सोमवार, अगस्त 31

दिल का रिश्ता...







ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं...



कुछ दूर...तो कुछ...
दूर रहकर भी करीब होते हैं...
कुछ को मांगते हैं हम अपनी दुआओं में
तो कुछ हमें किस्मत से नसीब होते हैं...




कितने अजीब है ये रिश्ते...
हम जानते हैं कि रिश्ता जो भी हो
हमें मिल ही जाएगा...
फिर भी...क्यों हम
दुआओं के लिए...झोली फैलाते हैं
दिल क्यों किसी से मिलकर खुश
और बिछड़कर जख्मी हो जाता है...
हम जानते हैं कि हमारे नसीब में जो भी हो...
हमें ख़ुद-ब-ख़ुद मिल ही जाएगा...
दिल को समझाना मुश्किल क्यों होता है...
ये दिल भी न जाने क्यों..
धोख़ा खाकर भी नहीं सुनता...
कमज़ोर दिलवालों..ज़रा ग़ौर से सुनें
दिल अगर धड़कता है किसी को देखकर
तो कृप्या अपने दिल का लैमिनेशन करा लें
भगवान ने सबको एक ही दिल तो दिया है
ख़ुदा-ना-खास्ता...गर टूट गया
तो कभी जुड़ता नहीं...बेहतर है..
पहले ही सतर्क हो जाएं...
इसलिए दिल को ज़रा संभाल कर रखें...
यहां-वहां भटकने न दें...
जब यहां-वहां फिरता है ये दिल..
तो आवारा कहलाता है...
और जब टूट जाए...ये दिल..
तो बेचारा बन जाता है...
लेकिन जब इससे कोई थोड़ी सी
हमदर्दी भरी बातें कर ले...
तो बस...उसी का हो जाता है...ये दिल
प्यार से ज़रा इसे कोई पुचकार ले
तो फफक-फफक कर...
अपनी व्यथा सुनाता है...ये दिल
ये दिल भी ना...
जाने कौन सा स्वाभिमान दिखाता है...
कि उससे एक शब्द नहीं बताता
जिसने इसे इतना छल्ली किया हो...
ये रिश्ता जब टूटता है..
कोई आवाज़ नहीं होती...
लेकिन इसका दर्द
पीढ़ियों तक दर्द छोड़ जाता है
ये ज़िंदगी भी हमें कितने रंग दिखाती है...
किसी से मिलाती है..
तो किसी से हमेशा के लिए जुदा कर जाती है
जब किसी से जुड़ता है ये दिल
तो उसी में अपनी सारी खुशियां तलाश लेता है
ये दिल...
दुनिया उतनी बड़ी भी नहीं..
जितना हम समझते हैं...
न जाने हमे किस मोड़ पे
फिर मिलाता है ये दिल...

गुरुवार, अगस्त 27

घर में घमासान


इन दिनों भाजपा में आपसी घामासान खुलकर सामने आ रहा है...नेता...नित नए-नए खुलासे कर रहे हैं...पार्टी की अंदरूनी कलह से हर रोज़ एक नया मामला उभरकर सामने आ रहा हैं...जिससे न केवल देश की जनता बल्कि भाजपा के आलाकमान भी सक्ते में हैं...जिन्ना के जिन के बाद जसवंत सिंह को आनन-फानन में पार्टी से निकालना भाजपा नेतृत्व को भारी पड़ रहा है...पार्टी के भीतर बगावत की जो लहर उठी, उससे न सिर्फ पार्टी दो गुटों में बंटी दिख रही है...बल्कि इस फेरबदल से बड़े नेता भी चपेट में आ गए। जसवंत ने जिन्ना प्रकरण व कंधार कांड पर आडवाणी पर सवाल उठाए ही थे, कि अरुण शौरी संघ का झंडा उठाए समूचे भाजपा नेतृत्व को ही बदलने का नारा लगाने लगे। और तो और, राजग सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नजदीकी रहे ब्रजेश मिश्र भी मैदान में उतर आए। उन्होंने भी कंधार कांड को लेकर आडवाणी पर निशाना साधा। कुछ समय से शांत बैठ यशवंत सिन्हा ने भी मौका देख ब्रजेश की बात का समर्थन कर पार्टी की मुसीबत और बढ़ा दी।
उत्ताराखंड में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नाराज चल रहे भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दिल्ली पहुंच कर मोर्चा खोला...उन्होंने आडवाणी से मुलाकात कर अपने मामले में पुनर्विचार की मांग कर नया विवाद खड़ा कर दिया...राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से भी पार्टी की सिरदर्दी बढ़ा दी...
ऐसे में लगता है...भाजपा के नए घमासान की तोड़ फिलहाल संघ के पास भी नहीं है...हालांकि दिल्ली में डटे संघ प्रमुख मोहन भागवत से भाजपा के वरिष्ठ नेता डा.मुरली मनोहर जोशी मुलाकात कर पार्टी को एसे समय में टूटने से बचाने की मुहिम में जुटे हैं...जोशी ने अनुशासन के मामले में कड़ी कार्रवाई करने की बात तो कही है...भाजपा के तमाम नेताओं की नजर मोहन भागवत पर टिकी है...पार्टी को संकट से निकालने के लिए शायद कोई नायाब तरकीब हाथ लगे...इस घमासान के बीच पार्टी की कश्ती डूबती नजर आ रही है...अब देखना है कि इस मुसीबत से भाजपा खुद को कैसे निकाल पाती है...और कौन-कौन से नेता भाजपा के शासनकाल के नए-नए खुलासे लेकर आते हैं...इस बार भी भाजपा के चुनावी पराजय के बाद पार्टी के नेता पार्टी का साथ छोड़ कर भागने लगे हैं...और जाते –जाते पार्टी की कटु आलोचना और दोषारोपण भी करके जा रहे हैं...भाजपा भला कैसे और किन किन नेताओं पर कार्रवाई करे...पार्टी का डूबता जहाज छोड़ नेता चूहों की तरह पार्टी का साथ छोड़- छोड़ कर भागने लगे हैं, और पार्टी के खिलाफ किताबें लिखने लगे हैं...वैसे भी जहाज का अस्तित्व चूहों से नहीं होता, चूहों का अस्तित्व जहाज से होता है...मलाई का मोह बड़ा भारी होती है, आज नहीं तो कल फिर ये नेता “भाजपा शरणं गच्छामि” कहते लौट आए तो कोई बड़ी बात नहीं...

