मंगलवार, नवंबर 24

सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट!




हंगामा खड़ा करना हमारा मक्सद नहीं…हमारी कोशिश है कि सूरत

बदलनी चाहिए...
मीडिया का मक्सद भी सनसनी फैलाना नहीं...मीडिया का मक्सद है...बस फिज़ा बदलनी चाहिए...लेकिन मीडिया अपने उद्देश्यों से कभी-कभी भटक जाती हैं...मीडिया को अपने दायरे में रहकर ही काम करना चाहिए ना कि अपने दायरों को भूलकर आज की आंधी दौड़ में शामिल हो जाना और सनसनी फैलाना अपना लक्ष्य बना लेने से काम चलेगा...माना की बाज़ार में खुद को स्थापित रखने के लिए मीडिया में हर रोज गलाकाट प्रतिस्पर्धा है लेकिन मीडिया को नहीं भूलना चाहिए की उसका काम ख़बरों से लोगों को अवगत करना है न की अपने हित को ध्यान में रखकर अपने स्वार्थों की पूर्ति करने मात्र से काम चल जाएगा...पिछले दिनों मीडिय का विभत्स चेहरा सामने आया...संसद के पटल पर लिब्रहान रिपोर्ट आने से पहले ही एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने इसे प्रकाशित किया....जो कि बाकई एक गलत कदम है...किसी भी रिपोर्ट को सदन में पेश होने से पहले इसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता...आखिर मीडिया को ये अधिकार दिया किसने हैं? क्या समाचार पत्र के प्रकाशक...प्रकाशन के सभी नियम और कायदों को भूल चुके हैं...क्या ये रिपोर्ट केवल अनुमान के तहत बनाई गई थी...किसी भी रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले उनके पास पुख्ता सुबूत होने चाहिए क्या समाचार पत्र के पास इसके पुख्ता सुबूत मौजूद थे?...क्योंकि कल्पना के आधार पर संपादक किसी रिपोर्ट को अमली जामा नहीं पहना सकते... अब सलाव ये उठता है कि ये रिपोर्ट लीक हुई तो हुई कैसे? क्या गृहमंत्रालय ने इसे लीक किया? या फिर लिब्रहान रिपोर्ट को लीक होने में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एम एस लिब्रहान का योगदान रहा...ये काफी गंभीर मुद्दा है...खैर लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट लीक होने से संसद के दोनों सदनों में जैसे भूचाल सी आ गई...आखिर कैसे लीक हुई ये रिपोर्ट … ये एक गंभीर मुद्दा है...
बाबरी मस्जिद विध्वंस पर अपनी रिपोर्ट के ‘‘लीक’’ होने से क्षुब्ध एम एस लिब्रहान ने इसे लीक करने से साफ इनकार किया और कहा कि वह ऐसे ‘‘चरित्रहीन’’ व्यक्ति नहीं हैं जो मीडिया को रिपोर्ट लीक कर देंगे... उन्होंने मीडियाकर्मियों को ‘दफा हो जाने‘ को भी कहा.... लिब्रहान ने कहा, ‘‘रिपोर्ट पर मैं नहीं बोलूंगा....अगर मीडिया के पास रिपोर्ट है तो जाइए और पता लगाइए कि मीडिया को यह कहां से मिली और किसने रिपोर्ट दी.’’जब यह पूछा गया कि विपक्ष ने रिपोर्ट को ‘‘चुनिंदा तरीके से लीक’’ किये जाने का आरोप लगाया है तो लिब्रहान ने कहा, ‘‘विपक्ष को कुछ भी कहने दीजिए लेकिन इससे आपका तात्पर्य क्या है?’’ क्षुब्ध लिब्रहान ने भड़कते हुए कहा, ‘‘मेरे चरित्र को चुनौती मत दीजिए, दफा हो जाइये.’’ लिब्रहान ने कहा, ‘‘मैं ऐसा चरित्रहीन आदमी नहीं हूं कि संसद में पेश होने से पहले मीडिया को रिपोर्ट सौंप दूंगा.’’ हालांकि लिब्रहान की मीडिया के प्रति ये बेरुखी बिल्कुल वाजिब था... वहीं गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी दावा किया की रिपोर्ट की केवल एक कॉपी है जो बिल्कुल सुरक्षित है...विपक्षी दल भाजपा ने भी इस मुद्दे को सदन में खूब भुनाया... एक अखबार ने दावा किया था कि छह दिसंबर 1992 को हुए बाबरी विध्वंस की जांच करने वाले एक सदस्यीय लिब्रहान आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी को घटना में आरोपित किया है. लिब्रहान आयोग ने 17 साल का समय लिया और इस साल जून में अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी संघ परिवार के 68 नेताओं तथा नौकरशाहों की उस सूची में शामिल किया गया हैं, जिन्हें लिब्रहान आयोग ने अयोध्या मुद्दे पर देश को सांप्रदायिक वैमनस्य के मुहाने पर पहुंचाने का दोषी पाया। आयोग की भारी-भरकम रपट को संसद के दोनों सदनों में गृह मंत्री पी चिदंबरम ने पेश किया। न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान की अध्यक्षता वाले आयोग ने 17 जून को अपनी रपट सरकार को सौंप दी थी। अयोध्या में 17 साल पहले बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच करने वाले लिब्रहान आयोग की लगभग 1000 पृष्ठ की रपट में भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं मुरली मनोहर जोशी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह तथा गिरिराज किशोर एवं अशोक सिंघल जैसे विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेताओं को भी दोषी ठहराया गया। वाजपेयी, आडवाणी और जोशी को भाजपा का छद्म उदारवादी नेतृत्व करार देते हुए आयोग ने कहा कि वे अयोध्या में 16वीं सदी के ढांचे को ढहाए …आयोग ने तीनों को दोषी करार देते हुए कहा कि इन नेताओं को संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता और उन्हें निर्दोष नहीं करार दिया जा सकता। रपट में कहा गया कि इन नेताओं ने जनता के विश्वास का उल्लंघन किया... लोकतंत्र में इससे बड़ी धोखाधड़ी या अपराध नहीं हो सकता ...जहां तक बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के सिलसिले में हुए मामलों का सवाल है, एटीआर में रायबरेली की विशेष अदालत में आठ आरोपियों के खिलाफ दायर मामलों और 47 अन्य मामलों का उल्लेख है और अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ भी एक मामला है। इन मामलों की सुनवाई तेज करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

