बे-रंग नहीं ये ज़िंदगी...
मैंने रंग बदलना सीख लिया है
कंटीले रास्तों पर चलते-चलते
गिरकर संभलना सीख लिया है
ज़ख़्म नासूर न बन जाए हमेशा के लिए
तभी तो मरहम को मलना सीख लिया है
ग़म से भरी हैं पलकें तो क्या
नमी ने पिघलना सीख लिया है
तुम मुझे ठुकराओ इससे पहले
मैंने नीयत को पढ़ना सीख लिया है
टूटती नहीं अब कांच के टुकड़ों की तरह
क्योंकि मैंने हिम्मत कर...चलना सीख लिया है
देख ली है मैंने भी दुनिया बहुत
अब इंसान परखना सीख लिया है
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएंदेख ली दुनिया बहुत ..
जवाब देंहटाएंइंसान परखना सीख लिया है ...
सीख ही लेना चाहिए ...
बहुत बढ़िया ...!
कविता की शेडो हटा दें ...पढने में परेशानी होती है ..!
bahut badiya kavita hai madhu ji...
जवाब देंहटाएंसिखने में ही बहुत कुछ खो दिया .. सिख कर अब संभालना सिख लिया ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियों तथा आमंत्रण देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया !!
देख ली है मैंने भी दुनिया बहुत
जवाब देंहटाएंअब इंसान परखना सीख लिया है
..बहुत खूब...प्रगति का रास्ता भी तो यहीं से तय होता है.
'मैंने रंग बदलना सीख लिया है........'
जवाब देंहटाएंदुनियां क्या क्या नहीं सिखा देती....फिर भी जीना सीखने में जिंदगी गुजर जाती है.....
बेबाक रचना......बधाई...
http://pradeep-splendor.blogspot.com/