मैं पंछी उन्मुक्त गगन की
मत बांधो मुझे डोर में
मत बांधो मुझे डोर में
सारे पंख टूट जाएंगे
पिंजड़े की उस छोड़ में...
दो मुझको रिश्तों का बंधन
पर उसको यूं मत कसना
हंसकर उसे निभाना होगा
कसकर उसे पिरो देना...
गांठ छुड़ाना मुश्किल होगा...
अरमान हमारी मत खोना
अरमान हमारी मत खोना
मैं पंछी उन्मुक्त गगन की
बांधो मुझको डोर में
रिश्तों की डोर मुलायम होगी
जी लूंगी उस कोर में
Vah
जवाब देंहटाएंnice one !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,,
जवाब देंहटाएंआप भी इस बहस का हिस्सा बनें और
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
दो मुझको रिश्तों का बंधन
जवाब देंहटाएंपर उसको यूं मत कसना
हंसकर उसे निभाना होगा
कसकर उसे पिरो देना...
बहुत अच्छा लिखा है, आनंद आ गया
ख्वाहिशों की ऐसे मासूम अंदाज़ में प्रस्तुति बहुत अच्छी बन पडी है
एक ही पल में दो अलग भाव.. ह्म्म्म होता है.. मन की अनिश्चितता दर्शाती कविता..
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