शुक्रवार, अगस्त 21

मीडिया का काला चिट्ठा




सिक्के दे दो पहलू होते हैं...वैसे ही हर चीज के दो रूप है...एक अच्छा...तो दूसरा बुरा...मीडिया का भी दो रूप देखने को मिलेगा...एक अच्छा तो दूसरा बेहद ख़राब...मैं आपको मीडिया के दूसरे रूप से अवगत कराना चाहती हूं...जब भी कहीं कोई घटना या कहें दुर्घटना घटती है तो एक मीडिया पर्सन कभी उस दुर्घटना में घायल की मदद करने आगे नहीं आता...बल्कि उसे तो उस दुर्घटना में अपने चैनल को जल्द से जल्द और अधिक से अधिक जानकारी देने से मतलब है...सबसे पहले ख़बर ब्रेक करना LIVE ख़ीचना और घायलों और मृतकों की संख्या जानना उसकी प्राथमिकता होती है...मीडिया हाउस उससे समय-समय पर अपडेट्स लेती है...OUTDOOR VAN के जरिए ताज़ा हालात पर पल पल की नज़र रखी जाती है...लेकिन क्या अगर उस दुर्घटना में एक मीडिया पर्सन के रिश्तेदार शामिल हो तो वो मीडिया पर्सन ख़बरों को ऐसा ही कवरेज दे पाएगा...नहीं कभी नहीं...कितनी अजीब बात है...दूसरों के लिए हमारी संवेदना कितनी मर चुकी होती है...
किसी भी खबर की जिंदगी काफी कम देर की होती है...समय के साथ ही खबरें बासी हो जातीं हैं...वैसे ही जैसे सड़ी हुई मछली...या एक दिन पुराने अख़बार की तरह बासी..ख़बरों का अपडेट होना बेहद ज़रूरी है...एक पत्रकार को हमेशा ख़बरों के मायाजाल में उलझे रहने की आदत हो जाती है...पत्रकारों में ख़बरे जल्दी दिखाने की और दूसरे चैनलों से पहले दिखाने भी अजीब सी होड़ होती है...

