जी हां....बड़ा ही उलझा सा सवाल है...क्योंकि अक्सर हम किसी न किसी काम में लेट हो ही जाते हैं....लेटलतीफी हमारी नियती में शुमार हो चुका है...और हम जाने अनजाने ही सही ये हसीन गुस्ताख़ी कर ही बैठते हैं...अब जब लेटलतीफी की बात चल पड़ी है...
तो सबसे पहले बारी आती है उस प्राणी की जो लेटलतीफी में सबसे आगे है....उस प्राणी का नाम है प्रेमी और प्रेमिका...अरे आप चौकिए मत मैं कुछ गलत नहीं कह रही...चलिए मैं आपको बताती हूं कैसे...सबसे पहले तो बात प्रेमिका की...एक प्रेमिका जब तक अपने प्रेमी को इंतजार न कराए उसे मज़ा थोड़े ही आता है...अब बेचारी जान बूझकर ऐसी गुस्ताखी करे या जाने अंजाने लेकिन ये गलती उनसे हो ही जाती है...जरा गौर फरमाईये ये गलती अक्सर हर प्रेमिका के साथ ही क्यों होती है...कहने का मतलब है सभी प्रेमिका एक जैसी ही होती हैं...शायद...प्रेमियों को इंतज़ार कराना उनकी आदत जो हैं...भला प्रेमी के समक्ष अपनी एहमियत भी तो जतानी है...बात अगर प्रेमी की करें तो बेचारा हमेशा पीड़ित नज़र आता है...प्रेमिका को मिलने का समय दिया हो और समय पर ना पहुंचे...फिर देखिये बेचारे की क्या हालत होती है...5 या 10 मिनट लेट होने पर भी बेचारे को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ जाती है...तो प्रेमियों जरा हो जाईये होशियार और मत करवाइये अपनी प्रेमिका को लंबा इंतज़ार...
खैऱ ये तो हो गई प्रेमी और प्रेमिका की बात अब ज़रा मेहमानों पर नजर फरमाइये...अतिथि देवो भवः की तर्ज पर वे आते हैं...जी हां वक्त जो भी मुकर्र किया गया हो...समय पर नहीं पहुंचना इनकी पहली शर्त होती है...एक या दो घंटे तो फिर भी चल जाता हैं... लेकिन और लंबा इंतज़ार वाकई कभी-कभी खल जाता है ...और अगर गलती से कभी अतिथि समय पर पहुंच गए तो घर में भागा दौड़ी मच जाती है लोग सामान जुटाने में लग जाते हैं....चलिए जनाब कोई गल नहीं.....एक बार हुआ यूं कि हमारे घर कुछ मेहमान आमंत्रित थे...आने का समय सुबह 11 बजे निर्धारित था लेकिन अपको पता है वो कितने बजे पधारे...शाम के तीन बजे....इंतज़ार इंतज़ार और इंतज़ार....हमें वो गाना याद आ रहा था...’’इंतहां हो गई इंतज़ार की’’...मैं छुट्टी में अपने घर गई थी मेरे पिताश्री ने कुछ लोगों को मुझसे मिलवाने के लिए बुलाया था...और सबसे बड़ी समस्या तो ये कि उसी दिन शाम 6 बजे मेरी वापसी की ट्रेन थी....3 से 4 बजे का समय मेहमानों को देना...मतलब मेरे लिए एक एक पल कीमती था...और मैं भी कम लेटलतीफ तोड़े ही हूं अपनी पैकिंग भी अंतिम समय में करना मेरी आदत है...खैर ले देकर किसी तरह मैनेज हो पाया..
