछ भी नहीं पता....ऐसे में मैं नहीं चाहती कि मुझसे किसी भी प्रकार की त्रुटि हो....लेकिन मैं खुश हूं क्योंकि जल्द ही अपने देश वापसी की तैयारी में हूं....



बुधवार, जुलाई 13

दहशतगर्दों का फन लहराया

इन दिनों देश से बाहर हूं...लेकिन मुंबई धमाकों ने देश से बाहर भी लोगों का दिल दहला दिया है....दरअसल जिस वक्त मुंबई में धमाका हुआ... उस वक्त मेरे पति-देव मुंबई में किसी से इन्टरनेट से बातें कर रहे थे...मैं उस वक्त सो रही थी... क्योंकि मैक्सिको में उस वक्त सुबह का समय था....पति ने मुझे जगाया और धमाकों की जानकारी दी....मैं ह़डबड़ा कर उठी....और ऐसा लगा जैसे हम धमाकों
की गूंज LIVE सुन रहे हैं....इन पंक्तियों के रूप में....अनायास ही कुछ शब्द निकल पड़े....







दहशतगर्दों ने फिर फन लहराया
देश की जनता को एक बार फिर दहलाया....


खून की होली खेलना इन्हें हमेशा रास आया
मासूमों का खून पी-कर  क्या सममुच तुम्हें मजा आया?



ऐ...दहशतगर्दों...
मासूमों की जिंदगी लेने के लिए
क्या तुम्हें यमराज ने अपना दूत  है बनाया?


इस खून खराबे में ....
तुम किससे बदला लेना चाहते हो.... ?
क्योंकि जिन नेताओं ने इस चिंगारी को हवा दी
वो तो अपने आसियाने में हैं बिल्कुल सुरक्षित
और बहता है तो बेकसूरों का खून सारा.....


अब तो अपने घर रहने में भी लगता है...डर
क्योंकि जब देश ही सुरक्षित नहीं
तो कितना सुरक्षित है...हमारा घर?


कब तक पूरे होंगे इनके नापाक इरादे?
कब बदलेगा ये मंजर सारा?
दहशतगर्दों का फन क्यों नहीं समय पर
कुचला  है जाता?

सोमवार, मई 16

मिट्टी की महक


जैसे जैसे हम अपने वतन की मिट्टी से दूर जाते हैं.....उसके प्रति लगाव उतना ही गहरा होता जाता है....औऱ अपने क्षेत्र की यादें हमारे जेहन को टटोलती हैं.....हम भले ही अपने इलाके में अपने लोगों से ज्यादा मतलब न रखते हों लेकिन जैसे जैसे हम अपने क्षेत्र से दूर जाते हैं...और उस इलाके का कोई मिलता है तो लगता है जैसे ये हमारा अपना सगा हो....मैंने ये कई दफ़े महसूस किया है....जैसे हम अपने गांव से दूसरे गांव कुछ वक्त के लिए रहने जाते हैं....तो गांव की सोधीं मिट्टी की खुशबू हमें अपने इलाके की मिट्टी की याद दिलाती है.....वहां बिताए हुए पल हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं...वैसे  ही जब हम अपने शहर या राज्य से दूसरे शहर या राज्य की ओर पलायन करते हैं तो भी अमूमन ऐसे ही हालात होते हैं....

और जब हम अपना देश....अपना वतन छोड़ कर दूसरे वतन जाते हैं तो ये लगाव थोड़ा और गहरा होता जाता है...और वहां जब कोई अपने देश का मिलता है तो लगता है जैसे उससे कोई गहरा नाता जुड़ गया हो.....
 
खैर लोगों का ये भी कहना है कि जो दूसरे देशों में ज्यादा वक्त बिताते हैं उन्हें अपने देश में कमियां नजर आने लगती हैं....हालांकि इसमें सच्चाई भी है....क्योंकि हम अपने देश की उस देश की उन्नती से तुलना करने लगते हैं....और अक्सर हम अपने देश में छोटी-छोटी चीजों में कमियां पाते हैं...इसमें सच्चाई भी है....और हमें इसे स्वीकार भी करना चाहिए....मेरा उद्देश्य  यहां अपने देश की खामियां गिनाना नहीं है.....दरअसल मैं खुद इन दिनों करीब एक महीने से अपने वतन की मिट्टी से काफी दूर मैक्सिको में हूं...और मैं अपने देश को काफी MISS कर रही हूं...वैसे भारतीय यहां काफी कम दिखते हैं....लेकिन काफी लोग यहां भारत से मिलते जुलते नजर आते हैं.....
जिन देशों के सांस्कृतिक मेले लगे हैं, उनके नाम और जहां लगे हैं वो स्थान
 


