गुरुवार, जुलाई 30

एक कवि सम्मेलन ऐसा भी...


एक बार मैं एक सम्मेलन में रिपोर्टिंग करने पहुंची...दरअसल विश्व प्रसिद्ध कवि जानकीबल्लभ शास्त्री के घर कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था...उस वक्त मैंने नई-नई रिपोर्टिंग शुरू की थी...मुजफ्फरपुर शहर को भी मैं अच्छी तरह नहीं जान पाई थी...पत्रकारिता से जुड़ने से पहले घर से ज्यादा निकलना नहीं हो पाता था...मुझे कविता लिखने काभी शौक था...और मेरे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी मेरी कविता से वाकिफ़ थे...उस कवि सम्मेलन में मेरे विभाग के भी प्रोफेसर शामिल होने आए थे...
मैं समय से थोड़ा पहले जानकीबल्लभ शास्त्री जी के घर पहुंच गई...शास्त्री जी को जानवरों से बड़ा प्रेम रहा है...मैंने देखा उनकी बिस्तर के आसपास कई कुत्ते मौजूद थे...कोई उनकी गोद में बैठा शास्त्री जी से दुलार पा रहा था तो कोई...पलंग पर बैठे-बैठे दुम हिला रहा था...कोई बिस्तर के नीचे ...तो कोई पूरे कमरे की पहरेदारी कर रहा था...शास्त्रीजी ने मुझे कमरे में जाने के संकेत दिए...मैं अंदर गई...वहां उनकी श्रीमति जी ने मेरा अभिवादन किया...मेरा परिचय पूछा...मैंने शास्त्रीजी के स्वान प्रेम के बारे में पूछा...श्रीमति ने जवाब दिया कि अब तो बहुत कम पशु आप देख रही हैं...पहले तो और भी कई जानवर हम पालते थे...फिर मैंने कवि सम्मेलन के बारे में जानना चाहा...उन्होंने बताया पृथ्वीराज चौहान के समय में यहां दरवार लगता था और विशाल कवि सम्मेलन का आयोजन होता था...दुनियाभर से कवि यहां आते थे...मैं काफी प्रभावित हुई...

धीरे-धीरे कवियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया...महफिल जमने लगी...कवियों ने एक से बढ़कर एक कवितापाठ किया...मैंने खबर बनाई...मुझे देर हो रही थी...उस दिन मेरा ऑफिस भी बंद था...इसलिए ये ख़बर मुझे दूसरे दिन प्रकाशन के लिए देनी थी...मैं घर जाने की तैयारी करने लगी...मेरे एक प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कैसे घर जाएंगी आप...आप चाहें तो मैं छोड़ दूं...मैंने कहा मैं अपने वाहन से आई हूं और मैं चली जाऊंगी...उन्होंने कहा बेटा जल्दी घर लौट जाओ देर हो रही है... उस वक्त रात के 8 बज रहे थे...मैं निकल पड़ी घर की ओर...असल में शास्त्री जी का घर जहां था उससे सटा हुआ इलाका काफी बदनाम इलाका माना जाता रहा है...मैं उस वक्त समझ नहीं पाई सर मुझसे क्या कहना चाह रहे थे....मैं जब आगे बढ़ी तो एक बाईक वाले ने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया...वो मेरे साथ साथ वाहन चलाने की कोशिश कर रहा था...और फोन पर मुझे सुनाते हुए कुछ अपशब्दों का प्रयोग कर रहा था... मैं थोड़ी सहम गई...मैंने अपने वाहन की गति धीमि कर दी...मैंने देखा उस शख्स ने भी अपने वाहन की गति कम कर दी है...मैंने अपने वाहन की स्पीड तेज़ कर दी...फिर उसने भी अपने वाहन को तेज़ी से चलाना शुरू किया और मेरे साथ साथ चलने की कोशिश करने लगा...मैं कुछ देर के लिए रुक गई...मैंने देखा वो भी कुछ आगे जाकर रुक गया हैं...मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकती थी...क्योंकि हल्की बारिश हो रही थी...बारिश बढ़ ना जाए ये सोचकर ...मैंने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी...मैं हिम्मत कर निकल पड़ी फिर मैंने देखा वो मेरा पीछा अब भी कर रहा हैं...मैंने अपनी गाड़ी की गति खूब धीमि कर दी और उसे आगे जाने दिया...ये सिलसिला काफी देर चलता रहा कभी वो आगे बढ़ जाता तो कभी मैं आगे निकल जाती...धीरे धीरेमैंने उसके गाड़ी का नंबर याद कर लिया...फिर जब वो मेरे साथ गाड़ी चलानेकी कोशिश करने लगा तो मैंने चिल्लाते हुए कहा बेटा मैनें तेरी गाड़ी का नंबर नोट कर लिया है और मैं अभी फोन लगाती हूं डीआईजी को...मैने उसकी गाड़ी का नंबर भी उसे सुना दिया...दरअसल उस वक्त डीआईजी गुप्तेश्वर पांडे वहां कार्यरत थे औऱ उनसे हमारा घरेलू संबंध था...उनकी लड़कियां हमरे स्कूल से पासआऊट हुई थी...पापा से भी उनका अच्छा परीचय था...अब तो वो गाड़ी वाला एक पल के लिए भी नहीं रुका...उसने अपने गाडी़ की गति इतनी तेज़ की कि पल भर में मेरी आंखों से औझल हो गया...मैं घर पहुंची और मैंने हांफते हांफते अपने मम्मी-पापा की इस घटना के बारे में सारी बातें बताई...

1 टिप्पणी:

  1. जिसका अपना विवेक साथ देता है,मुश्किल समय में भी कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता..।

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