शुक्रवार, अगस्त 21

मीडिया का काला चिट्ठा




सिक्के दे दो पहलू होते हैं...वैसे ही हर चीज के दो रूप है...एक अच्छा...तो दूसरा बुरा...मीडिया का भी दो रूप देखने को मिलेगा...एक अच्छा तो दूसरा बेहद ख़राब...मैं आपको मीडिया के दूसरे रूप से अवगत कराना चाहती हूं...जब भी कहीं कोई घटना या कहें दुर्घटना घटती है तो एक मीडिया पर्सन कभी उस दुर्घटना में घायल की मदद करने आगे नहीं आता...बल्कि उसे तो उस दुर्घटना में अपने चैनल को जल्द से जल्द और अधिक से अधिक जानकारी देने से मतलब है...सबसे पहले ख़बर ब्रेक करना LIVE ख़ीचना और घायलों और मृतकों की संख्या जानना उसकी प्राथमिकता होती है...मीडिया हाउस उससे समय-समय पर अपडेट्स लेती है...OUTDOOR VAN के जरिए ताज़ा हालात पर पल पल की नज़र रखी जाती है...लेकिन क्या अगर उस दुर्घटना में एक मीडिया पर्सन के रिश्तेदार शामिल हो तो वो मीडिया पर्सन ख़बरों को ऐसा ही कवरेज दे पाएगा...नहीं कभी नहीं...कितनी अजीब बात है...दूसरों के लिए हमारी संवेदना कितनी मर चुकी होती है...
किसी भी खबर की जिंदगी काफी कम देर की होती है...समय के साथ ही खबरें बासी हो जातीं हैं...वैसे ही जैसे सड़ी हुई मछली...या एक दिन पुराने अख़बार की तरह बासी..ख़बरों का अपडेट होना बेहद ज़रूरी है...एक पत्रकार को हमेशा ख़बरों के मायाजाल में उलझे रहने की आदत हो जाती है...पत्रकारों में ख़बरे जल्दी दिखाने की और दूसरे चैनलों से पहले दिखाने भी अजीब सी होड़ होती है...

एक बार मैं एक मीडिया हाउस में इवनिंग शिफ्ट में थी...अचानक खबर आई कि एक प्रसिद्ध नेता को गोली लग गई है...पूरे हाउस में हलचल मच गई...कुछ लोगों की शिफ्ट ओवर हो चुकी थी...लेकिन वे ख़बर के पुख्ता होने तक रुक गए...उन्हें इस चीज़ से मतलब नहीं था कि नेता की स्थिति कैसी है...बल्कि वो ये जानने के लिए बेताब थे की नेता अभी ज़िंदा है...या फिर उसकी मौत हो चुकी है...और अगर मौत हो गई है तो सबसे पहले हमारे चैनल में ख़बर ब्रेक होनी चाहिए...कुछ लोग उस नेता की प्रोफाइल बनाने में जुट गए तो कुछ उनकी फाइल फुटेज निकालने में...सबकी नज़रे ख़बर के अपडेट पर टिकीं थीं...हम जब किसी की प्रोफाइल बनाते हैं तो बड़े ही मार्मिक तरीके से शब्दों को पिरोते हैं...श्रद्धांजलि के तौर पर खूब सारे हृदय बिदारक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं...लेकिन हमारी नज़रे उसके अपोज़िट टिकी होतीं है...हम उस खबर को फोकस करते हैं औऱ सबसे पहले चलाने की होड़ में लगे रहते हैं...और ये अक्सर होता है...अगर आप मीडिया हाउस में हैं तो ये आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं...ऐसी ही एक घटना में मैंने भी एक हस्ती की प्रोफाइल बनाई...हालांकि उस हस्ती की मौत मेरे प्रोफाइल बनाने के 4 दिन बाद हुई और जिस दिन उनके मौत की खबर आई मेरी उस दिन छुट्टि थी...ऑफिस के लोगों ने मुझे फोन लगाना शुरू किया...कि मैंने उस प्रोफाइल को किस नाम से लिखा और किस नाम से पब्लिश कराया है...कितनी अजीब बात है...हम कितने संवेदनहीन होते जा रहे हैं...
मीडिया को यू ही नारद मुनि नहीं कहा जाता...वाकई मीडिया नारद मुनि का काम बखूबी निभा रहा है...फिल्मी गॉसिप्स को ही देख लीजिए...कितनी ही ख़बरे फिजूल की उड़ाई जाती हैं..और बाद में इसका खंडन किया जाता है...मीडिया को ऐसे गॉसिप्स से बस टीआरपी बटोरनी होती है...कई अंधविश्वास की खबरों के प्रसारण पर तो एक तरफ मीडिया कहता है 'इन ख़बरों को दिखाने का हमारा मक्सद अंधविश्वास फैलाना नहीं'और दूसरी और उन्हीं ख़बरों को प्राथमिकता से चलाता है...विजुअल्स में खूब सारे इफैक्ट का प्रयोग किया जाता है और लोगों की उससे संबंधित बाइटे प्ले की जाती हैं...तो फिर इसे दिखाने का मतलब क्या बनता है...हां जिस पार्टी की सत्ता हो उससे जुड़ी खबरे तो खूब दिखाई जाती हैं...लेकिन उसके घोटालों का खुलासा मीडिया उसके सत्ता छिन जाने के बाद ही क्यों करता है...
सब TRP का खेल है बिडू...समझे क्या..

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी बात कही है आपने...

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  2. कितना सुंदर लिखती हैं आप...बहुत सुंदर लेख..वाह वाह क्या बात है...आज पता चला कि आप कितनी प्रतिभावान हैं...

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  3. बेनामीअगस्त 25, 2009

    You have written a traditionally right fact madhu....bt professionalism is the need of the hour...n the situation you describe in your post needs an honest professional skills along with immidiate action and effort to compete with ur rivals....so if ur organization disbusre such an important information regarding the accident of a public representative...in hini हमारे नेता को गोली लगने की ख़बर...then what's wrong in it?????????...Sitanshu

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