आयोग की रिपोर्ट ने भाजपा में खलबली मचा दी...भाजपा को अलट बिहारी वाजपेई को रिपोर्ट में शामिल किए जाने पर ऐतराज है...वहीं उमा भारती ने इस मामले की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उनके पास पुख्ता सुबूत है जिससे वो साबित कर सकती हैं कि वो निर्दोश हैं...बहरहाल आयोग की रिपोर्ट से देश की एकता और अखंडता में कोई बदवाल नहीं आया है...जो काफी खुशी की बात है

रविवार, नवंबर 15

राज का गुंडाराज

महाराष्ट्र में चलता है ठाकरे परिवार का गुंडा राज...खासतौर से मुंबई में...ऐसा लगता है जैसे महाराष्ट्र उनके पूर्वजों की जागीर हो...भले ही राजा महाराजाओं के ठाट-बाट ख़त्म हो गए… लेकिन इस परिवार के ठाट-बाट आज भी बरकरार हैं...आज से नहीं बाल ठाकरे के समय से ही ये राज चलता आ रहा है...मुंबई तो जैसे उन्होंने खरीद ली हो...मराठी मानुषों की राजनीति करने वाला ये परिवार आए दिन विवादों में घिरा नजर आता है...
इस बार बाल ठाकरे का डंडा चला है क्रिकेट सम्राट सचिन तेंदुलकर पर क्रिकेट के महानायक सचिन तेंदुलकर ने अपने खेल के 20 साल पूरे करने पर खुद को पहले 'भारतीय' क्या कह दिया कि भारतीय राजनीति में अचानक ही एक नया भूचाल आ गया। मीडिया से मुखातिब सचिन ने कहा, 'मुंबई सबकी है। मैं भी मराठी हूं और मुझे इस पर गर्व है। लेकिन, सबसे पहले मैं एक भारतीय हूं।' शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में सचिन की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वह अपने अंतरराष्ट्रीय खेल का मैदान संभालें और खेल में उन्होंने जो कमाया है उसे राजनीति के मैदान में नहीं गवाएं। शिवसेना प्रमुख ने सचिन की आलोचना करते हुए कहा था कि उनके इस बयान से मराठी लोगों की नजरों में सचिन की इज्जत कम हो सकती है। उन्होंने कहा था कि मराठी मानुषों ने संघर्ष करते समय जिस समय मुंबई को हासिल किया था उस समय सचिन का जन्म भी नहीं हुआ था। जिस दिन पूरा देश सचिन की 20 वर्षीय उपलब्धियों पर उनकी शान में कसीदे काढ़ रहा था, उसी दिन शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे उनके एक देशभक्तिपूर्ण बयान पर उन्हें एक धिक्कार भरा पत्र लिखने में व्यस्त थे। ठाकरे और सचिन, दोनों ही मराठी मानुष। पर एक के सीमित सोच के चलते मराठी मानुष महाराष्ट्र में भी सिमटते जा रहे हैं, तो दूसरे की खूबियों के चलते उनकी बढ़ी प्रतिष्ठा के लिए दुनिया की सीमाएं भी छोटी पड़ जाती हैं...
ठाकरे ने करीब 42 साल पहले शिवाजी पार्क में दशहरे के दिन विशाल रैली करने की परंपरा डाली। इन्हीं रैलियों में अपनी तेजतर्रार शैली में भाषण देकर मुंबई महानगरपालिका से लेकर मंत्रालय तक की सत्ता पर काबिज होने में सफल रहे। इसी शिवाजी पार्क में सचिन तेंदुलकर भी रमाकांत आचरेकर सर की छत्रछाया में क्रिकेट के गुर सीखते हुए आगे बढ़े।



ठाकरे के सीमित सोच का ही परिणाम है कि गत विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी वो माहिम विधानसभा क्षेत्र भी गंवा बैठी, जिसमें शिवसेना प्रमुख के रणनीति का केंद्र रहा सेना भवन खड़ा है। वास्तव में यह हार ठाकरे के हाथ से फिसलते मराठी वोट बैंक का प्रतीक मानी जा रही है, जिसे रिझाने-फुसलाने के लिए बाल ठाकरे अब उस मराठी मानुष पर भी प्रहार करने से नहीं चूक रहे हैं, जो देश के साथ-साथ मुंबई का नाम भी सारी दुनिया में रोशन करता आ रहा है।
सचिन को लिखे ठाकरे के धिक्कारपूर्ण पत्र से आम मराठी मानुष भी सन्न है। सचिन पर ठाकरे की इस बेतुकी टिप्पणी की हर तरफ आलोचना हो रही है...भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड [बीसीसीआई] ने तो इसके लिए ठाकरे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई तक की मांग कर डाली।

वहीं करण जौहर की आनेवाली फिल्म "कुर्बान" के पोस्टर पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाने वाली शिवसेना ने बॉलीवुड अभिनेत्री करीना कपूर को साडी भेजी हैं। शिवसेना के नेता जीतेंद्र जानवले ने करीना को 1200 रूपये की साडी भेजी। ताकि वह अपनी खुली पीठ ढक सकें। हालांकि करीना ने इस पर कोई कॉमेंट करने से इंकार किया हैं। हाल ही में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने करीना की आनेवाली फिल्म "कुर्बान" के पोस्टर में उनकी पीठ दिखाए जाने को लेकर गुस्से का इजहार किया था। शिवसेना नेता जितेंद्र जानवले ने कहा था कि मुझे समझ नही आता कि अधिकारी इस तरह के पोस्टर्स को पास कैसे कर देते हैं। रास्ते से महिलाएं और बच्चों भी गुजरते हैं। इस तरह के पोस्टर्स का उन पर क्या असर पडता होगा। इस पर करीना ने फिल्म "कुर्बान" के प्रमोशन के दौरान कहा था कि मुझे अब तक कोई साडी नहीं मिली हैं लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह अच्छी होगी। जनावाले के नेतृत्व में शिवसेना की महिला कार्यकर्ताओं ने करीना के उस पोस्टर के सामने साडी बांध दी थीं जिसमें उन्हें कम कपडों में दिखाया गया हैं। सैफ के साथ खुली पीठ दिखाने वाले पोस्टर को अभद्र बताए जाने पर करीना ने कहा, मुझे पोस्टर में कुछ भी गलत नहीं दिखा। मेरा मानना है कि यह बेहद सौंदर्यपरक हैं।