ये तो हो गई अतिथि की बात...अब जरा रिश्तों की बात कर लें....दरअसल ये मेरे एक करीबी रिश्तेदार की प्रेमकहानी हैं....हुआ यूं की उस लड़की को एक लड़का बेहद पसंद करता था...और वो भी रिश्ते में उस लड़की की बड़ी बहन का देवर था....अब बड़ी बहन का देवर मतलब समझे आप यहां वो गाना फिट बैठता है ‘’दीदी तेरा देवर दिवाना’’ बेचारे को पहली ही नज़र में प्यार हो गया...लेकिन एक समस्या थी वो उसके घर वालों को नहीं बता सकता था..क्योंकि उसके पास उस वक्त अच्छी नौकरी नहीं थी....उसने खूब मेहनत की और एक साल के भीतर ही उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई...उसने बड़े अरमानों से उस लड़की के लिए लाल रंग की एक साड़ी खरीदी...अब सिर्फ भाभी की बहन के लिए साड़ी भला ये कैसे हो सकता था...पहला हक तो उसकी भाभी का बनता था इसलिए बेचारे को अपनी भाभी के लिए भी साड़ी लेनी पड़ी...जब वो घर पहुंचा तो पता चला उस लड़की की शादी पक्की हो चुकी है...बेचारे के अरमान दिल में ही दबकर रह गए....संयोग देखिए उसके सामने उसकी प्रेमिका उसी की दी हुई साड़ी में हमेशा के लिए किसी और की हो गई और वो हाथ मलता रह गया...हाय...भगवान ऐसा दिन किसी को न दिखाए....खैर मेरे कहने का मतलब है कि अगर उसने समय पर उस लड़की को अपने दिल की बात कह दी होती तो शायद उसके साथ ऐसा ना होता...उसके मुहं से भी शायद यहीं निकला होगा ‘’अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’’
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रिस्तों की बात तो हो गई अब रफ्तार की बात हो जाए...मेरा मतलब है यात्रा की...अब बात प्लेन की हो रेल की हो या फिर बस की...सबमें समय की मार झेलनी पड़ती है...प्लेन में तो फिर भी कुछ समय का फासला चलता है....लेकिन बस में कितना समय लग सकता है इसका कोई मां बाप ही नहीं हैं...और रेल यात्रा के तो कहने ही क्या...वो तो मांशा अल्लाह...इस मामले में हमारे प्यारे राज्य बिहार की तो कहने ही क्या....जी हां यहां तो ट्रेनें घंटों लेट रहती हैं...आप ट्रेन के स्टेशन से खुलने वाले समय पर भी अगर घर से निकलते हैं... तो भी आपकी ट्रेन नहीं छूटेगी इसकी तो गारंटी है...बिहार के ही गया और भागलपुर लाइन की बात बताऊं तो आपको यकीन नहीं होगा... लोग चेन पुलिग कर देते हैं और तब जाकर उनके नाते रिश्तेदार दूर से आते दिखाई देते हैं जब तक वो ट्रेन तक पहुंच ना जाए मजाल है ट्रेन चल पड़े...हालांकि दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं होता....वहां निर्धारित समय पर ट्रेन खुल जाती हैं....और अगर नहीं खुलती तो उसके पीछे कोई ठोस वजह जरूर होती है....
एक बार हुआ यूं की मैं हैदराबाद से अपने पैतृक घर के लिए निकली...मेरे रूम से स्टेशन तक पहुंचने में 1 घंटे का वक्त लगता था...हालांकि मैं 1:30 घंटे पहले अपने घर से निकली थी... लेकिन रास्ते में ट्रैफिक जाम में फंस गई... और 6 मिनट लेट से स्टेशन पहुंची....4 बजे मेरी ट्रेन थी और मैं 4 बजकर 6 मिनट पर स्टेशन दाखिल हो चुकी थी लेकिन अफसोस 6 मिनट के लिए मेरी ट्रेन छूट चुकी थी....मेरा घर जाना जरूरी था इसलिए मैंने तुरंत टिकट कैंसिल कराया और दूसरे दिन का तत्काल का टिकट लिया...अब आप समझ सकते हैं 6 मिनट लेट होने की सज़ा मुझे मिल गई थी...हां लेकिन अगर मुझे बिहार में कहीं से ट्रेन पकड़ी होती तो आप समझ सकते हैं मैं आसानी से ट्रेन पकड़ सकती थी....वहां 6 मिनट लेट कोई बड़ी बात नहीं....क चीज जरूर ध्यान देने वाली है और वो ये कि...कुछ पल में दुनिया में क्या से क्या हो जाता हैं और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं....
अब अंत में बात परीक्षा की भी हो जाए...तो इस मामले में भी बिहार के क्या कहने...मैं इस बात से इंकार नहीं करती कि बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं है...यहां के प्रतिभाशाली छात्र देश ही नहीं दुनियाभर में नाम रौशन करते हैं...दरअसल यू कहा जाए तो यहां के छात्र बेहद मेहनती होते हैं....लेकिन परीक्षा में भी समय इनका पीछा नहीं छोड़ती....निर्धारित समय पर परीक्षा हो जाए ऐसा भला कैसे हो सकता है....इस मामले में यूनिवर्सिटी के तो कहने ही क्या...तीन साल का कोर्स वो चार साल में भी पूरा कर दे तो बड़ी बात है...दरअसल वो अपने परीक्षार्थियों को तैयारी का भरपूर समय मुहैया कराना चाहती है....उन्हें लगता है...ऐसा करने से छात्र अपना कोर्स ज्यादा अच्छी तरह पूरी कर पाएगे...हालांकि इसमें जरा सी भी सच्चाई नहीं है....वैसे इसमें गलती केवल यूनिवर्सिटी की ही नहीं है...पूरे शिक्षा तंत्र की है...जिसमें परीक्षार्थियों का भी सफल योगदान होता है...वो भी परीक्षा की तारीख आगे बढ़वाने में पीछे नहीं रहते...मगर ऐसा सभी छात्र करते हों ऐसी बात नहीं है...इनमें वैसे छात्रों का योगदान ज्यादा होता है जिन्हें केवल डिग्री लेने से मतलब है...ऐसे में पढ़ने वाले छात्रों को इनके किए की सज़ा भुगतनी पड़ती है...
