मुझे लगता था सिर्फ हमारे देश भारत में ही अंधविश्वास से लोग जकड़े हुए हैं.... लेकिन नहीं अब लगता है....मैं गलत थी...जानकर खुशी हुई कि दुनिया में अंधविश्वासियों की कमी नहीं हैं....तभी तो फुटबॉल विश्व कप के साए में भी अंधविश्वास की छाया मंडराती नजर आती है....फुटबॉल का फीवर इस कदर छाया है कि हम ऊल फिजूल की बातों को भी तबज्जो देने से नहीं चूकते....ऐसे में हम बेजुबानों को तरह-तरह के आडंवरों से जोड़ने से बाज नहीं आ रहे....अब तो बोजुबानों ने खेल की दिशा और दशा निर्धारित करनी शुरू कर दी है....हमारे ऑक्टोपस महाराज को ही ले लीजिए....ऑक्टोपस 'पॉल' ने क्या भविष्यवाणी करनी शुरू की भविष्यवाणी कर्ताओं की तो जमात ही जुटने लगी...एक-एक कर कई चेहरे सामने आने लगे...इतने दिनों से ये कहां दुबक कर बैठे थे...इनकी कीमती भविष्यवाणियों की तो दुनिया को दरकार थी..
पॉल के बाद सिंगापुर के तोते ' मणी' की भविष्यवाणी ने सबको चौंका दिया....फिर तो भविष्यवाणी कर्ताओं की कतार सी लग गई...भारत के किसी भी प्रदेश में तोते और बैलों द्वारा भविष्यवाणियां करना सामान्य बात है। गली-गली में लोग पिंजरे में तोते लेकर घूमते हैं जो भविष्यवाणियां करते हैं। अब तक तो लोग उनके आसपास भटकते तक नहीं थे...लेकिन इस वाक्ये ने लोगों में जागृति पैदा कर दी है....अब तोते के जरिए भविष्य पढ़नेवालों की चांदी हो रही है...सब अपने अपने तोते को ज्ञानी बताने में जुटे हैं...नहले पर दहला तो तब हो गया जब ऑस्ट्रेलिया में 'हैरी' नाम के एक मगरमच्छ ने भी फीफा विश्व कप-2010 भविष्यवाणी कर दी....वहीं नीदरलैंड के एक जू में तो तीन-तीन जानवरों ने पॉल को चुनौती दे डाली....यहां एक लंगूर , एक ऊंट और एक जिराफ ने पॉल को कड़ी टक्कर दे डाली....खैर अब विश्वकप का ऊंट किस करबट बैठता है ये तो देखने वाली बात होगी...लेकिन कब तक इनकी दुकानदारी में रौनक रहेगी....भविष्यवाणियों का ये दौर कब तक चलेगा ये देखना दिलचस्प होगा....
हालांकि इन दिनों मीडिया में ये खबरें खूब तैर रही हैं.... चैनलवालों को नया मसाला मिल गया है....भविष्यवाणी कर ऑक्टोपस 'पॉल' ने तो रातोंरात खूब शोहरत बटोरी और मीडिया चैनल ने भी इस मसालेदार खबर को खूब भुनाया....किसी ने स्टूडियो में ज्येतिष्यों को न्योता दे दिया तो किसी ने घंटो इस खबर पर वैज्ञानिकों से चर्चा कर डाली..एक दिन दो दिन नहीं इनकी नौटंकी विश्व कप के समापन तक जारी रहने की उम्मीद बरकरार है....सचमुच कई बार मीडिया की ये भूमिका एक दर्शक होने के नाते हास्यास्पद भी लगती है....खबरें दिखाने में कोई हर्ज नहीं है...लेकिन इन खबरों को तबज्जो से दिखाना थोड़ा अटपटा जरूर लगता है....
वैज्ञानिक तरीके से ये कितना सच है ये तो गहन अध्ययन का विषय बन गया है....लेकिन समय-समय पर जानवरों की ऐसी भविष्यवाणी की खबरों से दर्शकों में भ्रम पैदा होना लाजमी है....खैर विश्वकप के बाद तो ये स्पष्ट हो ही जाएगा कि कौन कितने पानी में है...
शनिवार, जुलाई 3
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