ठाकरे परिवार समय-समय पर फिल्म जगत से जुडे लोगों पर भी तानाशाही करने से नहीं चूकते...कभी किसी अभिनेता या अभिनेत्री की कोई हरकत बुरी लग जाती है तो कभी किसी दूसरे की...मतलब मुंबई में रहना है तो ठाकरे परिवार के समक्ष सिर झुका कर रहो...और ऊंची जुबान में बात की तो खैर नहीं

अब बात राज ठाकरे की....बालासाहब ठाकरे की तरह ही राज ठाकरे भी मुंबई में हिन्दीभाषियों को खदेड़ने में जुटे हैं...हाल ही में राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई क्लर्क की परीक्षा में शामिल होने वाले ‘बाहरी अभ्यर्थियों’ का विरोध करते हुए उनके खिलाफ प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने सभी परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए और परीक्षा शांतिपूर्वक संपन्न हुई। पिछले साल ही परीक्षा में सम्मिलित होने वाले एक छात्र की मौत ने पूरा देश को हिला कर रख दिया था ...करीब दो साल पहले राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों के विरुद्ध ये अभिया शुरू किए था कि दूसरे राज्यों से छात्र यहां परीक्षा में सम्मिलित होने नहीं आ सकते...

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायकों ने सारे नियमों और लोकाचार को धत्ता बताते हुए समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी पर सदन के अंदर उस वक्त हमला कर दिया, जब वे हिंदी में शपथ ले रहे थे।सदन की कार्रवाई शुरू होने के बाद जब अबु आजमी ने हिंदी में शपथ लेना शुरू किया तो मनसे कार्यकर्ता खड़े होकर नारेबाजी करने लगे और उन्होंने अबू आजमी का माइक छीन लिया और उनका शपथ पत्र छीन लिया। उसके बाद वे धक्का-मुक्की करने लगे और अबू आजमी पर एक विधायक राम कदम ने थप्पड़ भी चलाया, जो उनको लगा। घटना के बाद सदन को 20 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया।
इस मामले ने भी देशभर में ठाकरे की जमकर आलोचना हुई...आजमी की बहू आयशा टाकिया ने तो राज ठाकरे को सीधी चुनौती देते हुए कहा है कि राज और उनके जैसे अन्य नेताओं को लात मारकर राज्य से बाहर निकाल देना चाहिए।
यानी अब ठाकरे परिवार का मराठी मानुषों बाला दाव काम नहीं कर रहा अब उन्हें कोई और मुद्दा तलाशने की जरूरत है...अब ये मुद्दा उनकी तरफदारी कम आलोचना ज्यादा दिला रही है...ठाकरे परिवार को मराठी मानुषों के दिल में राज करने का दूसरा हथकंडा अपनाना होगा...अब तो बच्चे भी ठाकरे परिवार पर ऊंगली उठाने से नहीं चूकते...
ठाकरे परिवार के सामने ये चुनौती है कि वो अपने परिवार के सभी सदस्यों को महाराष्ट्र में ही समेट कर रखे...क्या वो नहीं चाहते कि उनके परिवार के सदस्य दूसरे देशों की यात्रा करे वहां काम करें या देश के दूसरे राज्यों की सैर करें....क्या वो अपने परिवार को भी इसी दायरे में रख सकते हैं...
हर दूसरे घर में एक बिगड़ा शहजादा जन्म लेता है...और घर के दो टुकड़े हो जाते हैं...दो भाईयों में आपस में नहीं बनती...बिगड़े शहजादों के लिए घर तो बंट जाता है...लेकिन क्या किसी बिगड़े शहजादे के लिए क्षेत्र को बांटा जाना चाहिए...ऐसा होता रहा तो देश के न जाने कितने टुक्डे करने पड़ें...
महाराष्ट्र की जनता भी इतनी बेवकूफ नहीं...उन्हें देश के दूसरे राज्यों में जाने का हक है...घूमने का हक है देश दुनिया देखने का हक है अगर वो महाराष्ट्र में किसी दूसरे राज्यों के लोगों का आने या वहां रहने पर रोक लगाते हैं फिर भला वहां के मानुष किस मुंह से दुसरी जगह जा सकेंगे...रोजगार की तलाश कर
सकेंगे
ठाकरे के इन व्यवहारों ने ये प्रश्न खड़ा कर दिया है कि यदि लता मंगेशकर, सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर जैसी हस्तियां सिर्फ अपनी मातृभाषा के दायरे में रह कर अपने क्षेत्र में काम करते तो क्या वे सारी दुनिया की वाहवाही लूट पाते?


