गुरुवार, जुलाई 30

एक कवि सम्मेलन ऐसा भी...


एक बार मैं एक सम्मेलन में रिपोर्टिंग करने पहुंची...दरअसल विश्व प्रसिद्ध कवि जानकीबल्लभ शास्त्री के घर कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था...उस वक्त मैंने नई-नई रिपोर्टिंग शुरू की थी...मुजफ्फरपुर शहर को भी मैं अच्छी तरह नहीं जान पाई थी...पत्रकारिता से जुड़ने से पहले घर से ज्यादा निकलना नहीं हो पाता था...मुझे कविता लिखने काभी शौक था...और मेरे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी मेरी कविता से वाकिफ़ थे...उस कवि सम्मेलन में मेरे विभाग के भी प्रोफेसर शामिल होने आए थे...
मैं समय से थोड़ा पहले जानकीबल्लभ शास्त्री जी के घर पहुंच गई...शास्त्री जी को जानवरों से बड़ा प्रेम रहा है...मैंने देखा उनकी बिस्तर के आसपास कई कुत्ते मौजूद थे...कोई उनकी गोद में बैठा शास्त्री जी से दुलार पा रहा था तो कोई...पलंग पर बैठे-बैठे दुम हिला रहा था...कोई बिस्तर के नीचे ...तो कोई पूरे कमरे की पहरेदारी कर रहा था...शास्त्रीजी ने मुझे कमरे में जाने के संकेत दिए...मैं अंदर गई...वहां उनकी श्रीमति जी ने मेरा अभिवादन किया...मेरा परिचय पूछा...मैंने शास्त्रीजी के स्वान प्रेम के बारे में पूछा...श्रीमति ने जवाब दिया कि अब तो बहुत कम पशु आप देख रही हैं...पहले तो और भी कई जानवर हम पालते थे...फिर मैंने कवि सम्मेलन के बारे में जानना चाहा...उन्होंने बताया पृथ्वीराज चौहान के समय में यहां दरवार लगता था और विशाल कवि सम्मेलन का आयोजन होता था...दुनियाभर से कवि यहां आते थे...मैं काफी प्रभावित हुई...

धीरे-धीरे कवियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया...महफिल जमने लगी...कवियों ने एक से बढ़कर एक कवितापाठ किया...मैंने खबर बनाई...मुझे देर हो रही थी...उस दिन मेरा ऑफिस भी बंद था...इसलिए ये ख़बर मुझे दूसरे दिन प्रकाशन के लिए देनी थी...मैं घर जाने की तैयारी करने लगी...मेरे एक प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कैसे घर जाएंगी आप...आप चाहें तो मैं छोड़ दूं...मैंने कहा मैं अपने वाहन से आई हूं और मैं चली जाऊंगी...उन्होंने कहा बेटा जल्दी घर लौट जाओ देर हो रही है... उस वक्त रात के 8 बज रहे थे...मैं निकल पड़ी घर की ओर...असल में शास्त्री जी का घर जहां था उससे सटा हुआ इलाका काफी बदनाम इलाका माना जाता रहा है...मैं उस वक्त समझ नहीं पाई सर मुझसे क्या कहना चाह रहे थे....मैं जब आगे बढ़ी तो एक बाईक वाले ने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया...वो मेरे साथ साथ वाहन चलाने की कोशिश कर रहा था...और फोन पर मुझे सुनाते हुए कुछ अपशब्दों का प्रयोग कर रहा था... मैं थोड़ी सहम गई...मैंने अपने वाहन की गति धीमि कर दी...मैंने देखा उस शख्स ने भी अपने वाहन की गति कम कर दी है...मैंने अपने वाहन की स्पीड तेज़ कर दी...फिर उसने भी अपने वाहन को तेज़ी से चलाना शुरू किया और मेरे साथ साथ चलने की कोशिश करने लगा...मैं कुछ देर के लिए रुक गई...मैंने देखा वो भी कुछ आगे जाकर रुक गया हैं...मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकती थी...क्योंकि हल्की बारिश हो रही थी...बारिश बढ़ ना जाए ये सोचकर ...मैंने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी...मैं हिम्मत कर निकल पड़ी फिर मैंने देखा वो मेरा पीछा अब भी कर रहा हैं...मैंने अपनी गाड़ी की गति खूब धीमि कर दी और उसे आगे जाने दिया...ये सिलसिला काफी देर चलता रहा कभी वो आगे बढ़ जाता तो कभी मैं आगे निकल जाती...धीरे धीरेमैंने उसके गाड़ी का नंबर याद कर लिया...फिर जब वो मेरे साथ गाड़ी चलानेकी कोशिश करने लगा तो मैंने चिल्लाते हुए कहा बेटा मैनें तेरी गाड़ी का नंबर नोट कर लिया है और मैं अभी फोन लगाती हूं डीआईजी को...मैने उसकी गाड़ी का नंबर भी उसे सुना दिया...दरअसल उस वक्त डीआईजी गुप्तेश्वर पांडे वहां कार्यरत थे औऱ उनसे हमारा घरेलू संबंध था...उनकी लड़कियां हमरे स्कूल से पासआऊट हुई थी...पापा से भी उनका अच्छा परीचय था...अब तो वो गाड़ी वाला एक पल के लिए भी नहीं रुका...उसने अपने गाडी़ की गति इतनी तेज़ की कि पल भर में मेरी आंखों से औझल हो गया...मैं घर पहुंची और मैंने हांफते हांफते अपने मम्मी-पापा की इस घटना के बारे में सारी बातें बताई...

