शुक्रवार, अप्रैल 23

हिम्मत से काम लेंगे...घबराना कैसा...!



असंभव यानी impossible .....एक ऐसा शब्द जो खुद में संभावना को दर्शाता है...कहने का मतलब impossible शब्द का संधि विच्छेद किया जाए तो ये बन जाता हैं I....AM...POSSIBLE.....यानी मैं संभव हूं
असंभव कुछ भी नहीं...
तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि....ये काम संभव नहीं...दुनिया में हर चीज संभव है...बस मन में दृढ़ इच्छा शक्ति.. कुछ कर गुजरने की चाह होनी चाहिए....फिर आपके कदमों को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता...असंभव शब्द तभी संभव में परिवर्तित होता है जब इसमें निरंतरता आती है...यानी लगातार प्रयास से ही हम किसी चीज को संभव बना सकते हैं...
कई बार जब हम असफल होते हैं तो लगता है हमारी किस्मत हमारा साथ नहीं दे रही...हम खुद को कोसते हैं...खुद से जुड़ी हर चीज को हीन समझते हैं.....लेकिन असफलता कब तक किस्मत पर हावी होगी.... खुशी कब तक हमसे दूर भागेगी...एक न एक दिन तो उसे हमारे पास लौटना ही होगा...बस जरूरत है प्रयास जारी रखने की...कभी नकभी असफलता जरूर कमजोर साबित होगी और सफलता हमारे कदम चूमेंगी....लेकिन ये सारी चीजें जब अपने ऊपर गुजरती है तो लगता है


दिल को बहलाने के लिए
ग़ालिबे ख़्याल अच्छा है...

हालांकि हमें खुद पर भरोसा करना सीखना होगा....मनुष्य कुछ ठान ले तो उसे पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन हां ये तभी संभव है जब इरादे बुलंद हों....किसी के सामने आंसू न बहाए...आंसू इंसान को कमजोर बनाता है...और बुलंद हौसले न जाने कहां से आगे बढ़ने की शक्ति जुटाता है...








जब मैं स्कूल में थी मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था...वैसे पढ़ने में तो वो सामान्य था...लेकिन अपनी activity की वजह से पूरे स्कूल में चर्चित था...जहां जाता लोगों को खूब हंसाता....सभी शिक्षकों का चहेता था.... एक बार अंग्रेजी के शिक्षक ने पूरे क्लास के सामने उसका मजाक उड़ा था..उसकी इंग्लिस अच्छी नहीं थी....और उस वक्त हम शायद 9 या 10 th में थे....उस टीचर ने कहा ‘’कच्चे घड़े को जिस आकार में चाहो ढाल सकते है…लेकिन पक्के घड़े पर कोई रंग नहीं चढ़ता’’ कहने का मतलब था कि अब तुम इंग्लिश कभी नहीं सीख सकते..हालांकि उस वक्त ये बात आई और गई हो गई.....


कुछ भी कहिए...ये orkut है बड़े काम की चीज़...हमें अपने बिछड़े दोस्तों से बड़ी ही आसानी से मिला देती है...और orkut के जरिए ही...मैं उससे जुड़ी...सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ...कि वो Royal bank of Scotland में अच्छे पद पर कार्यरत है....किसी टीचर ने उम्मीद भी नहीं की होगी कि इतना सामान्य सा लड़का एक दिन इतना आगे निकल जाएगा....मेरे पिता भी मेरे स्कूल में शिक्षक रहे हैं...और वो भी उस लड़के से अच्छी तरह वाकिफ़ थे...जब मैं घर गई और उस लड़के के बारे में बताया...उन्हें काफी आश्चर्य हुआ...किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था....ये लड़का एक दिन इतनी तरक्की कर जाएगा.......पिछले साल उससे मिलने का मौका मिला तब उसने मुझे अपनी परिस्थितियों से अवगत कराया...उसकी मां का देहांत बचपन में ही हो चुका था...पिता भी उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे....बेचारा किसी तरह किराए के मकान में रहता था...स्कूल की फीस बड़ी मुश्किल से दे पाता था...उसका कहना था....’’तुम लोग जब अपने घरों में आराम से रहते थे…मैं उस वक्त एक छोटे से कमरे में गुजारा करता था...तुम घर का खाना बड़े चाव से खाते थे...लेकिन मैं दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसता था..’’ .उसके पास एक खटारा साइकिल थी...जब वो उससे स्कूल आता तो स्कूल के बच्चे उससे दूधवाला बुलाते थे....क्योंकि उसकी साइकिल से काफी आवाज आती थी...आज भी लोग उसे उसके नाम से कम....दूधवाले के नाम से ज्यादा पहचानते हैं....आज वो हमारी क्लास के टॉपर स्टूडेंट्स से काफी आगे निकल चुका है....मैं उससे इसलिए प्रभावित हुई क्योंकि उसने विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को साबित किया है...और आज एक अच्छा मुकाम हासिल कर पाया है....हमेशा टॉप करने वाला परिक्षार्थी ही मंजिल तक नहीं पहुंचता...सामान्य बच्चे भी बुलंदियों को हासिल कर सकते हैं.....शिक्षकों को बच्चों का मनोबल बढ़ाना चाहिए न कि उसका मनोबल तोड़ना चाहिए....आज उस लड़के कि इंग्लिश इतनी टंच हो गई है... कि वो शिक्षक अगर उससे मिले तो उनका मुंह खुला का खुला रह जाएगा...