सीमाओं में देश को बांधना कितना उचित है...भाषा के आधार पर देश की जनता को जोड़ने की जरूरत है तोड़ने की नहीं...वैसे ही देश में कम समस्याएं नहीं हैं...लोग रंग- रूप...कार्य...धर्म संप्रदाय के आधार पर बंटे हैं उन्हें एक सूत्र में पिरोने की जरूरत है...



मंदिर...मस्जिद....गिरजाघर ने

बांट दिया भगवान को

धरती बांटी....सागर बांटा

मत बांटो इंसान को...मत बांटो इंसान को

सोमवार, नवंबर 9

लैपी मय हुई दुनिया






गूगल में फैलते गणराज्य में कम्प्यूटर ने अपनी गहरी पैठ बना ली है…दुनिया धीरे-धीरे कम्प्यूटर के
शिकंजे में कैद होने लगी है...देशी ही नहीं विदेशी कंपनियां भी ग्राहकों को खूब लुभा रही हैं...आपको याद होगा रिलायंस ग्रुप के जनक धीरूभाई अंबानी का सपना था 'कर लो दुनिया मुट्ठी
में'...यानी धीरूभाई अंबानी हर हाथ में मोबाइल देखना चाहते थे...और आज देखिये उनका ये सपना
साकार होता नजर आ रहा है...आज मध्यमवर्ग से लेकर निचले वर्ग के लिए भी मोबाइल कोई बड़ी
चीज़ नहीं रह गई है...दूधवाला हो पेपरवाला हो यहां तक की रिक्शा चलाने वालों के पास भी
मोबाइल पहुंच चुके हैं...उन्हीं की तर्ज पर अब कम्प्यूटर कंपनी भी हर हाथ में कम्प्यूटर पहुंचाने की मुहिम में जुटा है...
कम्प्यूटर यानी अब लैपटॉप का जमाना आ रहा है...लैपी के आकार और रंग में बदलाव कर कंपनी
ग्राहकों को लुभा रहे हैं... easy to handle के फंडे को अपनाते हुए बिल्कुल बजट में ग्राहकों
को रंग-बिरंगे लैपटॉप मुहैया कराए जा रहे हैं...कई कंपनियों ने अल्ट्रा स्लिम और कलरफुल लैपी
बनाकर लोगों को अपना मुरीद बना दिया है जब से सोनी ने कंज्यूमर नोटबुक के रूप में बाजार में
अपना नया लैपटाप वायो एक्स रेंज पेश किया है...महिलाए भी लैपी के प्रति आकर्षित होने लगी
हैं...जब से कम्पनी ने वायो श्रृंखला के उत्पादों के प्रचार के लिए अभिनेत्री करीना कपूर को ब्रांड
अम्बेस्डर बनाया है...महिलाओं का लैपी के प्रति झुकाब बढ़ता जा रहा है...655 ग्राम वजनी वायो
एक्स दुनिया का सबसे हल्का लैपटॉप है। ग्राहकों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए कम्पनी ने इसे
कई डिजाइन और रंगों में पेश किया है। HCL और बांकी कई कंपनियों ने भी स्लिम लैपी बाजार
में उतारी है...ये रंग बिरंगी लैपी महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं...कामकाजी महिलाओं
के अलावा भी अब आम महिलाएं भी लैपी की कमी महसूस करने लगीं हैं...पहले लोगों को लैपी
खरीदने के लिए लोन लेना पड़ता था...या फिर किस्तों में पैसे चुकाने पड़ते थे लेकिन अब लैपी की
घटी कीमतों ने लोगों को हाथों-हाथ खरीदारी की सुविधा दी है... मुझे लगता है एक समय ऐसा भी आएगा जब कामकाजी महिलाएं ही नहीं गृहणीयां भी अपनी ड्रेस
