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अक्सर मनुष्य के जीवन में कोई न कोई ऐसा वाक्या आता है जिसे वो कभी भूल नहीं पाता...हर किसी की जिन्दगी में कुछ न कुछ ऐसी घटना जुड़ी होती है...जिससे वो चाहकर भी नहीं उबर पाता....उसे उसकी यादें हमेशा सताती हैं....उसे उसका एहसास भी उस लम्हें या घटना की यादों को ताजा कर जाती है...औऱ वो चाहकर भी उन यादों से ख़ुद को नहीं निकाल पाता है...जब भी वो उस दौर से गुजरता हो....उसे महसूस होता है...मानो ये कल की बात हों....कुछ जानी-पहचानी..कुछ कही-अनकही या शायद कुछ ऐसी यादें जिसे आप याद न करना चाहें लेकिन वो अपका पीछा ही न छोड़े...आपकी जिन्दगी में बार-बार लौटकर आपको आपके किए का एसहास करा जाए...और आप चाह कर भी उन यादों से खुद को जुदा न कर पाए....किसी से मिलना किसी से बिछड़ना...या उसकी एक-एक अदा उसकी एक एक बातें आपके जेहन में रच बस जाए और आपके लिए वो बेहद यादगार पर बन जाए...जब भी आप उस दौर से गुजरें या उस जगह से गुजरें तो आपको अनायास ही पिछली घटना की याद सताने लगे....
मैं भी ऐसे कई दौर से गुजर चुकी हूं जिसके यादों को मैं चाहकर भी अपने जेहन से जुदा नहीं कर पाती....कई ऐसी बातें हैं...जिन्हें मैं चाहकर भी नहीं भुला पाती....और वो यादें मुझे झकझोरती हैं...मेरी गलतियों का एहसास करा जाती हैं...मैं चाह कर भी उसे नहीं भुला पाती....मैं जब भी खुद को उस जगह पाती हूं...वो सारी बाते कंम्प्यूटर के डाटा की तरह मेरे मानसिक पटल पर आ जाता है...और मैं बेहद परेशान हो जाती हूं....मुझे उसका कोई समाधान नजर नहीं आता...और उस वक्त मैं खुद को वेहद असहाय महसूस करती हूं...ये तो हो गई किसी से मिलने बिछड़ने की बातें लेकिन
मेरे लिए फरवरी से अप्रैल का महीना बड़ी ही मुश्किलों भरा होता है...दरअसल मुझे इस मौसम से डर सा लगता है....मैं खुद भी नहीं जानती ऐसा मेरे साथ क्यों होता है...मेरा शरीर कांपता है....मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है...ये डर मेरे अंदर कब आया...कहां से आया....मैं भी नहीं जातनी...सुबह जब मेरी नींद खुलती है और रात जब तक मुझे नींद नहीं आती... मेरा पूरा वक्त डर-डर कर गुजरता है...क्या ये मेरे अंदर का वहम है....मुझे इस मौसम में चलने वाली हवाएं भी डराती हैं....पतझड़ का मौसम...सर्दी के बाद आनेवाली गर्मी का एहसास मुझे हर वक्त सताती है....उस समय का रूखा-रुखा सा मौसम...खिंच-खिंची सी त्वचा...मुझे गर्मी बिल्कुल पसंद नहीं....मैं अकेले में खुद से कई बार पूछती हूं...कि आखिर मुझे इस मौसम से इतना डर क्यों लगता है...लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिलता....
कई बार मैंने अपनी ये परेशानी अपने दोस्तों को भी बताई...सबने अलग-अलग कारण बताया...लेकिन मैं किसी भी वजह से खुद को जोड़ने में असमर्थ रही...मैंने अपनी बातें ऑफिस में भी अपने साथियों को बताई...लेकिन मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला...मुझे लग रहा था....कि ये सिर्फ मेरे अंदर का वहम नहीं हो सकता...कुछ और लोगों के साथ भी ऐसा होता है....ये बात मेरे सामने तब उजागर हुई जब मैंने अपनी ये परेशानी अपनी रूम मेट को बताई...मेरी रूम मेंट इस वक्त मेरे ही चैनल में न्यूज एंकर है...उसने केन्द्रीय विद्यालय से पढ़ाई की है....मैं भी केन्द्रीय विद्यालय की प्रोडक्ट हूं...उसका कहना है कि ‘मुझे भी इस मौसम में थोड़ा अजीब सा लगता है’...उसका ये कहना है कि इस मौसम में स्कूलों में FINAL EXAM होते थे तो शायद इसी वजह से डर लगता हो....एक दिन वो ऑफिस के कैंटीन में बैठी थी...दोपहर का समय था.... अचानक हमारे एक सर आए उनके मुंह से अनायास ही निकल गया कैसा मौसम हो रहा है EXAM EXAM जैसा...ऑफिस के कई लोग इसी तरह का REACTION दे रहे थे....मेरी रूममेट ने घर आकर मुझे ये बातें बताई...पता नहीं शायद और भी कुछ लोगों को इस मौसम से थोड़ा अटपटा लगता हो....
