इस जिंदगी को...
मैं क्या नाम दूं...?
कभी सैलाबों का नाम मैं दूं
कभी जीत कहूं, कभी हार कहूं
कभी कुदरत का मैं प्यार कहूं
कभी शोर कहूं...कभी मौन कहूं
कभी खामोशी का जाम कहूं....
कभी गम की शाम कहूं
तो कभी इठलाती मुस्कान कहूं
कभी खुशियों का पैगाम कहूं
या जीवन का संग्राम कहूं!
कभी खुशियों का पैगाम कहूं
जवाब देंहटाएंया जीवन का संग्राम कहूं
...yahi to jindagi hai.... vividh rangon se bhari....
..bahut sundar prastuti
उत्तर विहीन प्रश्न सुंदर रचना ,बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंwah ji wah kya khub likhti hain aap...u just create magic....
जवाब देंहटाएंmann karta hai...aapki rachna ke harek kadi ka aadha hissa...sada ke liye aapse chura lun....
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंमधु जी
जवाब देंहटाएंकाश !
सवालों के जवाब ढूंढ़े जा सकते तो परिदृश्य और ही होता …
ऐसा करें ,
इठलाती मुस्कान और खुशियों का पैगाम लिखदें , तो कैसा रहेगा ?
बहुत शानदार !
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ज़िंदगी संग्राम ही है जहाँ हर तरह के अनुभव हैं ..सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैडम
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंयही जीवन है... हर पल इसके नाम बदलते हैं...
जवाब देंहटाएंकभी हालात... तो कभी इंसान बदलते हैं...
''कभी पलकों पे आँसू हैं.. कभी लब पे शिकायत है.. मगर ऐ जिंदगी फिर भी.. हमें तुमसे मोहब्बत है..'' ये गाना सब कह देता है.
पहली बार आपकी कविता पढ़ी, ये भी बहुत अच्छी लगी..
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जवाब देंहटाएंहमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
bhut khub lekha hai . mahraaj
जवाब देंहटाएंbhut khub likha hai mahraaj
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग ११.९.२०१० के चर्चा मंच पर सजेगा.. देखिएगा जी..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीपक जी
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