एक बार मैं एक मीडिया हाउस में इवनिंग शिफ्ट में थी...अचानक खबर आई कि एक प्रसिद्ध नेता को गोली लग गई है...पूरे हाउस में हलचल मच गई...कुछ लोगों की शिफ्ट ओवर हो चुकी थी...लेकिन वे ख़बर के पुख्ता होने तक रुक गए...उन्हें इस चीज़ से मतलब नहीं था कि नेता की स्थिति कैसी है...बल्कि वो ये जानने के लिए बेताब थे की नेता अभी ज़िंदा है...या फिर उसकी मौत हो चुकी है...और अगर मौत हो गई है तो सबसे पहले हमारे चैनल में ख़बर ब्रेक होनी चाहिए...कुछ लोग उस नेता की प्रोफाइल बनाने में जुट गए तो कुछ उनकी फाइल फुटेज निकालने में...सबकी नज़रे ख़बर के अपडेट पर टिकीं थीं...हम जब किसी की प्रोफाइल बनाते हैं तो बड़े ही मार्मिक तरीके से शब्दों को पिरोते हैं...श्रद्धांजलि के तौर पर खूब सारे हृदय बिदारक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं...लेकिन हमारी नज़रे उसके अपोज़िट टिकी होतीं है...हम उस खबर को फोकस करते हैं औऱ सबसे पहले चलाने की होड़ में लगे रहते हैं...और ये अक्सर होता है...अगर आप मीडिया हाउस में हैं तो ये आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं...ऐसी ही एक घटना में मैंने भी एक हस्ती की प्रोफाइल बनाई...हालांकि उस हस्ती की मौत मेरे प्रोफाइल बनाने के 4 दिन बाद हुई और जिस दिन उनके मौत की खबर आई मेरी उस दिन छुट्टि थी...ऑफिस के लोगों ने मुझे फोन लगाना शुरू किया...कि मैंने उस प्रोफाइल को किस नाम से लिखा और किस नाम से पब्लिश कराया है...कितनी अजीब बात है...हम कितने संवेदनहीन होते जा रहे हैं...
मीडिया को यू ही नारद मुनि नहीं कहा जाता...वाकई मीडिया नारद मुनि का काम बखूबी निभा रहा है...फिल्मी गॉसिप्स को ही देख लीजिए...कितनी ही ख़बरे फिजूल की उड़ाई जाती हैं..और बाद में इसका खंडन किया जाता है...मीडिया को ऐसे गॉसिप्स से बस टीआरपी बटोरनी होती है...कई अंधविश्वास की खबरों के प्रसारण पर तो एक तरफ मीडिया कहता है 'इन ख़बरों को दिखाने का हमारा मक्सद अंधविश्वास फैलाना नहीं'और दूसरी और उन्हीं ख़बरों को प्राथमिकता से चलाता है...विजुअल्स में खूब सारे इफैक्ट का प्रयोग किया जाता है और लोगों की उससे संबंधित बाइटे प्ले की जाती हैं...तो फिर इसे दिखाने का मतलब क्या बनता है...हां जिस पार्टी की सत्ता हो उससे जुड़ी खबरे तो खूब दिखाई जाती हैं...लेकिन उसके घोटालों का खुलासा मीडिया उसके सत्ता छिन जाने के बाद ही क्यों करता है...
सब TRP का खेल है बिडू...समझे क्या..

बुधवार, अगस्त 19

ये कैसी झील...

मुज़फ़्फरपुर में एक जगह है...मोतीझील...नाम तो बड़ा ही प्यारा है...लेकिन इस नाम को सुनकर आप ये मत सोचिएगा कि वहां पुराने जमाने की कोई झील होगी...जिसमें मोतियां मिलती होंगी...जनाब ये गलती हमने भी कभी की थी...इस नाम को सुनकर राजा महाराजाओं की कहानी याद आती है...हमने भी कल्पना की थी...खूबसूरत से महल और उसके बीच में एक प्यारे से झील की...मगर नहीं दरअसल झील तो ये हैं लेकिन यहां से मोतियां नदारद है...आम दिनों में तो यहां बड़ी रौनक रहती है...लेकिन अगर आपको इसकी असलियत जाननी है तो बरसात के दिनों आप यहां का चक्कर लगा आईए...आप इसके नामकरण की हकीक़त से वाकिफ़ हो जाएंगे...दरअसल मुज़फ़्फरपुर के सबसे बड़े बाज़ार का नाम है मोतीझील...अब आप सोच रहे होंगे इसका नाम मोतीझील क्यों पड़ा...चलिए हम आपकी समस्या का हल किए देते हैं...बरसात के दिनों में ये पूरा इलाका तब्दील हो जाता है झील में...यानी यहां की गलियां और सड़कों पर घुटनों तक पानी भर जाता है...और वहां बने नाले की गंदगी सड़कों पर आकर बहने लगती हैं...यहां से पानी निकासी का कोई रास्ता नहीं...लोगों को इस झील से गुज़रकर खरीदारी करनी पड़ती है...
मेरा ऑफिस वहीं मोतीझील के पास हुआ करता था...उन दिनों मैं हिंदुस्तान में रिपोर्टिंग करती थी...बरसात में मैंने इन झीलों से गुज़रने का अनुभव कई बार झेला है...ये बाज़ार काफी पुराना है और इसके झील में तब्दील होने की कहानी भी नई नहीं है...लेकिन न तो प्रशासन की नज़र इस ओर गई हैं औऱ न ही यहां की जनता अपनी तक्लीफों से प्रशासन को अब तक अवगत करा पाई हैं...हर साल बरसात में आलम कुछ ऐसा ही होता है...अब तक तो यहां तीन साल से बन रहे ओवरब्रीज ने कई लोगों की जानें भी ले ली है...

