राजनीतिक, सामाजिक, दुर्घटना, गॉसिप्स और कारोबारी खबरें तो हर-रोज आपको देखने को मिलतीं है...लेकिन SOFT STORY तो हर कोई पसंद करता है...कुछ ऐसी ही खबरें मुझे एक दिन बनाने को मिलीं...जिसमें महिलाओं ने अनोखी मिसाल कायम की हैं..
पहली खबर उड़ीसा से...
वैसे तो महिलाएं आंसू बहाने में सबसे आगे रहती हैं....छोटी-छोटी बातों पर घड़ियाली आंसू बहाना तो कोई उनसे सीखे...उड़ीसा के कोणार्क में एक ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की गई...जिसमें महिलाएं विलाप करती नजर आई...विलाप का नाम सुनते ही अनहोनी की आशंका मन में घर कर जाती है....महिलाओं का रुदन सुनकर किसी के भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं....ऐसा लगता है जैसे दिल फट कर बाहर आ जाएगा...लेकिन जनाब इस प्रतियोगिता में महिलाएं अपने रोने की कला का प्रदर्शन करती हैं और जो सबसे ज्यादा हृदय विदारक क्रंदन करती हैं...उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है....आप सोच रहे होंगे कैसी अजब-अनोखी प्रतियोगिता है...लेकिन ये प्रतियोगिता एक खास मक्सद से आयोजित की जाती है... इसका उद्देश्य है समाज की आधुनिक पीढ़ी को पुरानी परंपरा से जोड़ना....दरअसल आधुनिकता का सबसे ज्यादा असर आज की युवा पीढ़ी पर पड़ा है...खुद को मॉडर्ऩ साबित करने के लिए लोग क्या-क्या जतन नहीं करते....खासतौर से अब शादी-विवाह के अवसर पर जब लड़कियां अपने मायके से विदा होती हैं तो...रोना-धोना उचित नहीं समझतीं... रोने का रिवाज तो जैसे धीरे-धीरे खत्म ही होता जा रहा है...पुराने जमाने में कहा जाता था कि जब लड़की अपने मायके से रोते हुए विदा होतीं थीं...तो पिता की संपत्ति बढ़ जाती थी... और परिवार-समाज से उस कन्या का जुड़ाव झलकता था... लेकिन अब ऐसा हो गया है ...कि लड़की विदाई के वक्त रोना उचित नहीं समझती...उन्हें लगता है उनका मेकअप खराब हो जाएगा...अपना घर छोड़ने का गम तो सबको होता है...लेकिन वो रोती भी हैं तो इसका खास ख्याल रखते हुए कि कहीं चेहरा खराब न हो जाए....
ऐसे में ये प्रतियोगिता उन लड़कियों को संदेश देता है कि परंपरा को किस तरह जीवित रखा जा सकता है...उन्हें इस रूदन के माध्यम से परंपरा की अहमियत से रू-ब-रू कराया जाता है...इन प्रतिभागी महिलाओं का उद्देश्य परंपराओं को लंबे समय तक सहेजना हैं...भले ही ये प्रतियोगिता थोड़ी हास्यास्पद हो लेकिन है बड़ी ही दलचस्प...है ना...!वैसे तो महिलाएं आंसू बहाने में सबसे आगे रहती हैं....छोटी-छोटी बातों पर घड़ियाली आंसू बहाना तो कोई उनसे सीखे...उड़ीसा के कोणार्क में एक ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की गई...जिसमें महिलाएं विलाप करती नजर आई...विलाप का नाम सुनते ही अनहोनी की आशंका मन में घर कर जाती है....महिलाओं का रुदन सुनकर किसी के भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं....ऐसा लगता है जैसे दिल फट कर बाहर आ जाएगा...लेकिन जनाब इस प्रतियोगिता में महिलाएं अपने रोने की कला का प्रदर्शन करती हैं और जो सबसे ज्यादा हृदय विदारक क्रंदन करती हैं...उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है....आप सोच रहे होंगे कैसी अजब-अनोखी प्रतियोगिता है...लेकिन ये प्रतियोगिता एक खास मक्सद से आयोजित की जाती है... इसका उद्देश्य है समाज की आधुनिक पीढ़ी को पुरानी परंपरा से जोड़ना....दरअसल आधुनिकता का सबसे ज्यादा असर आज की युवा पीढ़ी पर पड़ा है...खुद को मॉडर्ऩ साबित करने के लिए लोग क्या-क्या जतन नहीं करते....खासतौर से अब शादी-विवाह के अवसर पर जब लड़कियां अपने मायके से विदा होती हैं तो...रोना-धोना उचित नहीं समझतीं... रोने का रिवाज तो जैसे धीरे-धीरे खत्म ही होता जा रहा है...पुराने जमाने में कहा जाता था कि जब लड़की अपने मायके से रोते हुए विदा होतीं थीं...तो पिता की संपत्ति बढ़ जाती थी... और परिवार-समाज से उस कन्या का जुड़ाव झलकता था... लेकिन अब ऐसा हो गया है ...कि लड़की विदाई के वक्त रोना उचित नहीं समझती...उन्हें लगता है उनका मेकअप खराब हो जाएगा...अपना घर छोड़ने का गम तो सबको होता है...लेकिन वो रोती भी हैं तो इसका खास ख्याल रखते हुए कि कहीं चेहरा खराब न हो जाए....