बुधवार, जुलाई 29

मेरा अनुभव


उन दिनों में पत्रकारिता पीजी प्रथम वर्ष में थी...मैं हिन्दुस्तान अख़बार में भी लिखती थी...जब मेरी बयलाइन खबरें छपती थी...तो मुझे बड़ा मज़ा आता था...मेरे पिताजी को सुबह उठते ही अख़बार का इंतज़ार रहता था...औऱ वो मेरे नाम से निकली ख़बर का बेसब्री से इंतज़ार करते थे...जब मैं सो रही होती थी तब वो मेरे पास बैठकर मेरी ख़बर पढ़ कर सुनाते थे...मुझे तो मेरी लिखी एक एक लाइन याद रहती थी..पापा पढ़ते और मैं इससे पहले ही उन्हें आगे की बातें बताती जाती...दरअसल पापा मुझे जल्दी जगाने के लिए ऐसा करते थे...

एक बार हर रोज की तरह दोपहर के वक्त आयोजित संपादकीय बैंठक में मैं पहुंची तो...मेरे पास कोई ख़बर नहीं थी...तब मुझे वहां के ब्यूरो चीफ ने लेप्रोसी मिशन अस्पताल से ख़बर निकाले के लिए कहा...हालांकि अस्पताल वहां से काफी दूर था...और उस समय गर्मी भी काफी तेज़ थी...वैसे भी मुझे धूप से एलर्जी थी...उस समय दोपहर के डेढ़ बज रहे थे...चिलचिलाती धूप देखकर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी अस्पताल जाने की...लेकिन मुझे जाना था...मैं निकल पड़ी अपनी ख़बर की खोज़ में...मेरे लिए अनजानी जगह...मैं वहां कभी नहीं गई थी...मुझे रास्ता भी नहीं मालूम था...पूछते-पूछते आख़िर में लेप्रोसी मिशन अस्पताल पहुंच ही गई...अब मैंने वार्ड के बारे में पता किया मैंने वहां के अधिकारी से बात की...उन्होंने मुझे मरीजों से मिलने की इज़ाजत दे दी...मैं वार्ड की ओर बढ़ने लगीं...पहले मैंने जेन्ट्स वार्ड में प्रवेश किया...वहां मुझे सबकुछ सामान्य लगा...फिर मेंने लेडीज़ वार्ड में प्रवेश किया...एक -एक मरीज़ से मैंने उसका हल-चाल पूछा...मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था वहां...धीरे धीरे मैं आगे बढ़ने लगी...एका एक मेरी नज़र एक १४-१५ साल की लड़की की और गया...अस्पताल में हालांकि ज्यादातर मरीज़ अधिक उम्र के थे.इस बच्ची को देखकर में उसके करीब थोड़ी देर रूकी...दरअसल वो लड़की किताबों में खोई हुई थी...मैने उससे उसका नाम पूछा...शर्माते हुए उसने अपना नाम बताया...मैंने पूछा तुम यहां पढा़ई कैसे कर पाती हो...तो उसने मुझे बताया कि मेरी परीक्षा नज़दीक है मैं इस साल ८ वीं वोर्ड की परीक्षा दे रही हूं...मुझे बड़ा होकर अफसर बनना है...फिर मुझसे पूछने लगी दीदी आप यहां क्यू आए हो...मैंने बड़े आत्मीयता से उसे जवाब दिया कि मै सबसे मिलने आई हूं...

