ऐ मौसम ...इतना बदला न कर
हम बीमार...बहुत बीमार हो जाते हैं।।
परदेस में माँ तो हैं नहीं..
जो पल-पल हमसे हमारा हाल पूछ बैठे।।
बिस्तर पर पड़े-पड़े
बस लाचार नज़र आते हैं।।
ठहराव की आदत सी हो गई है अब तो
यू तेरे संग बदलना नहीं सीख पाई अब तक ।।
और क्यों बदल लूं मैं ख़ुद को बोल ज़रा
एक सा रहना तेरी फ़ितरत ही नहीं जब।।
एक सा रहना तेरी फ़ितरत ही नहीं जब।।
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