बुधवार, मई 4

पतझड़ का राग



यू कहने को तो
चहुँ ओर हरियाली है
पर फिर भी जाने क्यों
दिल का एक कोना
अब भी खाली-खाली है

झूठी है मुस्कान यहां
ख़ुद को मैंने उल्झा ली है
चहुँ ओर तो है शीतल बयार
पर दिल में तूफान छुपा ली है


बाहर धूप खिली है
लेकिन मन उल्झा है अंधेरों में
कहने को है हरियाली
लेकिन दिल का कोना अब भी खाली है


सुना है ...
पतझड़ का सूना राग कभी
कैसे उसने पल-पल गुजारी है।
अब नई कोपलें आई हैं
रंग उमंग नया वो लाई हैं
पर बिछड़न का दंश...
हाय...भला
वही जाने जो इसमें रीता है
गम के आंसू जो पीता
मौन खड़ा वह जीता है
लेकिन उन सूखे पत्तों का क्या
जिसने मिलन की आस न सही
बिछड़कर अस्तित्व मिटा ली है।।





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