MTT बोले तो मधु TOP TEN


पहले तो मैं आपको ये बता दूं की Top Ten का मतलब आप ये मत समझियेगा की मैं खूबसूरती में अपने ऑफिस में Top Ten की रैंक में आती हूं...Top Ten का मतलब है...इन दिनों मैं खबर Top Ten बनाती हूं...जिसमें मैं हेडलाइन की Top 10 खबरें शामिल करती हूं...जिसे Short में HTT कहते हैं...उसके बाद बारी आती है राजधानी Top Ten की जिसे Short में RTTकहते हैं इस तरह से स्पोर्ट्स TOP TEN, BUSINESS TOP TEN ,INTERNATIONAL TOP TEN,CITY TOP TEN,ENTERTANMENT TOP TEN मुझे बनाना पड़ता है...आप सोच रहे होंगे मैं इतना विस्तार से क्यों बता रही हूं...असल में मैं हर रोज़ इन सबसे जुड़ी 60 TOP की खबरें बनाती हूं...जिसके लिए मुझे हर रोज़ लगभग 150 खबरों से दो चार होना पड़ता है...शाम के तीन बजते ही मेरा काम शुरू हो जाता है और मेरा BULLETIN 10:30 बजे ON AIR होता है...जिसकी पूरी जिम्मेदारी मुझपर होती है...इस बीच मैं इतनी बिज़ी होती हूं कि किसी से बात करने का भी मेरे पास वक्त नहीं होता...बुलेटिन के लास्ट मोमेंट में तो कोई मेरे पास से कुछ कहकर गुज़र जाए और मेरा ध्यान भी उस ओर नहीं जाता...ऑफिस के मेरे साथियों ने इस वजह से मेरा नाम MTT रख दिया है...अब MTT का मतलब तो आप समझ ही गए होंगे यानी MADHU TOP TEN...
मुझे भी ये नाम अच्छा लगने लगा है...लोग मुझे बेहद कॉपरेट भी करते हैं...

गुरुवार, अगस्त 13

स्वाइन फ्लू का खतरा...


कुछ साल पहले प्लेग ने लोगों को डराया...उसके बाद बारी आई एड्स की...और अब स्वाइन फ्लू ने लोगों को दहशत में डाल दिया है...देश में हर रोज़ मरनेवालों की संख्या में इज़ाफा दर्ज किया जा रहा है...बचाव ही उपाय है की तर्ज पर...आम इंसान भी मास्क लगा कर घूमने को मजबूर है...किसी की मौत हुई नहीं की सेंप्ल टेस्ट के लिए भेजे दिया जाता है...जिससे लोग और भी डरे सहमे हैं...प्राकृतिक आपदा...दुर्घटना...इंसान किस किस से खुद को बचाए...और इन सबसे बच गया तो कहते हैं ना 'दुनिया में कितने गम हैं...मेरा गम कितना कम है' उस गम से भी निकल गया तो समझो उसने अपनी पूरी जिंदगी जी ली...
अब तो बस लोगों को इंतजार हैं कब ये स्वाइन की बला टले और लोग पहले कि तरह खुल कर जी सकें...स्वाइन ने हर शहर हर गांव और हर इलाके में आतंक फैलाना शुरू कर दिया है...जरूरत है तो बस सतर्क रहकर सुरक्षा अपनाने की...और डटकर मुक़ाबला करने की...जैसे प्लेग और एड्स का खतरा देश में धीरे धीरे टला है...एक दिन ये संकट भी दूर हो जाएगा...लेकिन हां इसके पीछे जनता में ग़लत संदेश न जाए...और लोग हिफाज़त का रास्ता अपनाए....तो निसंदेह ये बला भी टल जाएगी

बुधवार, अगस्त 12

मेरा पहला प्यार...