अब जब बात निकल ही पड़ी है तो ज़रा मीडिया चैनल की भी बात हो जाए...दरअसल मीडिया में एक-एक पल महत्वपूर्ण होता है...समय पर न्यूज देना हमारी प्राथमिकता होती है...वैसे तो सभी चैनल अपना-अपना बुलेटिन समय पर शुरू करते हैं और अगर बुलेटिन एक मिनट भी लेट हुआ तो उसकी रिपोर्ट बन जाती है...और उसके बाद शुरू होता है बॉस की प्रताड़ना का सिलसिला...लेकिन मैं आपको अंदर की बात बताऊ...मैं एक मीडिया हाऊस में थी...वहां मैं मध्यप्रदेश के लिए काम कर रही थी हालांकि वहीं से 12 राज्यों का चैनल ON AIR होता था जिसमें बिहार का चैनल भी था, वैसे तो बांकी सभी राज्यों के चैनलों में एक मिनट भी बुलेटिन लेट हो जाए तो उसकी रिपोर्ट बन जाती थी...लेकिन बिहार के चैनल में बुलेटिन 5 से 7 मिनट लेट...फिर भी कोई बात नहीं....हुआ यूं...कि मेरे एक करीबी मित्र उस वक्त बिहार डेस्क में न्यूज ऐंकर थे...दरअसल मैं उन्हीं के शहर मुजफ्फरपुर से थी...और मैंने चैनल अभी अभी ज्वॉइन किया था...मैं उसी यूनिवर्सिटी से भी थी जहां से वो पासआऊट हुए थे....मेरे वहां ज्वॉइन करने से पहले ही...मेरे वहां आने की ख़बर उन्हें मिल गई थी...अब एक लड़की उनके शहर से चैनल ज्वॉइन कर रही हो तो लगाव तो हो ही जाता है...ऊपर से मेरे डिपार्टमेंट हेड ने भी उन्हे फोन पर मेरे आने की सूचना दे दी थी और कहा था इस लड़की को गाइड करना...दरअसल मैं अपनी यूनिवर्सिटी की उस बैच की पहली ऐसी कैंडिडेट थी जिसका सेलेक्शन वहां हुआ था...इससे पहले कुछ लड़कों ने वहां ज्वॉइन किया था...इसलिए मैं उन सबके लिए थोड़ी ख़ास थी....
एक बार मैं उनसे फोन पर बात कर रही थी...उनका रात 9 बजे का प्राइम टाइम बुलेटिन था...जो न्यूज चैनल के लिए बेहद अहम होता है लेकिन महाशय मुझसे बात किए जा रहे थे...मुझे लगा कहीं बातों-बातों में वो अपना बुलेटिन लेना न भूल गए हो...9 बजकर 5 मिनट हो चुका था और वो स्टूडियो नहीं पहुंचे थे...9 बजकर 7 मिनट में वो स्टूडियो पहुंचे और 9 बजकर 10 मिनट में बुलेटिन शुरू हुआ...मैंने फोन रखने के बाद घड़ी देखी तो हैरान रह गई...मुझे लगा कहीं मेरी वजह से इनकी क्लास ना लग जाए...एक घंटे का बुलेटिन था और मेरी सांस अटकी थी....जैसे ही दस बजकर 5 मिनट हुआ मैंने फोन घुमाया....फोन लगते ही मेरा पहला सवाल था बुलेटिन रिपोर्ट तो नहीं बना...एंकर ने पूछा किस बात पर...मैंने कहा आज तो बुलेटिन 10 मिनट लेट गया होगा...पर उन्होंने सहज अंदाज में कहा नहीं इतना लेट तो यहां चलता हैं...मैंने राहत की सांस ली....वाकई ऐसा केवल बिहार के चैनल में ही संभव था...
हम अपनी जिंदगी में भले ही कुछ समय के लिए लेट हो जाए लेकिन घड़ी की सुई अपना काम करती चली जाती है बीता हुआ पल कभी लौट कर नहीं आता...मतलब ये कि हर पल को हमें सहेजना चाहिए और उस पल को खुलकर जीना चाहिए....क्या पता ये ज़िंदगी दोबारा मिले ना मिले...क्यों हम इन खूबसूरत लम्हों को बेवजह जाया करें...
vaaaaaaaaah.
जवाब देंहटाएंलेट लतीफी पर इतना बड़ा आख्यान..पढ़ते पढ़्ते ही दफ्तर जाने में लेट हो गये. :)
जवाब देंहटाएंबड़ा ही रोचक लेख पढ़ने को मिला.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया
बहुत ही अच्छा लिखा मगर ये लायने नागवार गुजरी वैसे मै बिहारी नहीं हूँ मगर दिल में घुश गयी
जवाब देंहटाएंएंकर ने पूछा किस बात पर...मैंने कहा आज तो बुलेटिन 10 मिनट लेट गया होगा...पर उन्होंने सहज अंदाज में कहा नहीं इतना लेट तो यहां चलता हैं...मैंने राहत की सांस ली....वाकई ऐसा केवल बिहार के चैनल में ही संभव था...
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
क्या बात है विलंब से ही सही आपसे दोबारा संपर्क तो हुआ बहुत सुंदर लेख के साथ। बेहतरीन लिखा है।
जवाब देंहटाएंbhayi sabse late-latif to hum hai...
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