गुरुवार, अगस्त 6

चुनौती से भरा करियर


पत्रकारिता...एक चुनौती भरा करियर...रोचक और मज़ेदार करियर....इसमें वही टिक सकता है जो इन चुनौतियों से जूझने की काबीलियत रखता हो...यहां कोई थ्योरी काम नहीं करती...कोई प्रेक्टिकल नहीं चलता...बस आप इसमें लंबी रेस का घोड़ा तभी बन सकते हैं...जब आप इन चुनौतियों से लड़ने का माद्दा रखते हों... वाकई पल-पल इसमें एक नई चुनौती से गुज़रना पड़ता हैं...आपकी एक ग़लती आपके हाउस पर प्रश्नचिन्ह लगा सकती है...बड़ी ही सतर्कता और जल्दी में आपको हर काम निपटाना होता है... हर आधे घंटे में ख़बरे बदल जाती हैं...और आपके सामने होता है एक नया विषय....रोचक और जानकारियों से भरा...देश दुनिया की पल-पल की जानकारी से दुनियां भर के लोगों को अवगत कराने का जिम्मा होता है आप पर...
आज से करीब दस साल पहले पत्रकारिता का वो बर्चस्व नहीं था...पत्रकार शब्द सुनते ही पहले हमारे जेहन में जो तस्वीर उभरती थी...वो थी... खादी का कुर्ता...लंबा सा झोला...और चप्पल पहने...आखों पर मोटा सा चश्मा लगाए...एक ऐसा शक्स जो थोड़ी अजीब सी मान्यता रखता हो...समाज को देखने का नज़रिया भी उसका अलग सा हो...पहले के लोग पत्रकारों को भी ज्यादा फुटेज नहीं देते थे...लेकिन अब समय बदल गया है...आज के पत्रकारों ने पत्रकार शब्द की छवि ही बदल दी है...पत्रकारिता में खबरिया चैनलों की भीड़ ने क्रांति ला दी है...लोगों को ख़बरों के प्रति जागृत कर दिया है...ब्रेकिंग न्यूज़...एक्लूसिल खबरें...और अपने इलाके की जानकारी लोगों को उत्सुक बनातीं हैं...पत्रकारिता क्षेत्र में पैसा भी कम नहीं आपके पास जितना ज्यादा अनुभव होता है आप की बोली उतनी ही ज्यादा लगती है...आप दूसरी प्रतिद्वंद्वी चैनल या अख़बार में ज्वाइन करते हैं तो आपको अच्छा जंप मिलेगा...आर्थिक मंदी में मीडिया सेक्टर भी थोड़ा प्रभावित तो हुआ है...लेकिन इसपर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है...हर ६ महीने में एक नया चैनल लॉच होता है... आज अच्छे पत्रकार लाखों रुपए प्रति माह की तनख़्वाह पा रहे हैं...हालांकि देखा जाए तो इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार ज्यादा लक्की हैं...एक समान्य पत्रकार भी २० हजार से ६० हजार और अच्छा और नामी गिरामी पत्रकार १ लाख से १० लाख रुपए तो प्रति माह आसानी से हासिल कर सकता है... और बात जब नए चैनल में जाने की आती है तो वो अपनी प्राप्त तनख़्वाह से दोगुनी से तिगुनी पर अपनी बोली लगाता है...हर पत्रकार अवसर की तलाश में रहता है कि कब उसे एक अच्छा जंप मिले और वो नई जगह अपनी साख़ कायम करे...हालांकि इस मामले में बैनर भी काफी मायने रखता है...आगर आप अच्छे बैनर से जुड़े हैं तो आपके पांव १२...जी हां आपकी बोली लगाने से पहेल सामने वाले को सोचना ही पड़ता है...क्योंकि एक अच्छा बैनर आपको कम तनख़्वाह में तो रखेगा नहीं...अच्छे बैनर छोड़ने का मतलब है आप उसे मोटी रकम पर साइन कर रहे हैं...या नहीं...अगर नहीं तो भला वो क्यों अपना बैनर छोड़ कर आपके चैनल में आए...टीवी के इडियट बॉक्स ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है...लोगों को खबरों के साथ-साथ मनोरंजन...खेल...व्यवसाय...हर तरह की जानकारी उपलब्ध कराता है...टीवी का रिमोट ऑन करते ही ये सारी जानकारी मिल जाए तो भला कौन इससे बच पाए...आजकल तो चौबीसो धंटे live खबरें दिखाई जाती हैं....और आप आ जाते है इस बुद्धू बॉक्स के मायाजाल में...खबरें मोबाइल पर खबरे आपके नैट पर...खबरें आपकी यात्रा में...हर जगह खबरें ही खबरें...आप इससे ख़ुद को अछूता नहीं रख सकते...
मीडिया फिल्ड में जो एक बार आ गया उसे इसके मायाजाल से निकले में भी काफी मुश्किलें आती हैं...हर समय आप चकाचौंध में जीने के आदि हो जाते हैं...प्रतिष्ठित लोगों से मलने का अनुभव उनके जीवन में ताक-झांक करने का अनुभव...मीडिया की नज़र से कोई बच नहीं सकता...इसलिए मीडिया पर्सन से दोस्ती करने से पहले भी लोग एक बार सोचते ज़रूर हैं...मीडिया में काम करने वाले दोस्ती तो निभा सकते हैं लेकिन अगर आपसे उन्हें कोई रोचक और धांसू ख़बर मिल रही है तो वो ख़ुद को इससे अलग नहीं कर सकते...इसमें भले ही आपका अहित क्यों न हो रहा हो...अगर वो इसे कवर नहीं करेगा तो दूसरे चैनल वाले इसका फायदा उठा सकते हैं...मीडिया जिम्मेदारी का काम भी बख़ूबी निभाता है...आपके ग़म में शरीक होता है...आपको मुसीबतों से भी बचाता है...इस क्षेत्र में करने के लिए काफी कुछ है...जिसका अंत कभी नहीं हो सकता...समय समय पर अभिनेता मीडिया की खूबियों की तारीफ करते नजर आए हैं...अमित जी ने अपने ब्लॉग में लिखा भी है कि उनकी भी हार्दिक इच्छा है संपादकीय बैठक में शामिल होने की...कैसे खबरों की तलाश की जाती है...कैसे इसे रोचक बनाया जाता है और कैसे इसे परोसा जाता है...अमित को ये सारी चीजे काफी चौकाती हैं...उनकी इच्छा है मीडिया हाउस में कुछ समय बिताने की...हमे भी इंतजार है कब अमित जी को इसका अवसर मिलता है औऱ वो मीडिया पर्सनैलिटी की दिनचर्या से रू-ब-रू हो पाते हैं

1 टिप्पणी:

  1. टीवी पर कुछ लोगों का चेहरा देखकर राय बनाना ठीक नहीं. आपने मीडिया हाउस की हकीकत पर गौर नहीं है. यहां बद, बदतर और बदतरम लोग भी रहे हैं. इस फील्ड में सिवाय शोषण कुछ नहीं है.

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