रविवार, अक्तूबर 25

देश की धड़कन...

सोनिया गांधी...एक ऐसा नाम जिस पर आज पूरा देश भरोसा करता है...चुनावी अभियान हो या किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा...देश के आला नेता भी सोनिया से सलाह लेना नहीं भूलते...कांग्रेस की जान सोनिया गांधी में बसती है तभी तो तीन राज्यों में चुनाव परिणाम में देश की जनता ने कांग्रेस पर अपनी मुहर लगाई महाराष्ट्र, हरियाणा और अरूणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सत्ता पर कब्जा जमाया...महाराष्ट्र और अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला है, वहीं हरियाणा में उसे सरकार बनाने के लिए सात निर्दलीय विधायकों की मदद की दरकार रही... हालांकि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कठघरे में खड़ा किया गया। लेकिन पार्टी ने अंतत: उन्हीं पर भरोसा किया। चुनाव में कांग्रेस की 'हार' के बावजूद कुर्सी की लड़ाई हुड्डा इसलिए भी जीत गए, क्योंकि कोई और दिग्गज पर्याप्त ताकत के साथ विधानसभा पहुंचा ही नहीं। कुछ पहुंचे भी तो उनके गढ़ में कांग्रेस साफ हो गई। इसलिए किसी प्रकार की जोखिम लेने से बचते हुए कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने हुड्डा को दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया। वहीं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी और सबसे ब़डी हार के बाद बाल ठाकरे जैसे अपना आपा खो बैठे। 44 साल तक मराठी मानुष की राजनीति करने वाले ठाकरे ने मराठी मानुष को गद्दार और धोखेबाज करार दिया... अरूणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस दो तिहाई बहुमत के साथ विजयी रही।आज हर राज्य में कांग्रेस का दबदबा देखने को मिल रहा है...लोगों का भरोसा कांग्रेस की और बढ़ता जा रहा है...राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद तबज्जों देते हैं...उनसे सभी मुद्दों पर सलाह लेते हैं...देखा जाए तो सीधे तौर पर न सही लेकिन देश की सही बागडोर कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के हाथों ही है...
इटली में जन्मी सोनिया से जब राजीव गांधी ने शादी की थी तब किसे पता था कि एक दिन सोनिया देश की जनता के दिलों पर राज करेगी...एक विदेशी बहू ने देश की संस्कृति और सभ्यता को बेहद अनोखे अंदाज में अपनाया है...पाश्चात्य परिधान छोड़ भारतीय परिधान को पूरी तरह तवज्जो दी है...देश की जनता के दिलों में राज करने के लिए हिन्दी को अपनाया... सोनिया दिखावे की भावना से परे हैं...हालांकि पति राजीव गांधी की हत्या के बाद कोंग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी लेकिन सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि “मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी।“ काफ़ी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। लेकिन पी वी नरसिंहाराव के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण 1996 का आम चुनाव हार गई और उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता चला गया...जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया । उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कोंग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे। एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए ... सुषमा स्वाराज और उमा भारती जैसी नेताओं ने घोषणा कर दी कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुँडवा लेंगीं और जमीन पर ही सोयेंगीं। राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा की सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एकबार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गई.

आज सोनिया के हाथों सफल नेतृत्व का जिम्मा है...ऐसा लगता है मानो देश की जनता ने बहू सोनिया को अब पूरी तरह से कुबूल लिया हो...सोनिया चाहती तो पति राजीव की मौत के बाद वो अपने दोनों बच्चों के साथ अपने देश वापस लौट सकती थीं...लेकिन सोनिया ने हिम्मत से काम लिया...भारत को ही अपना देश माना और यहां रहकर राहुल और प्रियंका का परवरिश की...परिवार के कई सदस्यों को राजनीति में खोने के बाद भी सोनिया ने हिम्मत नहीं हारी...हालांकि सोनिया को नेताओं ने भी खूब डराया...सोनिया से डराया गया की अगर उनकी आनेवाली पीढ़ी सत्ता में आई तो उनका भी वही हश्र होगा जो राजीव और इंदिरा गांधी का हुआ था...सोनिया ने अपरोक्ष रूप में सत्ता संभाली है...सोनिया ने देश की जनता के दिलों पर राज करना सीख लिया है...

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