मंगलवार, मई 4

एक पत्रकार की हत्या



निरूपमा पाठक....एक ऐसा नाम जो अब तक था..गुमनाम …लेकिन अचानक 29 अप्रैल को हुई उसकी हत्या ने उसे सुर्खियों में ला दिया...आरोपों के घेरे में कोई औऱ नहीं बल्कि उसे जन्म देने वाली मां ही निकली...निरूपमा के दोस्तों ने भले ही न्याय का दरवाजा खटखटाया हो...और राष्ट्रीय महिला आयोग से गुहार लगाई हो....लेकिन कभी किसी ने ये सोचने की कोशिश की कि उसकी मां ने ये जघन्य अपराध क्यों किया...नहीं....
क्योंकि हम आरोपी को सबसे बड़ा गुनहगार समझते हैं..हालांकि अभी ये मामला अदालत में है..और इस वक्त किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी...लेकिन एक मां खुद अपनी कोख की कातिल कैसे हो सकती है...आखिर मां किलर कैसे बन गई...ये बड़ा सवाल है



दरअसल 23 साल की निरूपमा दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार में पत्रकार थी और उसका अपने ही साथ काम करने वाले मित्र प्रियभांशु के साथ अफेयर था...ये बात निरूपमा के माता- पिता भी जानते थे...माता-पिता ने अपनी बेटी के लिए कितने सपने संजोए होंगे... इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान {IIMC} भारतीय जनसंचार संस्थान में बेटी का दाखिला कराया...जिसमें दाखिला के लिए पत्रकारिता के छात्र तरसते हैं...उसके पिता बैंक के अधिकारी हैं....फिर क्यों कर दी गई पत्रकार निरूपमा की हत्या?

माता पिता ने अपनी बेटी की शिक्षा में कोई कमी नहीं रखी...वो बेटी को हर वो मुकाम दिलाना चाहते थे जो एक लड़की का ख्वाब हो...तभी तो दिल्ली जैसे शहर में उसे अकेले रहने की इजाजत दी गई....झारखंड के कोडरमा की रहनेवाली निरूपमा के माता-पिता संकुचित मानसिकता के नहीं हो सकते क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी को हर वो छूट दी जो एक बेटे की दी जाती है...लेकिन शादी ब्याह के मामले में हमारा समाज आज भी अपनी सीमाओं में बंधा है....उन्हें अपने समाज, अपनी जाति का मोह आज भी घेरे हुए है...तभी तो निरूपमा के माता-पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी दूसरी जाति के लड़के से विवाह रचाए...निरूपमा को झांसा देकर घर बुलाया गया....कहा गया कि उसकी मां बीमार है..निरूपमा आनन-फानन में घर पहुंची...उसने अपने दोस्त प्रियभांशु को मैसेज किया कि वो ऐसा वैसा कोई कदम न उठाए जिससे उसे कोई परेशानी हो... वह 19 अप्रैल को कोडरमा आई थी और उसे 28 अप्रैल को दिल्ली लौटना था। लेकिन 29 अप्रैल को उसके ही घर से बरामद हुई उसकी लाश


निरुपमा के प्रेम संबंध से उसके अभिभावक नाराज थे। निरूपमा की मौत सुबह हुई और शाम को पुलिस को सूचना दी गई...कि करंट लगने से उसकी मौत हो गई...उसके बाद उसकी मां ने बहुत तेजी से अपने बयान बदले। पहले उन्होंने कहा कि निरुपमा की मौत बिजली लगने से हुई है। बाद में उनके परिवारवाले एक स्युसाइड नोट लेकर सामने आए और कहा कि उसने छत के पंखे से लटककर जान दे दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार निरुपमा की हत्या दम घुटने से हुई थी, जो कि तकीए से की गई है। साथ ही वह 10-12 हफ्ते की गर्भवती भी थी।"

मामला यहां जाकर खटकता है...क्योंकि निरूपमा के माता-पिता उसके प्रेम संबंधों को तो पचा सकते थे लेकिन इस दाग को कैसे पचाते....इसलिए निरूपमा को कर दिया गया मौत के हवाले....जो माता-पिता अपनी बच्ची को बुलंदियों पर देखना चाहते थे उन्होंने अपने ही हाथ खून से रंग लिए....
हालांकि उन्होंने समाज में अपनी प्रतिष्ठा बचाने की खातिर ये कदम उठाया लेकिन उनका ये फैसला दुनिया के सामने हो गया जग-जाहिर औऱ वो पहुंच गए सलाखों के पीछे....

