गुरुवार, मई 5

ये मेरी बेवफ़ाई!!









आज चलो एक गीत सुनाऊ
ख़ुद भी रोऊ... तुम्हें रूलाऊ
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें
चलो मिलकर मैं उन्हें बताऊ।।

खोला मैंने जब पिछला पन्ना
मिला मुझे कुछ औना-पौना
झांका मैंने दिल का कोना
जाना मैंने कुछ अनहोना।।

शिकायत थी अगर मुझसे
तो मुझको बोल देते तुम
छुपकर बहाया अश्क
वो राज़...खोल देते तुम
मिलकर बांट लेते ग़म
कभी तो...बयां होता
ज़माने को सुनाया जो
कभी मुझसे कहा होता।।

काश तजुर्बे ग़लत न होते
मैं भी ग़लती ना करती
कोई मुझसे बेझिझक कह पाता
मेरी ग़लती से पहले
नासमझी थी मेरी माना
एक बार तो रोक लिया होता।।

लेकिन दोनों ने ख़ुद को टोका
कुछ तेरी ख़ता कुछ मेरी ख़ता
कुछ उलझन थी तेरे मन में
कुछ उलझन थी मेरे मन में
इस उलझन ने दोनों को देखो
एक दूजे का होने न दिया।।


तुम भी रोए मैं भी नम थी
न तुम्हें पता न मुझे पता
तुमने सोचा मैं थी बेवफ़ा
मैंने सोचा तुम थे ख़फा
चाहत थी शायद जुदा जुदा।

जब तक मैंने सच को जाना
देर हुई है.. ये भी माना
लौटा नहीं सकती मैं सब कुछ
जिसपर हक़ था सिर्फ तुम्हारा
पर यकी करो अनजाने में हुई ये ख़ता
जान बूझ कर नहीं दी
जिन्दगी भर की ऐसी सज़ा।।

सज़ा तो मैंने पाई है
अब भी दिल में मेरे
एक अजीब सी तन्हाई है।।


"न तुमने साज़ छेड़ा वो
न मैं सुन सकी वो तन्हाई।
मगर मोहब्बत में मेरे मौला
मैं फिर भी बेवफ़ा कहलाई।।"






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