सोमवार, मई 9

सोशल मीडिया का ट्रेंड



Facebook, WhatsApp,Twitter
पर सब अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
अपनी अपनी ब्रैंडिंग में सब जान लगाए बैठे हैं
बड़ी ख़तरनाक बीमारी है ये.. यारों
और सब दिलोजान लगाए बैठे हैं।।।
जो न जाने चलाना इसको तो
उसे अनपढ़ कह दे ये ज़माना।।
समय की होती यहां जाने कितनी ही बर्बादी।।
पर आज भी हमको इसकी ख़बर कहां कोई।।।

हर रोज लगती है यहां
like, comment और followers की बोली
पल पल चेक होता स्टेटस यू
लगे खजाना गड़ा हो कोई।।
दुनिया की भेड़ चाल में हम भी कहां कम हैं
अपने लिये भी तो हम  मौत का सामान सजाए बैठे हैं।।।


मगर सच कहूं तो है बड़ा रोचक तमाशा ये
बचपन में जो खोया था हमें फिर से मिलाया ये
गूगल के ज़माने में भी तितर-बितर थे सारे
एक-एक को खोजकर हमें फिर से संजोया ये।।

जब भी होता दिल उदास
ये अच्छा दिल को बहलाए
किसी से चाहूं करनी बात
झट से घंटी बजा दे।

अब सुख-दुख का ये साथी (सोशल मीडिया)
देखें कब तक दिल को बहलाए
सूरज का तो काम है डूब जाना
रौशनी कब तक वो फैलाए।।



रविवार, मई 8

दिल की सुनी जाए या सिर्फ दिमाग की!




आज  दिल और दिमाग की
एक बार फिर जमकर लड़ाई हुई
अजीब  सा तूफ़ान उठा था दिल में
सोचा सब कह दूं ज़माने से
जो भी दिल में दबा रक्खा है
बस अब वो निकल जाए।
मिल जाए थोड़ा यू दिल को मेरे सुकूं।

लेकिन दिमाग ने  दिल को रोका
कहा तू पागल हो गया है क्या
ज़माने की ज़रा सी भी
समझ है बता तुझमें
पोछ अपने ये आंसू
क्योंकि इसकी कदर कहां किसे?
रोया अगर खुल के
तो ज़माना कायर समझेगा
दुख को सुनाया तो वो तुझको
पागल समझेगा
गम को पीना सीख ले बच्चे
और लड़ हर पल ज़माने से
क्योंकि यही दवा है तेरी और दुआ भी।।

फिर दिल ने कहा इमोशन का क्या
उसे मैं कैसे समझाऊं
नासमझ है अब भी वो
उसे मैं कैसे बहलाऊं
दिमाग को आ गया गुस्सा
वो बोला
रोए जब भी तू
दर्द मुझको भी होता है
बहाया अश्क जब तूने
तो संग तेरे मैं भी रोया
नहीं देख सकता मैं हर पल
तुझे मायूस बैठा यूं
इसलिये कहता हूं
इमोशन झोक चुल्हे में
और मेरे संग-संग चल ले।।

दिल अब भी बेझिल है
मिला हर बार उसको ग़म
शायद अब नहीं होगा
इमोशन को भी संग ले लूं?
मोहब्बत कम नहीं होगा?

मैं चुपचाप सुनती हूं
इन दोनों की दंगाई
पर अब भी सोच में हूं डूबी
सच में कौन सही
दिल की सुनी जाए ये सिर्फ दिमाग की???



शनिवार, मई 7

ऐ ज़िन्दगी


कुछ ग़लतियां मेरी
कुछ नादानियां मेरी
कुछ बदमाशियां मेरी
कुछ ख़ामोशियां मेरी

कुछ मजबूरियां मेरी
कुछ सच्चाईयां मेरी
कुछ उलझने मेरी
कुछ अनकही बातें
कुछ उल्फ़तें मेरी

मैं हूं इन सब की अपराधी
मुझको याद है सारी
कसम से ग़फ़लतें मेरी
जो काग़ज़ पर लिखा होता
तो सब कुछ  मिट गया होता
पर किस्मत में जो लिखा है
भला मैं कैसे झुठला दूं।।



 मगर ग़ौर से सुन ऐ ज़िन्दगी
ख़ता का लेखा-जोखा है
तू तो सज़ा गिनाती जा।।
जो भी है तेरे स्टॉक में
सारी इसी जनम में मुझे सुना।।


गुरुवार, मई 5

ये मेरी बेवफ़ाई!!









आज चलो एक गीत सुनाऊ
ख़ुद भी रोऊ... तुम्हें रूलाऊ
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें
चलो मिलकर मैं उन्हें बताऊ।।

खोला मैंने जब पिछला पन्ना
मिला मुझे कुछ औना-पौना
झांका मैंने दिल का कोना
जाना मैंने कुछ अनहोना।।

शिकायत थी अगर मुझसे
तो मुझको बोल देते तुम
छुपकर बहाया अश्क
वो राज़...खोल देते तुम
मिलकर बांट लेते ग़म
कभी तो...बयां होता
ज़माने को सुनाया जो
कभी मुझसे कहा होता।।

काश तजुर्बे ग़लत न होते
मैं भी ग़लती ना करती
कोई मुझसे बेझिझक कह पाता
मेरी ग़लती से पहले
नासमझी थी मेरी माना
एक बार तो रोक लिया होता।।

लेकिन दोनों ने ख़ुद को टोका
कुछ तेरी ख़ता कुछ मेरी ख़ता
कुछ उलझन थी तेरे मन में
कुछ उलझन थी मेरे मन में
इस उलझन ने दोनों को देखो
एक दूजे का होने न दिया।।


तुम भी रोए मैं भी नम थी
न तुम्हें पता न मुझे पता
तुमने सोचा मैं थी बेवफ़ा
मैंने सोचा तुम थे ख़फा
चाहत थी शायद जुदा जुदा।

जब तक मैंने सच को जाना
देर हुई है.. ये भी माना
लौटा नहीं सकती मैं सब कुछ
जिसपर हक़ था सिर्फ तुम्हारा
पर यकी करो अनजाने में हुई ये ख़ता
जान बूझ कर नहीं दी
जिन्दगी भर की ऐसी सज़ा।।

सज़ा तो मैंने पाई है
अब भी दिल में मेरे
एक अजीब सी तन्हाई है।।


"न तुमने साज़ छेड़ा वो
न मैं सुन सकी वो तन्हाई।
मगर मोहब्बत में मेरे मौला
मैं फिर भी बेवफ़ा कहलाई।।"






बुधवार, मई 4

पतझड़ का राग



यू कहने को तो
चहुँ ओर हरियाली है
पर फिर भी जाने क्यों
दिल का एक कोना
अब भी खाली-खाली है

झूठी है मुस्कान यहां
ख़ुद को मैंने उल्झा ली है
चहुँ ओर तो है शीतल बयार
पर दिल में तूफान छुपा ली है


बाहर धूप खिली है
लेकिन मन उल्झा है अंधेरों में
कहने को है हरियाली
लेकिन दिल का कोना अब भी खाली है


सुना है ...
पतझड़ का सूना राग कभी
कैसे उसने पल-पल गुजारी है।
अब नई कोपलें आई हैं
रंग उमंग नया वो लाई हैं
पर बिछड़न का दंश...
हाय...भला
वही जाने जो इसमें रीता है
गम के आंसू जो पीता
मौन खड़ा वह जीता है
लेकिन उन सूखे पत्तों का क्या
जिसने मिलन की आस न सही
बिछड़कर अस्तित्व मिटा ली है।।