लेकिन मेरे अंदर ये कैसा डर आज भी समाया हुआ है....क्या मेरा ये डर EXAMO PHOBIA की वजह से है....लेकिन अब तो दूर-दूर तक मेरा EXAM से कोई वास्ता नहीं है...अब में एक अच्छी कंपनी में JOB कर रही हूं....औऱ अब मुझे कहीं दूसरी जगह जॉब सर्च भी करनी पड़ी...तो मुझे EXMA देने की जरूरत शायद न हो...मेरे EXPERIENCE की बदौलत मुझे दूसरी जगह भी अच्छी नौकरी मिल जाएगी....तो फिर अब मुझे किस चींज से डर लगता है....अगर मैं अब भी स्कूल में होती तो कहा जा सकता ता कि मुझे EXAM FEVER हो गया है...स्कूल में मुझे MATHS से बहुत डर लगता था और इसलिए मैंने कॉलेज में MATHS से अपना पीछा छुड़ा लिया...अब मुझे स्कूल से निकले काफी वक्त हो गया है....कॉलेज में थी तब भी मुझे डर लगता था...यूनिवर्सिटी में थी तब भी डर लगता था...अब ये डर MATHS से नहीं था....हालांकि मैं अपनी पढ़ाई अच्छी तरह करती थी और जिस दिन EXAM होता मैं पूरी रात नहीं सोती थी...रातभर पढ़ाई में निकल जाता था...पापा मेरी वजह से पूरी रात नहीं सो पाते थे.... वो बीच-बीच में देखने आते थे कि कहीं मैं सो तो नहीं गई...लेकिन मैं हमेशा उन्हें पढ़ाई करती नजर आती....रात को सोती भी थी तो एलार्म लगाकर सोती थी...वो भी सिर्फ 2 से 3 घंटे के लिए...और नींद में भी शायद में अपने कोर्स को ही दोहराती-बड़बड़ाती थी....सुबह मुझे दोबारा नींद ना आ जाए इसलिए 5 बजे में नहाने चली जाती थी ...कॉलेज में अक्सर डे टाइम में EXAM होता था...और पूरा टाइम मेरा पढ़ने में निकल जाता था....EXAM देने जाते वक्त रास्ते भर मैं अपना पढ़ा हुआ सोचती और दोहराती जाती....जब तक मैं EXAM HALL में नहीं बैठ जाती तब तक मजाल की कोई मुझसे कोई फालतू की गप्पे हांक ले...पापा ने मेरी इस हरकत की वजह से मेरा नाम कालीदास रख दिया था...मैं मार्क्स भी अच्चे ले आती थी....और पापा या मम्मी जब भी मेरे कॉलेज या डिपार्टमेंट जाते मेरे प्रोफेसर मेरी तारीफों के पुल बांधते नजर आते....मां और पापा को मुझपर गर्व होता....मुझे भी बेहद अच्छा लगता था...हां मैं एक साथ कई सारे कोर्स कर रही थी और सबमें अच्छा कर रही थी....लेकिन ये डर मेरा पीछा नहीं छोड़ती...
आज भी मेरे दिल में ये डर क्यों बैठा है मुझे समझ नहीं आता....आखिर इसके पीछे वजह क्या है...आज मैं EXAM के दौर से गुज़र चुकी हूं...आज मैं अच्छी जगह नौकरी भी कर रही हूं...उसमें भी मैं खुश और संतुष्ट हूं...लेकिन आज भी हर रोज में एक बार किसी न किसी के सामने जरूर बोलती जाती हूं कि मुझे इस मौसम से डर लग रहा है...मैं खुद को बेहद कमजोर महसूस करती हूं...मुझे लगता हैं मैं कुछ गलत कर रही हूं....ऐसे में मुझे मेरे अपनों की कमी बेहद खलती है...मैं खुद को बेहद अकेला महसूस करती हूं.....मुझे लगता है मेरा अपना कोई हमेशा मेरे पास हो...मेरा कोई अपना मतलब जिसे मैं अपनी सारी बातें बता सकूं...जो मेरे इस बुरे वक्त में मेरे करीब हो....मेरे पास हो....शायद में बेहद इमोशनल हूं....बहुत जल्दी किसी चीज को खुद से जोड़ लेती हूं....और उसे खुद से अलग नहीं कर पाती...मुझे मेरे करीबी समझाते हैं...अपने इमोशन पर काबू रखो...क्योंकि दुनिया में इमोशन की कोई कद्र नहीं....लोग बड़ी ही आसानी से इमोशनल अत्याचार कर...आपको टाटा बाय बाय बोलकर निकल लेते हैं....और मुझे हमेशा के लिए दुखी कर जाते हैं....ऐसे में कोई अपना होता है तो वो हैं मेरे परिवार वाले....हमारे अपने...जो हमें कभी तक्लीफ में नहीं देख सकते....अगर वो उस पल में हमारे साथ हो तो हम दुनिया की कोई भी जंग जीत सकते हैं...लेकिन अगर उस वक्त उनका साथ न मिले तो आप खुद को बेहद तन्हा और अकेला महसूस करते हैं....मुझे भी ऐसे में मेरे घर वालों की कमी महसूस होती है....मुझे लगता है मुझे कोई खुद में छुपा ले...मैं इस मौसम को अपनी आंखों से नहीं देखना चाहती....काश ये मौसम ही ना आए....मुझे सचमुच ये मौसम तन्हा कर जाता है....मैं इस मौसम में कहीं दूर चली जाना चाहती हूं...जहां मुझे पतझड़ देखने को न मिले.....क्या कोई मुझे बता सकता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है....? क्यों मैं इस वक्त खुद को इतनी तन्हाई में पाती हूं....क्या अब मैं अपने जीवन की परीक्षा से घबराती हूं...?