मैं उसके पास रखी एक कुर्सी पर बैठ गई...मैने उसके घर बालों के बारे में पूछा आचानक वो रोने लगी...मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी...मैंने पहले तो उसे चुप कराया...उसके बाद मैंने उससे भरोसा दिलाया की मैं उसे उसकी मुसीबतों से निकालने में मदद करूंगी...पहले तो वो तैयार नहीं हुई कुछ भी बताने के लिए...बहुत समझाने के बाद बताया की पास ही के एक गांव उसका परिवार रहता है लेकिन पिछले ७-८ सालों से वो अपने परिवार के सदस्यों से नहीं मिली है...जब मैनें पूछा ..उसने बताया उसके घर वालों ने उसे एक लेप्रोसी स्कूल ले जाकर छोड़ दिया जिसके बाद पलट कर उसे देखने कोई नहीं आया...हालांकि उसकी मां कभी कभी उससे मिलने आ जाया करती थीं...वो भी उसके पिता से छुप कर...उसकी छोटी दो बहनों की शादी भी हो गई...न तो उनकी खुशियों में वो शरीक हो पाई और नहीं उसके पिता के दिल में इस मासूम के लिए कोई जगह थी...पिता उसे घर लाना नहीं चाहते... इसकी इस दर्दनाक कहानी ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था...मैंने इस लड़की से सारी जानकारी ली और वापस अपने घर चली गई...मैंने अपने ऑफिस के फोटोग्राफर को फोन किया कि इस लड़की की एक फोटो वो खींच लाए...शाम को मैंने इस स्टोरी को बड़े अच्छे से लिखकर कहानी में खूब मार्मिकता भरी और ब्यूरो चीफ को दिखाया...उस वक्त संपादक शुकांत सर भी वहां मौजूद थे...ब्यूरो चीफ ने उस स्टोरी को संपादक के सामने रखा...संपादक ने मेरी इस स्टोरी की काफी तारीफ की और कहा फोटोग्राफर को भेजो वो इसकी एक फोटो खींच लाएगा...कल की बाइलाइन ख़बर यही बनेगी...मैं काफी खुश हुई...मुझे लगा मेरी मेहनत सफल हुई...फोटोग्राफर जब उस लड़की की फोटो लेने पहुंचा...तो लड़की ने रोना चिल्लाना शुरू किया...सभी हैरान...इसे क्या हो गया...उस लड़की ने पूरा अस्पताल अपने सिर पर उठा लिया...क्या डॉक्टर... क्या नर्स...अधिकारी...और मरीज सभी इकट्ठे हो गए...लड़की ने बताया कि ये मेरा फोटो खीचेंगे और मेरे घरवालों को पता चलेगा तो मेरे पिता की बदनामी होगी...फोटोग्राफर ने समझाया कि तुम्हारा नाम बदल दिया जाएगा...चेहरे पर मॉजेक कर दिया जाएगा...डॉक्टर ने समझाया ...लेकिन लड़की नहीं मानी...आखिर उसने फोटो नहीं ही लेने दिया...फोटोग्राफर ने मुझे फोन लगाया और बताया कि वो फोटो लेने नहीं दे रही है...मेरी ख़बर की तो वॉट लग रही थी...मेरी पूरी मेहनत बेकार चली जाती...मैंने फोन पर उसे समझाने का प्रयास किया...संपादक महोदय ने उसे समझाया लेकिन अंत तक वो तैयार नहीं हुए...और मेरे दिनभर की मेहनत पर उसने एक पल में पानी फेर दिया...

सोमवार, जुलाई 27

कारगिल विजय दिवस


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले

वतन पे मरनेवालों का...बांकी यहीं निशां होगा...


ठीक दस साल पहले द्रास में कई मांओं ने अपने लाल खोए...कई बहनों ने वीर गवाएं...कई मांगे सूनी भी हुई...लेकिन आख़िरकार भारत मां के सपूतों ने कारगिल की चोटी पर फ़तह हासिल कर ही ली...दस साल बाद भी हमारे ज़ेहन में कारगिल की यादें ताज़ा है...पूरा देश कारगिल फ़तह की गौरव गाथा गा रहा है...द्रास में भी सुबह से शाम तक जश्न का माहौल रहा...देशभर ने कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि दी...शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया गया...वहीं देर शाम उन तमाम चोटियों की रौशनी से देश जगमगा उठा...

