tag:blogger.com,1999:blog-707517811006791628.post6072490412572510605..comments2023-07-21T01:45:07.270-07:00Comments on मेरे दिल से: कविता की व्यथा...Madhu chaurasia, journalisthttp://www.blogger.com/profile/07800523390622467943noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-707517811006791628.post-83334473574391917392009-09-08T12:04:36.220-07:002009-09-08T12:04:36.220-07:00'चमकती है सदियों में कहीं आंसुओं से जमीं,
गज़ल...'चमकती है सदियों में कहीं आंसुओं से जमीं,<br />गज़ल के शेर कहां रोज-रोज होते हैं।'<br />और<br />'हमसे पूछो कि गजल मांगती है कितना लहू,<br />लोग कहते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।'<br /> इन दो शेरों में दो शायरों ने साफ कहा है शब्दों को साधना... और उन्हें सरस्वती बनाकर काले अक्षरों से कागज पर उतारना कितना मुश्किल है... कविता का ये दर्द वाजिब है...<br />क्या सुनाएं इस जमाने में<br />दर्द मिलता है दवाखाने में।<br />मंच पर नाचती है बोतल<br />और कविता शराबखाने में।<br />-अनिल तिवारी, रायपुरAnonymousnoreply@blogger.com