कहते हैं इंसान अपना पहला प्यार नहीं भूलता...मैं तो कहती हूं इंसान अपनी पहली नौकरी की खट्टी मीठी यादें भी नहीं भूल सकता...एक इंसान अपनी नौकरी को इंज्वॉय करते हुए काम करता है और दूसरा रो रो कर अपनी ड्यूटी निभाता है...बे-शक इन दोनों में से पहला इंसान खुशकिस्मत है...क्योंकि वो अपनी नौकरी को अपना सहीं समय दे पाता है...इंसान को अपनी नौकरी से प्यार करना चाहिए...न कि उसे भार के रूप में लेना चाहिए...मैंने भी अपनी नौकरी से प्यार किया है...और वो भी अपनी पहली नौकरी से...सचमुच मुझे सच्च वाला प्यार हो गया था...मेरी पहली Eटीवी की नौकरी...हैदराबाद से..हुसैन सागर झील...चारमीनार...लुंबिनि पार्क...कोटी...आईटी सैक्टर(हाइटेक सिटी)...बिरला टेंपल...सलारजंग म्यूज़ियम...सांघी टेंपल...वहां के लोगों से...वहां की हर चीज़ से...वहां का ऑफिस...ऑफिस के लोग...मैं कभी नहीं भूल सकती...कोई मेरे समाने हैदराबाद की बुराई नहीं गिना...सकता मुझे आज भी इतना लगाव है हैदराबाद से...आज भले ही हम सब अलग-अलग जगह पर अलग-अलग चैनलों में सैटल हो गए हों...लेकिन एक दूसरे के बारे में हमेशा जानने के इच्छुक होते हैं...आज कई लोग स्टार प्लास में हैं...कोई इंडिया टीवी में...कोई सहारा समय में काम कर रहा हैं...तो कोई NDTVमें कई लोगों ने ZEEन्यूज ज्वॉइन कर लिया...आज देश का कोई ऐसा मीडिया हाइस नहीं जहां ETVके लोग न हों...देश के बड़े-बड़े चैनल भी ETVमें काम कर चुके लोगों पर आंखे बंद कर भरोसा करते हैं...रामोजी फिल्म सिटी में काम करना अपने आप में अनोखा अनुभव है...वहां की तकनीक काफी उन्नत किस्म की है...वहां की लाइब्रेरी जैसे आधुनिक उपकरण तो अब तक किसी मीडिया हाउस में नहीं है...१२ क्षेत्रीय भाषाओं का प्रसारण कोई आम बात नहीं...वहां काम करने वालों को एक साथ देश की १२ संस्कृतियों को जानने का मौका मिलता है...शानदार ऑफिस...शानदार कैंटीन...शानदार लाइब्रेरी...औऱ शानदार नज़ारे...फिल्म सिटी में घुसते ही लगता है आप किसी राजा के सामराज्य में आ गए...अगर आपको मेरी बातों पर यकीन न हो तो एक बार रामोजी फिल्म सिटी घूमकर आईए...आपको खुद ब खुद भरोसा हो जाएगा...और अगर आप वहां तक नहीं जा सकते तो GOOGLE IMAGE में RAMOJI FILM CITY SEARCH कीजिए...आपको वहां के नजारों की खूबसूरत झलकियां देखने को मिल जाएंगी...ETV को मीडिया स्कूल भी कहा जाता है...अपना कोर्स खत्म कर आपने अगर शुरूआत वहां से की...तो देश के किसी मीडिया हाउस में आपको कोई परेशानी नहीं होगी...ETV अपने कर्मचारियों को मीडिया के हर पहलू से अवगत करा देता है...नोएडा फिल्म सिटी SECTOR 16 में जब आप अपने मीडिया हाउस से बाहर निकलेंगे तो आपको सभी चैनलों से कोई न कोई बंदा ETV का मिल ही जाएगा...ETV के लोगों को विभिन्न चैनलों में देखकर बड़ी खुशी होती है...और हैदराबाद की यादें एक बार फिर ताज़ा हो जाती हैं...ETV से करियर की शुरूआत को मीडिया जगत में काफी अच्छा माना जाता है...वहां की खूबसूरत वादियां...लुभावने नज़ारे...पर्यटकों को ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री को भी आकर्षित करती आई हैं...तभी तो वहां के क्षेत्रीय फिल्मों के अलावा बॉलीवुड के फिल्मों की शूटिंग भी खूब होती है...वहां फिल्म सरकरा राज कि शूटिंग के दौरान फिल्म सिटी आए अमिताभ,ऐश-अभिषेक और फिल्म के अन्य कलाकारों ने यहां खूब इंज्वॉय किया...अमिताभ ने फिल्म की शूटिंग पूरी होने पर फिल्म सिटी के बारे में कहा...'वाकई यहां जो भी आएगा...अपनी पूरी फिल्म शूट होने के बाद ही जाएगा....इस फिल्म सिटी में रामोजी राव ने सारी सुविधाए मुहैया करा रखी हैं...'हैदराबाद में अपनी जिंदगी के हंसीन लम्हें बिताए हैं मैंने...पहली बार घर से दूर रहने का अनुभव...अपने घर से अकेले हैदराबाद तक आना-जाना...मैंने अपनी जिंदगी को खुलकर जिया है वहां...इंजवॉय किया है अपनी LIFE को...दोस्तों के साथ घूमने जाना...फिल्म देखना...अपनी पसंद की शॉपिंग करना...काफी मज़ेदार अनुभव रहा जिंदगी का...वहां मेरे एक सहभागी से मेरी अच्छी पटती थी...बिहार डेस्क के एंकर...मेरे घर के नज़दीक ही रहते थे ...आज वो जी यूपी में एंकर हैं...हमने काफी समय वहां साथ बिताया...कई फिल्में भी साथ में देखीं...वो मुझे अपने छोटे बच्चे की तरह ट्रीट करते थे...उन्हें चिकन बेहद पसंद था हफ्ते में दो-तीन दिन तो हमारा चीकन खाना निश्चित था...जिस दिन मैं उनके घर चिकन खाने नहीं जाती उस दिन उन्हें खाना खाने मैं मज़ा ही नहीं आता था...वो भी मुज़फ्फरपुर के थे और मेरे पत्रकारिता विभाग में मुझसे दो साल सीनियर भी...आज उनकी शादी हो चुकी है...हम आज भी एक दूसरे के बारे में जानने के इच्छुक रहते हैं...
EVT छोड़ने का अनुभव मेरा बेहद खराब रहा...डेढ़ साल पूरे हो चुके थे EVT में...मेरे कुछ दोस्तों ने दिल्ली में 40 से 60 हजार की सैलरी पर चैनल JOIN किया था...मेरा भी मन अच्छे पैकेज को मचलने लगा...मुझे याद है मैंने उस दिन ETV में EVENING SHIFT की थी...रात को डेढ़ बजे घर पहुंची थी...दूसरे दिन OFF था...सुबह हमें ZEE NEWS में INTERVIEW देने रायपुर जाना था और हमारी फ्लाइट सुबह साढ़े पांच बजे थी...तीन बजे रात को ही हमें एयरपोर्ट के लिए निकलना पड़ा...दिन में हमने INTERVIEW दिया और तीसरे दिन की फ्लाइट से फिर हैदराबाद वापस...किसी को हमारे INTERVIEW की कानों कान खबर न हो इसके लिए ये ज़रूरी था...क्योंकि अगर हमारे INTERVIEW की ख़बर वहां के मैनेजमेंट को चल गई तो हमारी शामत...तीसरे दिन फिर से EVENING SHIFT में अपने काम पर...दो दिन और दो रातें...बिना सोए हमने ऑफिस का काम किया...उफ कितना हैटिक शिड्यूल था वो...एक महीने बाद खबर मिली की मेरा सेलेक्सन हो गया...लगभग 300 लोगों ने EVT से INTERVIEW दिया था जिसमें से केवल 18 लोगों का selection हो पाया था...मेरे लिए ये बेहद नाजुक फैसला था...मुझे हैदराबाद छोड़ना पड़ा...लेकिन आज भी मेरे ज़ेहन में हैदराबाद की यादें ताज़ा हैं...