रंगारंग प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया...इस मौक़े पर हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए और शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी...द्रास में जब एक साथ हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए तो माहौल में एक बार फिर नमी सी छा गई...कई आंखे ख़ुशी से छलक उठे...तो कहीं गम के आंसू से माहोल ग़मगीन हो गया...किसी को भाई की कलाई याद आ गई तो कई आंचल एक बार फिर से भींग गए....लेकिन इन सबके बावजूद द्रास में जीत की याद रौशनी बन कर उभरी तो सब की ज़ुबां पर बस यही आया...


धन्य है वो धरा...हो गया वो अमर ...

जो वतन पर मरा...

है समर्पित तुम्हें....वाटिका के सुमन ....

ऐ शहीदों तुम्हें कोटी कोटी नमन...

शुक्रवार, जुलाई 24

संगीत की धुन....




संगीत के बोल...उसकी धुन....उसकी तान कुछ कहती हैं!
ज़रा ग़ौर से सुनिए...इसके बोल...इससे निकलने वाला एक-एक स्वर आपमें नई उर्जा भर देता है...
नए...पुराने..रीमिक्स...वेस्टर्ण...और न जाने क्या क्या...लेकिन संगीत हर उम्र...हर वर्ग के इंसान को अपना दीवाना बना लेती है...आप ग़म में डूबे हो...या मौक़ा ख़ुशी का हो...आप इसके पहलू से बच नहीं सकते...जब आप ग़मगीन होते तो शैड सॉग आपके दिल को सुकून देता है...जब आप ख़ुश होते हैं तो आपको आपकी पसंद के सभी गाने लुभाते हैं...संगीत अगर आपका अच्छा दोस्त बन जाए तो आपके सारे ग़म पल भर में छू मंतर कर देती है...त्योहारों पर भी अलग-अलग मूड के गाने सुने जा सकते हैं...आजकाल तो इयरफोन ने लोगों को संगीत से जोड़ने में महारत हासिल कर ली है...लोगों की कानों में इयरफोन चिपके दिखाई दे जाए तो कोई बड़ी बात नहीं...आईपोड...कंप्यूटर...लैपटॉप..यहां तक की फोन में भी संगीत की सुविधा उपलब्ध करा दी गई हैं...पहले रेडियो स्टेशनों पर जहां समाचार और कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाती थी...वहीं अब तो वो भी संगीत के रंग में रंगे नज़र आते हैं...रेडियो के कई सारे संभाग हर समय लोगों के मनपसंद गाने बजाते सुनाई देंगे...




हर वर्ग के लिए अपने समय के गाने पसंद आते हैं...वुजुर्ग अपने समय के गाने सुनना पसंद करते हैं...प्रोढ़ अपने जमाने के गीत सुमकर अपनी यादें ताज़ा करते हैं...तो बच्चे अपनी तरह के गाने सुनने में दलचस्पी लेते हैं...वहीं युवा तड़कीले भड़कीले गानों की धुन पर झूमते हैं...किसी को क्लासिकल संगीत लुभाता है तो किसी को फिल्मी संगीत....किसी को पॉप पसंद आता है तो किसी को....स्लो सॉंग भाता है...सच कहूं तो मैं भी संगीत की बेहद दीवानी हूं...और मुझे नए गाने ज्यादा पसंद आते हैं....गज़ल सुनने का भी शौक़ रखती हूं...पंकज उदास, गुलाम अली और जगजीत सिंह की गज़लों में तो मैं खो सी जाती...
हूं....


कुछ संगीत प्रेमी तो ऐसे भी होते हैं जो अपने जरूरी काम भी संगीत सुनकर निपटाना पसंद करते हैं....
क्या आप भी इनमें शामिल हैं...?
तो फिर चलिए...करते हैं संगीत से देस्ती और इसके आग़ोश में डूब कर भूल जाए सारे ग़म....