मैक्सिको शहर के बीचोबीच लादियाना, रिफॉर्मा में अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक मेला लगा है....जो 14 मई से 29 मई के दौरान आयोजित किया गया है....हालांकि ये मेला जिस जगह लगा है वो स्थान मेरे निवास के बिल्कुल करीब है....और कमरे की खिड़की से मैं पूरा आयोजन आराम से बैठे-बैठे देख सकती हूं....इस मेले में हर देश ने अपनी संस्कृति से जुड़ी चिजों की प्रदर्शनी लगाई है....जिससे एक ही जगह आप देश दुनियां की संस्कृति से अवगत हो सकते हैं.....जिस दिन इस मेले का उद्घाटन हुआ..मैं और मेरे पतिदेव भी इसका लुत्फ उठाने पहुंचे....हालांकि यहां सभी स्टॉल के लिए जगह सुनिश्चित है....लेकिन मेरी नजर अपने देश के स्टॉल की तलाश में छटपटाने लगी....ढूंढ़ते ढूंढ़ते हम INDIA के स्टॉल के पास पहुंचे....हालांकि कुछ स्टॉल में खान-पीने की चिजें भी रखी थीं...इसलिए हमने सोचा INDIAN स्टॉल में भी खुछ खाने को मिल जाएगा....और मेरा मन गुपचुप खाने को बेताब हुआ जा रहा था.....मैंने सोचा INDIA वाले स्टॉल में मुझे गुपचुप तो जरूर मिल सकता है...लेकिन हाय-रे-मेरी किस्मत....स्टॉल में खानेपीने की चीजें नदारद थी..... मैंने सोचा स्टॉल में गुपचुप मिल जाता...तो मैं तो हर-रोज यहां खाने चली आती...INDIAN स्टॉल में ज्यादातर कपड़े,Artificial गहने...कुछ देवी देवताओं की मूर्तियां....और सजावट के सामान रखे गए हैं....


खैर स्टॉल देख कर मेरा मन थोड़ा खट्टा हो गया....क्योंकि मैक्सिको में मैं किसी चीज को सबसे ज्यादा मिस कर रही हूं....तो वो है अपने देश का खाना....यहां अपने देश जैसा खाना नहीं मिलता...इक्के दुक्के मिलते भी है तो अपने देश जैसा स्वाद इनमें कहां...वैसे खाना तो मैं यहां खुद ही बनाती हूं लेकिन वो स्वाद नहीं मिलता.....और अपने देश में गुपचुप की तो बात ही निराली है...

हां स्टॉल में भारतीय संगीत की धुन सुनकर मन को थोड़ी शांति मिली....हमने स्टॉल का मुआयना किया....दूर देश में अपने देश की महक ने हमे खूब लुभाया....हालांकि indian स्टॉल में खचाखच भीड़ लगी थी....और लोग जमकर खरीदारी कर रहे थे....वैसे भी हमारे देश की संस्कृति दूसरे देशों को काफी लुभाती है....यहां भी कुछ मैक्सिकन लोगों को स्टॉल पर रखा गया था ताकि लोगों को भाषा की वजह से परेशानी न हो....हालांकि स्टॉल प्रमुख की नजर हमारी ओर आकर टिक गई...ऐसा लगा जैसे अपनों ने अपने को पहचान लिया हो और परिचय का सिलसिला शुरू हुआ....बातों बातों में महाशय ने बताया की पास ही में उनकी एक दुकान भी है...और उन्होंने आने का निमंत्रण भी दे डाला....मैंने उनके स्टॉल से कुछ चीजें खरीदीं जिसपर उन्होंने काफी डिस्कॉऊंट भी किया....


हालांकि जैसी हालत मेरी यहां विदेश में आकर है वैसी ही हालत मैंने दूसरे देशों से आकर यहां रह रहे लोगों में भी देखी...जिस देश का स्टाल था वहां उस देश के लोग खिंचे चले आते नजर आए....मुझे एहसास हुआ की हर नागरिक जो जिस देश का है वो अपने देश की संस्कृति से उतना ही लगाव रखता है जितना की हमे अपने देश की संस्कृति पर गर्व है...