दरअसल ये मामला प्रेम का नहीं बल्कि समाज में अपनी इज्जत का है....इज्जत के नाम पर निरुपमा की हत्या कर दी गई....निरुपमा पत्रकार थी इसलिए उनके मित्रों ने मामले को ख़त्म नहीं होने दिया....वरना न जाने हर दिन बिहार, बंगाल, झारखंड, राजस्थान और पूरे देश में कितनी निरुपमाओं को जाति-बिरादरी के नाम पर बलि चढा दी जाती है. हां ये ज़रुर है कि इसकी जानकारी कम मिल पाती है क्योंकि तथाकथित सभ्य समाज इस पर पर्दा डाल देता है..लेकिन निरूपमा ने किया था एक अपराध जिसे समाज कभी नहीं पचा सकता....
आज निरुपमा की मां अपनी बेटी की हत्या के सिलसिले में गिरफ़्तार है..... पोस्टमार्टम रिपोर्ट साफ़ कहती है निरुपमा का गला घोंटा गया है. कहीं न कहीं कोई अपना ही ज़िम्मेदार है लेकिन लगता नहीं कि उन्हें इसका ज़रा भी अफ़सोस हैं क्योंकि उनके चेहरों पर जाति का दंभ साफ़ दिखता है.....अपनी प्रतिष्ठा की खातिर अपनी बेटी को हमेशा खत्म करना उन्होंने बेहतर समझा...
निरुपमा ने और उसके अजन्मे बच्चे ने विजातीय प्रेम की बड़ी क़ीमत चुकाई है.... निरुपमा ने तो जीवन के 23 साल ही देखे....प्रेम भी किया लेकिन उस बच्चे का क्या कसूर था जो उसके गर्भ में था.... अगर निरुपमा के गर्भ में बेटी थी तो अच्छा हुआ वो दुनिया में आने से पहले ही चली गई क्योंकि ऐसे समाज में लड़की होकर पैदा होना ही शायद सबसे बड़ा गुनाह है. ....
मेरी संवेदना निरूपमा के माता पिता के साथ कतई नहीं....और मेरी संवेदना निरूपमा के साथ भी नहीं... कि उसने उच्च संस्थान से शिक्षा पाई थी.... मेरी संवेदना इसलिए भी नहीं कि वो एक पत्रकार थी....मेरी संवेदना निरूपमा के साथ इसलिए है क्योंकि उसे सुधरने का एक मौका दिया जा सकता था....क्योंकि किसी से प्यार करना गलत नहीं....हां ये जरूर गलत है कि उसने शारिरिक संबंध बनाए...लेकिन निरुपमा की हत्या हुई है तो उसके हत्यारों को सज़ा मिलनी ही चाहिए चाहे ये हत्यारे उसके अपने ही क्यों न हों.....

4 टिप्‍पणियां:

  1. किसी की जिन्दगी छीनने का हक किसी को भी नहीं है। उसके हत्यक़्रों को जरूर सजा मिलनी चाहिये। भगवान उसकी आत्मा को शान्ती दे। धन्यवाद्

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  2. अच्छी काफी सोच विचार कर लिखी प्रस्तुती /वास्तव में हमें इस समाज और देश में ऐसे हालात के लिए जिम्मेवार तत्वों को एकजुट होकर ख़त्म करना होगा /

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  3. कस्बाई इलाकों में सामाजिक संरचना की हकीकत से रू-ब-रू कराने वाली इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं...धर्म और मर्यादा की दुहाई देने वाले कृष्ण की रास लीला को गलत नहीं करार देते हैं...लेकिन बात जब खुद की हो...तो प्रेम की पाकीजगी...इबादत...त्याग...बलिदान की वो परिभाषा बदल दी जाती है...जो सैकड़ों गोपियों संग रास रचाने को जायज ठहराने के लिए दी जाती है....ये दोहरापन.....सारे फसाद की जड़ है....जायज या नाजायज की परिभाषा गढ़ने वाला इंसान खुद ही तो है...निरूपमा की हत्या कर दी गई....लेकिन ऐसी और भी कई निरुपमा हैं...जो कुछ ऐसे ही दोराहे पर खडी हैं...जिंदगी निरूपमा की...किस तरह जीना है...फैसला किसी और का...एक इंसान और कैदी के बीच फर्क कहां बचता है...ये तो किसी को कैद में रखने से भी कड़ी सजा है...दिल और दिमाग को कैद करने की ये कोशिश किसी संगीन जुर्म से कमतर नहीं.....एक नई तस्वीर की चाह रखने वालों को आगे आना होगा...हर गलत सही की परिभाषा अपने लिहाज से रचने वालों का विरोध जरूरी है.....

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