के अनुसार लैपी का प्रयोग करने लगेंगीं...यानी जिस कलर का ड्रेस उस कलर की लैपी...घर बैठे ही
सारा काम हो जाया करेगा...और हो भी क्यों न एक छोटी सी चीज़ आपकी दुनिया जो बदल देती
है...आपकी दुनिया में रंग भर देती है...
धीरे धीरे बच्चों को भी लैपी काफी प्रभावित करने लगे तो कोई नई बात नहीं होगी...माता-पिता
अपने बच्चों को किताब-कॉपी की बजाए हाथ में एक लैपी थमा देंगे और बच्चों की पूरी पढ़ाई लैपी
पर ही हो जाया करेंगी...माता पिता भी हर साल नई किताबें और कॉ़पियां और यहां तक की हर
महीने कलम या पेंसिल खरीदने से भी बच जाएंगे...बच्चों पर किताबों का बोझ कम हो जाएगा...बस
हर रोज अपना लैपी लेकर स्कूल चले जाओ हो गई पढ़ाई...कॉलेजों में भी बस लैपी पर ही सारी
पढ़ाई हो जाया करेंगी...हालांकि जब भी कोई नई शुरूआत होती है उससे पहले नया विवाद जन्म
लता हैं...हो सकता है इसका स्कूलों में विरोध हो लेकिन इसके फायदे इतने हैं कि लोग इसे ना
चाहते हुए भी अपना ही लेंगे...जैसा की स्कूली बच्चों ने मोबाइल अपना लिया है और साइकिल
छोड़कर बाइक अपना ली है...जैसे मोबाइल अब मध्यमवर्गीय परिवार के साथ-साथ निम्म वर्गीय परिवारों के लिए भी सामान्य सी
चीज बनकर रह गई है वैसा ही भविष्य में लैपटॉप का भी इस्तेमाल जल्द ही होने लगेगा...लेकिन ग्राहक सोचसमझ कर इसे खरीदना उचित समझते हैं...भले ही छोटा लैपी आपके लिए लाना ले जाना आसान हो लेकिन उसके फायदे और नुक्सान को ध्यान में रखकर ही खरीदना उचित होगा... एक बार मैं पिक्चर देखने मॉल पहुंची...पिक्चर शुरू होने में थोड़ा वक्त था मैंने सोचा चलो कुछ शॉपिंग हो जाए...खाली समय का सदुपयोग भी हो जाएगा और बाजार में क्या नई चीज लॉच हुई है इसकी भी जानकारी हो जाएगी...मैं एक-दो दुकानों में गई...फिर मेरी नज़र एक Electronic की दुकान पर पड़ी...मैं अंदर गई...सामने सोनी का छोटा लैपी रखा था...रंग बिरंगे कलर में रखे लैपी ने मुझे भी प्रभावित किया...मैंने सोचा चलो एक-दो और लैपी देख ली जाए...मैंने लैपी की तहकीकात करनी शुरू की...सबके बारे में जानकारी जुटाने लगी...और अंत में Puzzled हो गई...समझ नहीं आ रहा था कौन सा खरीदना उचित होगा...मैंने एक दो लॉगशीट मांगी सोचा घर जाकर पहले देख तो लूं किसमें क्या सही है कौन सा लेना उचित होगा...अंत में मैंने सोचा किसी कम्प्यूटर के जानकार से पूछने के पश्चात ही कोई फैसला लूंगी...मैंने अपने कुछ सहयोगियों से पूछा...किसी ने कुछ बताया किसी ने कुछ...किसी ने किसी एक लैपी की खूबी बताई तो किसी ने दूसरे की...खैर मैंने फैसला किया भले ही एक बार पैसे लगे...लेकिन मैं ऐसा लैपी लूं जिसमें सारी खूबियां हो ताकि भविष्य में मुझे कोई परेशानी न हो।