बुधवार, जुलाई 22

ये रियल्टी शो



टीवी पर चल रहे रियल्टी शो...लोगों का मनोरंजन तो कर ही रहे हैं...साथ ही शो की टीआरपी बढ़ाने में भी मददगार साबित हो रहे हैं...अब राखी सावंत के शो 'राखी का स्वयंवर' हो या फिर 'सच का सामना'...इन दिनों इन दोनों की चर्चा ज़ोरों पर है...लोग इसे बड़े चाव से देखते हैं...शो...राखी का स्वयंवर में राखी ने अपने लुक में काफी बदलाव लाया हैं...हर रोज़ राखी का नया रूप देखने को मिलता हैं...स्वयंवर में आए लड़कों के दिल का भेद खोलने में रखी का जवाब नहीं...प्रतिभागी मनमोहन और उसके परिवार का के दिल की बात समझने में राखी ने कमाल ही कर दिया...मनमोहन की मां किस तरह बदल जाती हैं...मनमोहन के दिल में क्या चल रहा है...राखी ने मनमोहन को खूब सबक भी सिखाया...उसे जब अभी शादी नहीं करनी थी...तो फिर शो में वो गया ही क्यों था...अपने बड़े भाई को भेज देता...मनमोहन ने राखी को इस्तेमाल करना चाहा..अपनी मान मर्यादा बढ़ाने के लिए उसने सेलिब्रिटी राखी को ऋषिकेश बुलाया...हालांकि राखी ने उससे साफ बता दिया की वो उसके घर सेलिब्रिटी बनकर नहीं आई थी...राखी का ये कहना की उसके पिता को बहू नहीं नौकरी चाहिए...गलत था...किसी भी परिवार की बहू बनने से पहले एक लड़की को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए को वो उसके घर की इज्जत बनने जा रही है...अगर मनमोहन के पिता ने उससे कहा कि हमें बहू ऐसी चाहिए जो 10 बजे तक बिस्तर पर पड़ी न रहे...सुबह उठकर हमारे लिए चाय बनाए...तो इसमें ग़लत क्या था...राखी...एक अच्छी बहू बनने के लिए इतना तो करना ही पड़ता हैं...वो सिर्फ आपका परिवार नहीं होता वो अपके लिए आपका अपना घर होता है...उसके हर सदस्य आपके अपनों से बढ़कर होते हैं...आप जितना उनसे लगाव रखती है...उनका आशिर्वाद और प्यार उतना ही ज्यादा गहरा होता जाता है...
देखा जाए तो अब ये शो काफी दिलचस्प होता जा रहा है...मनमोहन के बाहर होने के बाद...कनाडा में रह रहे व्यवसायी इलेश पारूजनवाला का रास्ता साफ हो गया है...राखी का दावा है कि अगस्त तक वो शो में आए किसी एक प्रतिभागी से शादी रचा लेगी...इलेश के शांत स्वभाव ने राखी को अपना कायल बना दिया है...राखी के लिए आयोजकों ने शानदार शादी समारोह भी आयोजित करने की तैयारी कर ली हैं...राखी इस दिन ऐश्वर्या राय जैसी दिखना चाहती हैं...शादी के जोड़ों के साथ ही कीमती गहने भी तैयार किए जा रहे हैं...अब तो शो के अंत में ही पता चलेगा कि राखी किसकी दुल्हन बनेगी...लेकिन इस शो के ज़रिए राखी ने एक अच्छा संदेश पूरी दुनिया के सामने रखा है...जो वाकई क़ाबिले तारीफ़ है...एक लड़की की क्या अहमियत होती है...और लड़के वाले किस तरह एक लड़की की परीक्षा लेते हैं...लड़कों ने ख़ुद परीक्षा देकर कम से कम इतना तो महसूस किया ही होगा...शादी से इनकार करने पर एक लड़की पर क्या गुज़रती है इसे भी लड़कों ने महसूस ज़रूर किया होगा...इस शो के ज़रिए राखी ने दर्शकों के दिल में अपनी साफ सुथरी छवि बना ली है...

वहीं दूसरा शो जो टीआरपी बटोरने में काफी सफल साबित हो रहा हैं...वो है 'सच का सामना'...हालांकि इस शो पर काफी विवाद भी उठा...यहां तक की संसद में भी इसपर बहस हुई...सभी दल के नेताओं ने इसे बंद कराने की मांग की...शो में प्रतिभागियों से बेहद निजी सवाल पूछे जाते हैं...प्रतिभागियों का पॉली टेस्ट कराया जाता हैं....और ज़िदगी से जुड़े काफी नाज़ुक सवाल पूछे जाते हैं...तो क्या आप चाहेंगे अपनी ज़िंदगी के उन अनछुए पहलुओं को पूरी दुनिया के सामने स्वीकार करना...अगर आपमें भी है हिम्मत सच का सामना करने की तो फिर आपके लिए खुली चुनौती है... जिस सच्चाई को आप अब तक दुनिया से छिपा कर रख रहे थे उसे क्या आप भी उजागर करना चाहेंगे? सच का सामना कर पाना वाकई काफी मुश्किल है...

सोमवार, जुलाई 20

जब तुम थे...