शुक्रवार, अगस्त 7

मीडिया...महिलाओं के लिए कितना सुरक्षित?

मीडिया में महिलाओं का बर्चस्व बढ़ता जा रहा है...आज महिलाएं भी मीडिया क्षेत्र में पुरूषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहीं हैं...न केवल वेतन बल्कि...काम के तौर पर भी महिलाएं पीछे नहीं हैं...महिलाओं को भी पुरूषों के समान ही वेतन और भत्ता मिलता है... हालांकि लोगों की ऐसी धारनाएं होती हैं कि मीडिया में महिलाएं सुरक्षित नहीं...उन्हें दिन- दोपहर, सुबह शाम यहां तक की रात की शिफ्ट में भी काम करना पड़ता हैं...जहां तक सवाल है महिलाओं की सुरक्षा का...तो मीडिया की महिलाओं पर कोई बुरी नज़र डालने से पहले भी सौ बार सोचता है...क्योंकि इस क्षेत्र में वही महिलाएं टिक सकती हैं जो पूरी तरह बोल्ड हो...जी हां......बोल्ड का मतलब ऐसी महिलाएं जो जुझारू हो...तेज़ तर्रार हो...और बुरे वत्त में धैर्य और हिम्मत से काम लेना जानती हो...मीडिया हाउस में तो कोई ऐसी हिमाक़त ही नहीं कर सकता... कभी-कभी मीडिया हाउस से बाहर या रिपोर्टिंग के समय उसे मुश्किल की घड़ियों से गुज़रना पड़ सकता है...वहां लड़के उनके साथ छेड़खानी तो नहीं छीटाकशी कर सकते हैं...लेकिन वहां एक ड्राइवर और एक कैमरामैन हमेशा उनके साथ होते हैं...और कुछ नहीं तो पब्लिक तो होती ही है...लेकिन हां अगर एक महिला पत्रकार ख़ुद चाहे किसी के साथ रिश्ता बनाना तो भला उसे कौन रोक सकता है...