हर क्षेत्र में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे...जिन्हें बड़ी मशक्कत से कामयाबी मिली होगी...कामयाबी का कोई सॉट-कट नहीं..इसके लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है....कोई भी आसानी से मंजिल तक नहीं पहुंच जाता...उसके पीछे उसके खट्टे-मीठे अनुभव जुड़े होते हैं...कहते हैं ना ‘’हीरे में भी चमक तभी आती है जब उसे तराशा जाता है...औऱ सोने को जितना गलाया जाता है उसकी चमक उतनी ही बढ़ती है....’’ इसलिए बस आप अपना काम ईमानदारी से करें..आगे खुद-ब-खुद होता चला जाएगा....हम्मत नही हारना ही जीत की पहली निशानी है....सूरज की रौशनी की कब तक कोई ढक कर रख सकता है...उसकी चमक नहीं छिप सकती....अगर आपमें प्रतिभा है तो उसे कोई बाधा रोक नहीं सकती....



कामयाब इंसान...अपने संघर्षों को भले ही भूल जाएं...किसी के एहसानों को भी भूल जाएं....लेकिन अपने साथ हुए अपमान को कभी नहीं भूलता...इसलिए किसी को कमजोर समझकर उसका मजाक उड़ाना उचित नहीं....अगर आज आप कामयाब हैं तो कल वो इंसान भी कामयाब बन सकता है जिसे आप तुच्छ समझ रहे हैं....




ख़ुद ही को कर बुलंद इतना की हर तक़दीर से पहले


ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे...बता तेरी रज़ा क्या है?

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा सोच जो निडरता को बढाकर, उस हौसले को जन्म देता है ,जो इस देश और समाज को सार्थक बदलाव की और ले जा सकता है / आप मुजफरपुर में हमारे आन्दोलन का नेतृत्व करेंगी क्या ? अगर हाँ तो हमें फोन करें या इ मेल पर संपर्क करें /अच्छी वैचारिक ,उम्दा ,विश्लेष्णात्मक मानवीय महत्व को दर्शाती हुई आपके इस अच्छी संदेशात्मक और प्रेरक रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद / आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

    जवाब देंहटाएं
  2. बिल्कुल सही कहा// उम्दा आलेख.

    जवाब देंहटाएं
  3. गुमशुदा कविता की तलाश
    खो गई है
    मेरी कविता
    पिछले दो दशको से.
    वह देखने में, जनपक्षीय है
    कंटीला चेहरा है उसका
    जो चुभता है,
    शोषको को.
    गठीला बदन,
    हैसियत रखता है
    प्रतिरोध की.
    उसका रंग लाल है
    वह गई थी मांगने हक़,
    गरीबों का.
    फिर वापस नहीं लौटी,
    आज तक.
    मुझे शक है प्रकाशकों के ऊपर,
    शायद,
    हत्या करवाया गया है
    सुपारी देकर.
    या फिर पूंजीपतियो द्वारा
    सामूहिक वलात्कार कर,
    झोक दी गई है
    लोहा गलाने की
    भट्ठी में.
    कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा उसे
    शहर में....
    गावों में...
    खेतों में..
    और वादिओं में.....
    ऐसा लगता है मुझे
    मिटा दिया गया है,
    उसका बजूद
    समाज के ठीकेदारों द्वारा
    अपने हित में.
    फिर भी विश्वास है
    लौटेगी एक दिन
    मेरी खोई हुई
    कविता.
    क्योंकि नहीं मिला है
    हक़.....
    गरीबों का.
    हाँ देखना तुम
    वह लौटेगी वापस एक दिन,
    लाल झंडे के निचे
    संगठित मजदूरों के बिच,
    दिलाने के लिए
    उनका हक़.

    जवाब देंहटाएं