बुधवार, अगस्त 19

ये कैसी झील...

मुज़फ़्फरपुर में एक जगह है...मोतीझील...नाम तो बड़ा ही प्यारा है...लेकिन इस नाम को सुनकर आप ये मत सोचिएगा कि वहां पुराने जमाने की कोई झील होगी...जिसमें मोतियां मिलती होंगी...जनाब ये गलती हमने भी कभी की थी...इस नाम को सुनकर राजा महाराजाओं की कहानी याद आती है...हमने भी कल्पना की थी...खूबसूरत से महल और उसके बीच में एक प्यारे से झील की...मगर नहीं दरअसल झील तो ये हैं लेकिन यहां से मोतियां नदारद है...आम दिनों में तो यहां बड़ी रौनक रहती है...लेकिन अगर आपको इसकी असलियत जाननी है तो बरसात के दिनों आप यहां का चक्कर लगा आईए...आप इसके नामकरण की हकीक़त से वाकिफ़ हो जाएंगे...दरअसल मुज़फ़्फरपुर के सबसे बड़े बाज़ार का नाम है मोतीझील...अब आप सोच रहे होंगे इसका नाम मोतीझील क्यों पड़ा...चलिए हम आपकी समस्या का हल किए देते हैं...बरसात के दिनों में ये पूरा इलाका तब्दील हो जाता है झील में...यानी यहां की गलियां और सड़कों पर घुटनों तक पानी भर जाता है...और वहां बने नाले की गंदगी सड़कों पर आकर बहने लगती हैं...यहां से पानी निकासी का कोई रास्ता नहीं...लोगों को इस झील से गुज़रकर खरीदारी करनी पड़ती है...
मेरा ऑफिस वहीं मोतीझील के पास हुआ करता था...उन दिनों मैं हिंदुस्तान में रिपोर्टिंग करती थी...बरसात में मैंने इन झीलों से गुज़रने का अनुभव कई बार झेला है...ये बाज़ार काफी पुराना है और इसके झील में तब्दील होने की कहानी भी नई नहीं है...लेकिन न तो प्रशासन की नज़र इस ओर गई हैं औऱ न ही यहां की जनता अपनी तक्लीफों से प्रशासन को अब तक अवगत करा पाई हैं...हर साल बरसात में आलम कुछ ऐसा ही होता है...अब तक तो यहां तीन साल से बन रहे ओवरब्रीज ने कई लोगों की जानें भी ले ली है...

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