दिल्ली और मुंबई को तो मीडिया का हब माना जाता है... और इन शहरों में महिला पत्रकारों की संख्या सबसे ज्यादा है...वहीं हैदराबाद...रायपुर...भोपाल जैसे शहरों में भी महिला पत्रकारों की संख्या में इजाफ़ा देखने को मिल रहा है...क्षेत्रीय चैनलों में महिला पत्रकार बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं...देखा जाए तो महिला पत्रकार आज विदेशों में भी अपना परचम लहराने में कामयाब हो रही हैं...नेश्नल चैनल महिला पत्रकारों पर भरोसा कर उन्हें भी विदेशों में काम करने के अवसर प्रदान कर रहे हैं...इराक युद्ध के दौरान राखी बख्शी ने रिपोर्टिंग कर लोगों को चौका दिया तो वहीं श्वेता तिवारी क्रिकेट की ख़बर के कवरेज़ के लिए लंदन तक पहुंच गई...हिन्दुस्तान की संपादक मृणाल पांडे ने प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा में कई बार शामिल होकर देश का गौरव बढ़ाया है... मीडिया में कई महिला पत्रकार अपनी काबीलियत के दम पर राज कर रहीं हैं...शीतल राजपूत...रितू कुमार, नीलम शर्मा हो या अल्का सक्सेना...सभी मंजी हुई पत्रकारों ने पत्रकारिता की मिसाल पेश की है...एक बात और आपके टीवी स्क्रीन पर जो खूबसूरत चेहरे दिखाई देते हैं केवल उन्हें ही बड़ा पत्रकार नहीं कहा जाता...बल्कि जिन महिलाओं ने रिपोर्टिंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई वो भी इन महिला पत्रकारों से किसी मामले में कम नहीं होतीं...स्क्रीपट राइटर हो या कॉपी एडिटर वो भी इन चमकते हुए चेहरों के बराबर ही वेतन और सुविधाएं पातीं हैं...
एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां महिलऔं को थोड़ी कम तरज़ीह मिल पाई है और वो है...क्राइम सेक्टर...इसमें आज भी पुरूषों का बोलबाला हैं...कभी कदार ही महिलाएं आपको क्राइम की रिपोर्ट सुनाती नज़र आएंगी...कुछ महिलाओं ने इस ओर भी कदम बढ़ाया...लेकिन शायद दर्शकों को ये बदलाब नहीं जमा...दर्शक भी महिलाओं को सॉफ्ट और ग्लैमर्स लुक में देखना पसंद करते हैं...देखा जाए तो महिलाएं रिप्रजेंटेशन के मामले में काफी सतर्क होती हैं...
कुल मिलाकर देखा जाए तो मीडिया सेक्टर महिलाओं के लिए सुरक्षित तो है ही साथ ही यह काफी आकर्षक क्षेत्र भी है...इस फील्ड में अपको इज्ज़त भी काफी मिलती है...और शोहरत भी...इस क्षेत्र में केवल आकर्षक चेहरा काम नहीं आता...बल्कि इसमें आपके तुरंत निर्णय लेने की क्षमता और सूझबूझ काम आता है.... शो पीस की तरह आपको कोई चैनल नहीं झेलता...बल्कि आपका काम बोलता है...रिपोर्टिंग के क्षेत्र में तो आप जितना सिंपल दिखती है आपका रिप्रजेंटेशन उतना ही ओथेंटिक होता है... निर्भर करता है कि आप उस ख़बर को कैसे मोड़ देतीं हैं...एक छोटी से छोटी ख़बर को भी आकर्षक तरीके से पेश कर पाती है या नहीं...मीडिया में कई ऐसी शख्सियत मौजूद हैं जिसे आगर आप देखेंगे तो आपको वो बिल्कुल सिंपल और आम लोगों की तरह ही नजर आए...लेकिन एक साधारन सी दिखने वाली पत्रकार भी कब आपकों गज़ब का कारनामा करते दिख कोई नहीं कह सकता...