जब तुम थे...मेरी ज़िन्दगी में शामिल
मुझे लगता था, मेरे जीवन का है कुछ आस्तित्व
जब तुम थे...
मैं हंसती, खिलखिलाती, मुस्कुराती थी
मैं इठलाती, इतराती, गुनगुनाती थी
मैं लहलहाती, चहचहाती, शर्माती थी
मैं सबकी ख़ुशियों में शामिल नज़र आती थी
मैं सबको सुकून बांटती थी
मैं ग़म का हल भी चुटकियों में निकाल लेती थी
मैं दुनिया से लड़ने का माद्दा रखती थी
मैं कल्पनालोक में विचरण करती थी
इंद्रधनुष के सात रंग मेरे जीवन को रंगीन बनाते थे
जब तुम थे...
मेरी दुआओं में तुम ही तुम नज़र आते थे
मेरी ज़िन्दगी में आई थी बहार
मेरी आकांक्षा उमड़ती, घुमड़ती, सरसती थी
मेरी सांसें अवाध्य गति से दौड़ती थीं
मेरी बातों में जादू टपकता था
मेरी दुनिया सात रंगों से सजी थीं
मेरे सपने सजते, संवरते, सुलझते थे
मेरे जीवन में उत्साह, उमंग, उन्माद था
मेरे जीने का भी मक्सद हुआ करता था
मेरे कई शौक...कुलांचे भरते थे
हर काम में मेरी उपस्थिति झलकती थी...

देखो न....पहले मैं क्या थी...
और आज मैं क्या हूं...
आज जब तुम मेरी ज़िन्दगी में नहीं....
आज इन सबके अर्थ बदल गए हैं...
मैं अकेली, असहाय, अनाथ हो गई हूं...
सूखे पेड़ की डाली के टूटे पत्तों की तरह बेजान, नर्जीव, सूनी
तुम्हारी उन यादों ने मुझे एक पल भी तन्हा न छोड़ा
मेरी तन्हाई मुझे घून की तरह अंदर ही अंदर खाने लगी है
घर का एक शांत कोना मुझे बांहे पसारे जाने क्यों बुलाता है
सैडसॉन्ग मेरी तन्हाई मिटाने के लिए भी काफ़ी नहीं...
फिर मेरी आंखें बिना रुके झरझराती हैं...
मेरे जीवन में कोई उमंग कोई उत्साह नहीं
मेरा फ़ोन...पहले कभी मुझसे ख़ाली व़क्त की मिन्नत करता था
जो आज चुपचाप मुझसे किनारा किए बैठा है...

जब मैं चित्र बनाने बैठती हूं और तूलिका से उनमें
रंग भरने का प्रयास करती हूं...
वे चित्र भी अपने फीकेपन का एहसास करा जाते हैं...
जो पहले कभी अपने अंदर सभी गाढ़े रंग समेट लेते थे
आज रंगहीन बनकर इठलाते हैं...

वो लड़ना...वो झगड़ना...
अब आंसूओं की धार बनकर बह जाना चाहता है...
तुम्हारी यादें उनमें धुंधली होने का प्रयास करती हैं
हवा के वे शीतल झोंके...जो पहले मुझे गुदगुदाते थे...
आज थपेड़े बनकर मुझे डराते हैं...
त्योहार आता है...और बिना कोई एहसास कराए निकल जाता है...
मेरा मन कहीं स्थिरता नहीं पाता
कोई मेरे हृदय के एक कोने में जगह न मांग बैठे
मैंने उसका भी उपाय कर लिया है
मन को एक ताले में बंद कर...चाभी न जाने कहां गुमा दी है...
कोई मुझे अपने आकर्षण में बांध भी तो नहीं पाता
न जाने मैं उसमें भी वही उम्मीद लगा बैठती हूं...
कि दिल एक पल में टूट जाता है...
कोई मेरी आवाज़ में वो मिठास भी तो नहीं पाता
मेरा मन बेबस, असहाय, लाचार है..
मेरा दिल ज़ख़्मी, मजबूर है...
मेरी हंसी में भी उदासी अपनी झलक दिखा जाती है...
क्या मेरे जीवन में कभी बहार नहीं आएगी...
क्या मैं इतना सा ही वक्त लेकर इस दुनिया में आई थी...
अगले जनम में मिलने की आस लेकर..
क्या में यूं ही दफ़न हो जाऊं...
और तब...

क्या ये एक कहानी बनकर...
बिना किसी को सुनाए...शून्य में मिल जाएगा...
और क्या अगले जनम में भी मेरा प्यार
मुझे वापस मिल पाएगा ?