अपनी जिंदगी में बिताए लम्हों में शादय सिनेमाहॉल से जुड़ी आप सबकी की भी कुछ न कुछ खट्टी-मीठी यादें होंगी...
सिनेमाहॉल जाने पर किसी को डांट खानी पड़ी हो या चोरी छिपे जाने पर किसी परिचित ने देख लिया हो... एक बार मैंने और मेरे भाई ने भी महज टीवी देखने किसी दूसरे के घर जाने पर पिता की डांट खाई थी...
वहीं एक बार तो ऐसा हुआ की हमारी कक्षा के कुछ लड़के स्कूल से बंक मारकर सिनेमाहॉल पहुंचे पिक्चर देखते वक्त वो आगे की सीट पर बैठे थे और उनकी
सीट से एक लाइन पीछे हमारे स्कूल की ही दो मैडम फिल्म देखने पहुंची थी...लड़के फिल्म के खुछ हॉट सीन आने पर छीटाकशी भी कर रहे थे...जब इंटरवल आया और हॉल की लाइट जली तो लड़कों ने पीछे पलटकर देखा....अपने पीछे स्कूल की टीचर को पाकर तो जैसे उनके पैरों तले जमीन खिसक गई हो...उनमें से एक तो किसी टीचर का बेटा भी था....फिर क्या था उसकी तो घर जाने पर धुनाई पक्की....बेचारे इंटरवल के बाद सज्जन बच्चों की तरह चुपचाप बैठे रहे और फिल्म खत्म होते ही खिसक लिए....

पहले अक्सर परिक्षार्थी छुप-छुप कर सिनेमा हॉल जाया करते थे...पहले सिनेमाहॉल जाना कितना मुश्किल हुआ करता था ना....लेकिन अब देख लीजिए लोगों को बस नई और अच्छी फिल्मों के आने का इंतजार रहता है...सिनेमाघरों में भीड़ टूट पड़ती है...हां कुछ फिल्मों को दर्शकों का टोटा रहता है...लेकिन दर्शक हमेशा अच्छी फिल्मों की ताक में रहते हैं... अब धड़ल्ले से हर वर्ग के लोग आपको सिनेमाघरों में नजर आएंगे...छुट्टी का दिन हो तो.... या आप किसी दिन मॉर्निग शो देखने जाइए आपको वहां स्कूली बच्चों और कॉलेज के स्टूडेंटों की बड़ी तादात दिख जाएगी...ऐसा भी नहीं है कि इसमें सिर्फ लड़के ही नजर आए... इसमें लड़कियों उतनी ही तादात में शामिल होती हैं...वैसे लड़कियां भी अब फिल्में देखने के मामले में पीछे नहीं हैं....
दुनिया के किसी भी कोने में आपको ये नजारा आसानी से दिख जाएगा..अब खासकर कपल्स भी फिल्में देखने खूब आते हैं...
अब कुछ फिल्में भी ऐसी बनने लगी है जिन्हें स्कूल से बच्चों को दिखाने के लिए ले जाया जाता है...जैसे फिल्म तारे जमी पर को ही ले लीजिए...मुझे याद है जब फिल्म टाइटेनिक आई थी...उस वक्त तो नहीं लेकिन कुछ साल बाद जब में कक्षा 11 वीं में थी तो हमारे स्कूल में VCR के जरिए ये फिल्म दिखाई गई थी क्योकि इसकी स्टोरी हमारी 11 वीं की अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में थी... अब छुट्टियों के दिन अक्सर आपको माता पिता के साथ बच्चे भी सिनेमाघरों में नजर आएंगे...माफ कीजिएगा अब सिनेमाहॉल का नहीं अब तो मॉल और मल्टीप्लेक्स का जमाना है...तो मॉल और मल्टीप्लेक्स में हर वर्ग के लोग आपको नजर आएंगे...पहले बच्चों को सिनेमाहॉल जाने की परिवार की ओर से बड़ी मुश्किल से आज्ञा मिलती थी...लेकिन अब बच्चों को भी शौकिया तौर पर लोग ले जाते हैं...आखिर उनकी इच्छाओं को क्यो मारा जाए...
अब फिल्मों की बात की जाए और ऑफिस में काम करने वालों को इससे दूर रखा जाए भला ये कैसे हो सकता है...ऑफिस से मेरा मतलब है काम करने वाले कर्मचारी....उनके लिए हफ्तेभर में एक छुट्टी का दिन ही तो मिलता है खुद पर समय खर्च करने के लिए...ऐसे में वो बीच बीच में फिल्में देख कर अपने दिल को थोड़ा तो सुकून दे ही सकते हैं....इनमें सबसे ज्यादा फिल्मों के शौकीन होते हैं I.T. सैक्टर में काम करने वाले...उनके लिए दो दिन की छुट्टी का मतलब होता है फुल फन...चार यार दोस्तों का साथ मिला और निकल लिए फिल्म देखने...किसी को फिल्म की हिरोइन पसंद आ गई तो कोई फिल्म के गानों पर ही कुर्बान हो गया...
अब फिल्म हॉल जाने को लेकर लोगों का नजरिए थोड़ा बदला है....और ये है आज की रंग रंगीली हमारी दुनिया