गुरुवार, अगस्त 6

चुनौती से भरा करियर


पत्रकारिता...एक चुनौती भरा करियर...रोचक और मज़ेदार करियर....इसमें वही टिक सकता है जो इन चुनौतियों से जूझने की काबीलियत रखता हो...यहां कोई थ्योरी काम नहीं करती...कोई प्रेक्टिकल नहीं चलता...बस आप इसमें लंबी रेस का घोड़ा तभी बन सकते हैं...जब आप इन चुनौतियों से लड़ने का माद्दा रखते हों... वाकई पल-पल इसमें एक नई चुनौती से गुज़रना पड़ता हैं...आपकी एक ग़लती आपके हाउस पर प्रश्नचिन्ह लगा सकती है...बड़ी ही सतर्कता और जल्दी में आपको हर काम निपटाना होता है... हर आधे घंटे में ख़बरे बदल जाती हैं...और आपके सामने होता है एक नया विषय....रोचक और जानकारियों से भरा...देश दुनिया की पल-पल की जानकारी से दुनियां भर के लोगों को अवगत कराने का जिम्मा होता है आप पर...
आज से करीब दस साल पहले पत्रकारिता का वो बर्चस्व नहीं था...पत्रकार शब्द सुनते ही पहले हमारे जेहन में जो तस्वीर उभरती थी...वो थी... खादी का कुर्ता...लंबा सा झोला...और चप्पल पहने...आखों पर मोटा सा चश्मा लगाए...एक ऐसा शक्स जो थोड़ी अजीब सी मान्यता रखता हो...समाज को देखने का नज़रिया भी उसका अलग सा हो...पहले के लोग पत्रकारों को भी ज्यादा फुटेज नहीं देते थे...लेकिन अब समय बदल गया है...आज के पत्रकारों ने पत्रकार शब्द की छवि ही बदल दी है...पत्रकारिता में खबरिया चैनलों की भीड़ ने क्रांति ला दी है...लोगों को ख़बरों के प्रति जागृत कर दिया है...ब्रेकिंग न्यूज़...एक्लूसिल खबरें...और अपने इलाके की जानकारी लोगों को उत्सुक बनातीं हैं...पत्रकारिता क्षेत्र में पैसा भी कम नहीं आपके पास जितना ज्यादा अनुभव होता है आप की बोली उतनी ही ज्यादा लगती है...आप दूसरी प्रतिद्वंद्वी चैनल या अख़बार में ज्वाइन करते हैं तो आपको अच्छा जंप मिलेगा...आर्थिक मंदी में मीडिया सेक्टर भी थोड़ा प्रभावित तो हुआ है...लेकिन इसपर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है...हर ६ महीने में एक नया चैनल लॉच होता है... आज अच्छे पत्रकार लाखों रुपए प्रति माह की तनख़्वाह पा रहे हैं...हालांकि देखा जाए तो इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार ज्यादा लक्की हैं...एक समान्य पत्रकार भी २० हजार से ६० हजार और अच्छा और नामी गिरामी पत्रकार १ लाख से १० लाख रुपए तो प्रति माह आसानी से हासिल कर सकता है... और बात जब नए चैनल में जाने की आती है तो वो अपनी प्राप्त तनख़्वाह से दोगुनी से तिगुनी पर अपनी बोली लगाता है...हर पत्रकार अवसर की तलाश में रहता है कि कब उसे एक अच्छा जंप मिले और वो नई जगह अपनी साख़ कायम करे...हालांकि इस मामले में बैनर भी काफी मायने रखता है...आगर आप अच्छे बैनर से जुड़े हैं तो आपके पांव १२...जी हां आपकी बोली लगाने से पहेल सामने वाले को सोचना ही पड़ता है...क्योंकि एक अच्छा बैनर आपको कम तनख़्वाह में तो रखेगा नहीं...अच्छे बैनर छोड़ने का मतलब है आप उसे मोटी रकम पर साइन कर रहे हैं...या नहीं...अगर नहीं तो भला वो क्यों अपना बैनर छोड़ कर आपके चैनल में आए...टीवी के इडियट बॉक्स ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है...लोगों को खबरों के साथ-साथ मनोरंजन...खेल...व्यवसाय...हर तरह की जानकारी उपलब्ध कराता है...टीवी का रिमोट ऑन करते ही ये सारी जानकारी मिल जाए तो भला कौन इससे बच पाए...आजकल तो चौबीसो धंटे live खबरें दिखाई जाती हैं....और आप आ जाते है इस बुद्धू बॉक्स के मायाजाल में...खबरें मोबाइल पर खबरे आपके नैट पर...खबरें आपकी यात्रा में...हर जगह खबरें ही खबरें...आप इससे ख़ुद को अछूता नहीं रख सकते...
मीडिया फिल्ड में जो एक बार आ गया उसे इसके मायाजाल से निकले में भी काफी मुश्किलें आती हैं...हर समय आप चकाचौंध में जीने के आदि हो जाते हैं...प्रतिष्ठित लोगों से मलने का अनुभव उनके जीवन में ताक-झांक करने का अनुभव...मीडिया की नज़र से कोई बच नहीं सकता...इसलिए मीडिया पर्सन से दोस्ती करने से पहले भी लोग एक बार सोचते ज़रूर हैं...मीडिया में काम करने वाले दोस्ती तो निभा सकते हैं लेकिन अगर आपसे उन्हें कोई रोचक और धांसू ख़बर मिल रही है तो वो ख़ुद को इससे अलग नहीं कर सकते...इसमें भले ही आपका अहित क्यों न हो रहा हो...अगर वो इसे कवर नहीं करेगा तो दूसरे चैनल वाले इसका फायदा उठा सकते हैं...मीडिया जिम्मेदारी का काम भी बख़ूबी निभाता है...आपके ग़म में शरीक होता है...आपको मुसीबतों से भी बचाता है...इस क्षेत्र में करने के लिए काफी कुछ है...जिसका अंत कभी नहीं हो सकता...समय समय पर अभिनेता मीडिया की खूबियों की तारीफ करते नजर आए हैं...अमित जी ने अपने ब्लॉग में लिखा भी है कि उनकी भी हार्दिक इच्छा है संपादकीय बैठक में शामिल होने की...कैसे खबरों की तलाश की जाती है...कैसे इसे रोचक बनाया जाता है और कैसे इसे परोसा जाता है...अमित को ये सारी चीजे काफी चौकाती हैं...उनकी इच्छा है मीडिया हाउस में कुछ समय बिताने की...हमे भी इंतजार है कब अमित जी को इसका अवसर मिलता है औऱ वो मीडिया पर्सनैलिटी की दिनचर्या से रू-ब-रू हो पाते हैं