दूसरी खबर बिहार के वैशाली जिले से...
यहां महिलाओं का एक ऐसा समूह कार्यरत है....जिन्होंने प्रदेश में मिसाल कायम की है...महिलाओं के इस समूह ने केले के पेड़ से रोजगार के नए अवसर तलाशे हैं...वैसे तो केले के पेड़ से एक बार ही फल लिया जा सकता है और उसके बाद ये पेड़ बेकार हो जाता है....लेकिन महिलाओं ने इस पेड़ से निकलनेवाले रेशे से अनोखी कलाकृति बनाई है...इन कलाकृतियों ने महिलाओं को रोजी-रोटी का नया आयाम दिया है....ऐसे में जहां वैशाली जिले को पहले केले की खेती के लिए जाना जाता था...अब लगता है इसे केले से बनी इन कलाकृतियों के लिए भी बहुत जल्द पहचान मिलनेवाली है....यहां की महिलाएं भी अब आत्मनिर्भर बनती नजर आ रही हैं....
यहां महिलाओं का एक ऐसा समूह कार्यरत है....जिन्होंने प्रदेश में मिसाल कायम की है...महिलाओं के इस समूह ने केले के पेड़ से रोजगार के नए अवसर तलाशे हैं...वैसे तो केले के पेड़ से एक बार ही फल लिया जा सकता है और उसके बाद ये पेड़ बेकार हो जाता है....लेकिन महिलाओं ने इस पेड़ से निकलनेवाले रेशे से अनोखी कलाकृति बनाई है...इन कलाकृतियों ने महिलाओं को रोजी-रोटी का नया आयाम दिया है....ऐसे में जहां वैशाली जिले को पहले केले की खेती के लिए जाना जाता था...अब लगता है इसे केले से बनी इन कलाकृतियों के लिए भी बहुत जल्द पहचान मिलनेवाली है....यहां की महिलाएं भी अब आत्मनिर्भर बनती नजर आ रही हैं....
dono khabrein achcho hai pehli wali to hasyaspad hai...rone ki parampara bhi koi parampara hai aur aisi pratiyogita se kya parampara badhegi..isse to jhooth mooth rona hi seekhenge...
जवाब देंहटाएंदोनों ही खबरे रोचक लगीं मधु जी.. माफ़ कीजिएगा आजकल मेरे घर पर नेट की समस्या है इसलिए देरी से आ पाया..आगे से ब्लोगरोल में रहेंगीं तो ऐसी गलती नहीं होगी.... केले के बारे में नयी बात पाता चली कि वो एक बार फल देने के बाद बेकार हो जाता है(खबर के अलावा) सो आभार.. हाँ वैसे मैंने भी विदा के समय अपनी रोटी हुई कजिन को यही कह कर चुप कराया था कि 'तेरी आँख का इतना महंगा काजल फ़ैल गया पूरे चेहरे पर और मेकअप भी धुल गया..' उसके बाद वो रोना छोड़ के उल्टा हँसते हुए विदा हुई..
जवाब देंहटाएंdono khabare achi hai
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